करौली: चम्बल क्षेत्र के करौली और धौलपुर जिलों के निवासी शांति और सुरक्षा के जीवंत प्रमाण हैं। यहाँ जल संरक्षण से प्रकृति और समाज का कायाकल्प हुआ है, और लोगों के मन, शरीर और आत्मा में परिवर्तन आया है। इससे चम्बल क्षेत्र के इन लोगों की जीवनशैली प्रकृति और मानवता से सामंजस्य स्थापित करते हुए हिंसा से अहिंसा में परिवर्तित हो गई है। इनके जीवन में स्थिरता आ गयी है और अब वे शांति, सुरक्षा और खुशी से रहते हैं। अपमानजनक और असुरक्षित जीवन से दूर अब वे जल संरक्षण एवं जल सम्मान से प्रभाव से बनी स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं से समृद्ध हो रहे हैं। ये अर्थव्यवस्थाएं न्यायसंगत और जैविक है। जलवायु परिवर्तन के अप्रत्यासित संकटों, संघर्षों, युद्ध, दुष्परिणामों और जल से संभावित जाखिमों से परे है।
जल, नदी व जंगल अब इनके लिए केवल प्राकृतिक वस्तुएं नहीं है, यह तो चम्बल क्षेत्र के इन लोगों के अस्तिव व आत्मा से जुड़े हैं। इनसे उन्हें उतना ही प्रेम है, जितना स्वयं से है। वे अपने जल संरक्षण प्रयासों का उत्सव मनाते हैं, जिससे भूजल संसाधनों को फिर से भरने, मौसमी नदियों और जैव विविधता को पुनर्जीवित करने में मदद मिली है। कम लागत, विकेंद्रीत, स्वदेशी मूल ज्ञान आधारित और समुदाय-केंद्रित जल संरक्षण से प्रकृति, घरेलू जरूरतों, आजीविका, पशुधन, वन्यजीव और प्रवासी पक्षियों के लिए पानी की उपलब्ध हुआ।
यहाँ के लोगों के इसी सम्मान और प्रसन्नता को प्रस्तुत करने के लिए 20 -21 मार्च 2024 तक तरुण भारत संघ, जल बिरादरी और सुखाड़ बाढ़ विश्व जन आयोग द्वारा जैन तीर्थ श्री महावीर जी, बनवारीपुर में दुनिया में शांति का काम करने वालों को एक दो दिवसीय जल एवम शांति लोक सम्मेलन में आमंत्रित किया गया। इस सम्मेलन में दुनिया भर से जल, जंगल और जमीन के लिए काम करने वाले 200 से अधिक लोग शामिल हुए। सभी ने सर्वसम्मति से “जियो और जीने दो -जल से शांति लोगों का घोषणा पत्र” पारित किया ।
दुनिया भर में जल संबंधी आपदाओं का दायरा तेजी से बढ़ रहा है। विस्थापन और संकटपूर्ण प्रवासन के कारण तनाव और संघर्ष है। इससे अस्थिरता और अशांति पैदा हो रही है।
जल में शांति हैं और जल से शांति है। यह जियो और जीने दो का संदेश देता है। बाहरी जल का सम्मान करते हुए, यहाँ के लोगों ने पाया है कि, स्थायी शांति जल में ही हैं। अब इनका दिल, दिमाग और आत्मा हाथ सब जल संरक्षण के माध्यम से शांति स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
यह साल 2024 अहम है, जब भारत समेत 60 से ज्यादा देशों में चुनाव हो रहे हैं। चट्टानी सतहों में भी नीली नदियों और भूजल भंडारों को पुनर्जीवित करने के यहाँ के लोगों अनुभव के आधार पर, घोषणा पत्र में कहा गया है कि –
1) दुनिया भर के राजनीतिक और सरकारी नेता विकेंद्रीकृत और समुदाय केंद्रित जल संरक्षण के माध्यम से जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों और सम्पूर्ण वैश्विक मानवता के लिए जल सुरक्षा का सम्मान करें। यह स्वदेशी मूल ज्ञान के प्रयोग से संभव है।
2) भारत में, सभी राजनीतिक दल अपने घोषणापत्रों में भारत के सभी जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों और लोग के लिए न्यायसंगत और टिकाऊ जल सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध होने और काम करें। शांति, सुरक्षा, खुशहाली और टिकाऊ स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए जल-सुरक्षित भारत आवश्यक है। इससे समग्र न्यायसंगत प्राकृतिक पुनर्जनन की प्रक्रिया शुरू होगी।
3) भारत के पास ज्ञान और अध्यात्म है, वह विश्व नेता बन सकता है। लेकिन यह तभी संभव है, जब हम पानी और पंचमहाभूतों से प्राकृतिक पुनर्जनन की प्रक्रिया शुरू करके, अपने भारत को आत्मनिर्भर बनायेंगे।
4) हमारे पास एक पृथ्वी, एक ग्रह और एक जल है। हम इस ग्रह पर रहने वाले सभी लोगों से आग्रह करते हैं कि, वे पानी को अपना जीवन बनाएं और इसके कायाकल्प के लिए पानी के साथ आत्मीय संबंध विकसित करें। सरकार जल पुनर्जीवन को बढ़ावा देने, समुदाय संचालित विकेन्द्रीकृत जल संरक्षण को सक्षम करने और जल संरक्षण के माध्यम से प्रकृति पुनर्जीवन के आसपास अपनी अर्थव्यवस्थाओं को केंद्रित करने के लिए पूरी ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाए। पानी का सम्मान कर उसे पुनर्जीवित करे।
चंबल के लोगों ने प्रकृति और पानी का सम्मान करके, जियो और जीने दो का व्यवहार बनाया है। आज वे आत्मनिर्भर, मजबूत और समर्थ बने हैं। इससे इनके लिए शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
आइए हम सामूहिक रूप से जल संरक्षण के माध्यम से शांति निर्माण की दिशा में काम करें। चम्बल के ये लोग इसके लिए अपना समर्थन और अनुभव प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक।