जहां देश की बड़ी नदियां (गंगा, यमुना, कावेरी आदि ) को बचाने के लिए सरकार ने पूरा विभाग ही बना डाला तथा हजारों करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं, वहीँ छोटी एवं सहायक नदियों की लगातर उपेक्षा हो रही है। देश भर में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हजारों छोटी छोटी नदियों का अस्तित्व खत्म हो रहा है।
हमारा सारा ध्यान प्रमुख नदियों को बचाने में लगा है। यह अलग बात है हम इसमें भी कामयाब नही हो पाए हैं। छोटी नदियों को बचाने के लिए ना तो कोई बड़ा आंदोलन हुआ और ना ही सरकार ने छोटी नदियों के लिए कोई ठोस नीति बनाई है। यही कारण है कि छोटी और सहायक नदियों की हालत किसी नहर या उससे भी बदतर हो जाती है।
इन छोटी नदियों के पुनरोद्धार के लिए कोई पहल नहीं हो रही है। अगर कहीं हो भी रही है तो वो सिर्फ़ कागजों तक ही सीमित है। शायद छोटी नदियों की उपेक्षा के कारण तमाम प्रयासों के बावजूद गंगा सहित बड़ी नदियां की दशा में अपेक्षाकृत परिणाम नहीं निकले। कुछ वर्षो से भारतीय नदियों में प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। अधिकांश नदियों का पानी इतना विषैला हो गया है कि यह पीने और स्नान करने के काबिल नही रहा। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार 29 राज्यों और 6 केंद्र शासित क्षेत्रों में 445 नदियों में से 275 नदियां पुरी तरह प्रदूषित हैं।
अतः बड़ी नदियों की हालत सुधारनी है तो पहले समझना होगा कि छोटी नदियों को निर्मल बनाए बिना बड़ी नदियों की दशा नहीं सुधर सकती। कई छोटी नदियों की सेहत को बरकरार रखने वाले डूब क्षेत्र के संरक्षण की अनदेखी बदस्तूर जारी है। छोटी नदियों पर अतिक्रमण के कारण बड़ी नदियों पर भी इसका असर बहुत पड़ा। छोटी नदियां प्रदूषण और उपेक्षा के शिकार हैं। इन्हें किसी बड़ी संरक्षण योजना में शामिल नहीं किया गया है। अगर हम चार दशक पहले का समय याद करते हैं तो इन छोटी नदियों में स्वच्छ और निर्मल पानी से भरा रहता था। लेकिन अब ये नदियां सीवरेज बहाने वाली नदियों में तब्दील हो गई।
छोटी और सहायक नदियां मानसूनी वर्षा और भूजल पर निर्भर होती हैं। यदि लंबे अंतराल तक बारिश नही होती तो सबसे पहले नदियां सूख जाती हैं। फिर वहां अतिक्रमण शुरु हो जाता है। सैकड़ों छोटी नदियां मिलकर एक इकाई बन जाती है। छोटी नदियां और उनके साथ जुड़ी झीलें, तालाबों की श्रृंखला नदियों को जीवंत रखती हैं। नदियों का आपस में जुड़ा यह पारिस्थितिकी तंत्र उतना ही महत्वपूर्ण है जितना नदियों का निरंतर बहना।
छोटी नदियों को बचाने के लिए उनके प्रवाह को नियमित रुप से चलने देना चाहिए। जलप्रवाह रुकने से प्रदूषण फैलेगा। इन नदियों का साफ रहना ज़रूरी है तभी गंगा या यमुना जैसी बड़ी नदियां भी प्रदूषित होने से बचेंगी। छोटी नदियों से कृषि को बहुत फायदा होता है। सूखे की स्थिति में इन नदियों का जल उपयोगी साबित होता है, ऐसी नदियों को पुनर्जीवित करके किसानों का भला किया जा सकता है तथा पानी की कमी भी पुरी हो सकती है। नदियों में मछलियां पाई जाती हैं। नदियों के विलुप्त होने से मछुआरों का रोज़गार खत्म हो जाता है।
गंगा की सभी प्रमुख सहायक नदियां जैसे रामगंगा, घाघरा, वरुणा, राप्ती, यमुना, महानदी प्रदूषित हैं। गंगा के अपने प्रदूषण के साथ गंगा की सहायक नदियां भी इसके पानी को गंदा कर रही हैं। गंगा की सहायक नदियों में केवल भागीरथी और अलकनंदा ही स्वच्छ है। दरअसल यह दोनों छोटी नदियां बड़े शहरों तक आती ही नहीं है। प्रदूषित नदियों में गंगा, बेतवा, ब्रह्मपुत्र, कावेरी, घाघरा, गोदावरी, गोमती, झेलम, नर्मदा, साबरमती, सरयू, सतलज, तीस्ता, वरुणा जैसी बडी और प्रसिद्ध नदियां शामिल हैं। छोटी नदियों में खदेरी, हिंडन, सई , काली आदि प्रदूषित नदियां हैं।
नदियों को स्वच्छ रखना सबकी जिम्मेदारी है। नदियां हमारी प्यास बुझाती हैं। नदियों को स्वच्छ रखना हमारी जिम्मेदारी बनती है। नदियों को प्रदूषणमुक्त रखने के लिए हमें प्लास्टिक की थैलियां, बोतल या अन्य सामग्री नदियों में या उनके किनारे नहीं फेंकना चाहिए। इससे कचड़ा उड़कर नदियों में चला जाता है। उद्योगों का रसायन मिला पानी, सीवरेज का पानी नदियों में नहीं जाना चाहिए। शवों को भी नदियों में बहने से रोकना चाहिए। जिस तरह आदमी के शरीर से निश्चित मात्रा में खून निकाला जाता है उसी प्रकार उतना ही पानी नदियों से निकालना चाहिए जिससे नदियों के सेहत पर असर न पड़े। नदियों में हर मौसम में 60 प्रतिशत पानी बना रहना चाहिए।
आज देश की अधिकांश छोटी नदियां अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं। छोटी नदियां नाले में परिवर्तित हो चुकी हैं।अनेक कारणों से ये नदियां लुप्तप्राय हो रही हैं जो बहुत चिंताजनक है। बड़ी नदियों के अलावा हमें छोटी छोटी नदियों के अस्तित्व को बचाने की जरूरत है।
*पर्यावरणविद एवं लेखक