
इन दिनों बुन्देलखण्ड में चल रही जल सहेलियों की जल यात्रा खासी चर्चा का विषय बनी हुई है। पूरी दुनिया में जल के विषय को लेकर महिलाओं के द्वारा इतनी बड़ी यात्रा का आयोजन अभी तक कहीं नहीं हुआ है, जिस तरह की जल यात्रा इन दिनों बुन्देलखण्ड में जल सहेलियों के द्वारा महिला नेतृत्व में सामाजिक आंदोलन के रूप में निकाली जा रही है। सैकड़ों जल सहेलियां अपने अपने घरों से निकल कर जल संचयन और जल के महत्व को लोगों को बताने के लिए पद यात्रा कर रही हैं।
पद यात्रा में प्रत्येक दिन दिन 15-17 किलोमीटर की यात्रा करती हैं, रास्ते में पड़ने वाले गांव और स्थानों पर लोगों को जल के महत्व और उसके संरक्षण पर जानकारी देती हैं, साथ ही पड़ने वाले तालाबों पर नदियों एवं तालाबों पर आरती और उन तालाबों की दुर्दशा के कारणों को समाज से जानने की कोशिश करती हैं और समाधान के लिए सुझाव भी लेती हैं। जहाँ एक तरफ जल साक्षरता बढ़ा रही हैं वहीं जल स्त्रोतों की दुर्दशा को भी जानने की कोशिश कर रही हैं और इन दुर्दशाओं से कैसे निपटा जा सकता है इसके समाधान के लिए रास्ते भी खोज रही हैं। गांव-गांव में जलसंकट के समाधान के लिए नई जल सहेलियां बन रही हैं और हजारों की तादात में यात्रा के दौरान नई सहेलियां जुड़ रही हैं जो आगे चलकर अपने-अपने गांव में पानी का काम करेंगी।
यात्रा के दौरान यह निकलकर आया कि नदियां बहुत न्यूनतम प्रवाह से भी कम में बह रही हैं। छोटी नदियों में पानी है, लेकिन सिंचाई अनवरत होने के कारण उनके भी जल स्तर में कमी आ रही है। मोटर/ डीजल इंजन से लगातार पानी निकाला जा रहा है। बुन्देलखण्ड का पूरा इलाका गेंहू की अत्यधित फसल कर रहा है और जिससे जल का और अधिक संकट बढ़ने की संभावना है।
समाज का एक तबका जिनके मन में आज भी बुंदेलखंड के तालाबों को लेकर चिंता है वह है तालाबों पर हो रहे अतिक्रमण और तालाबों के साथ किये जा रहे अमानवीय व्यवहार। इन को लेकर समाज का यह तबका चिंतित है, और लोग अपने किस्से बताते हैं कि इन तालाबों में कैसे पानी आता था, तालाब भरते थे, कैसे वह नहाते थे।
यात्रा के दौरान दर्जनों तालाबों पर रैकवार समाज के लोगों ने बताया कि उनकी आजीविका का प्रमुख साधन तालाब है। खेती उनके पास नाम मात्र की है। तालाबों में मछली पालन और सिंगारा उत्पादन और तालाब के किनारे की खेती करके ही वह अपनी जीवन आजीविका चलाते हैं, लेकिन अब तालाब अतिक्रमण के शिकार हो रहे हैं। तालाबों में आने वाले पानी के रास्ते बंद हो रहे हैं जिसके कारण मछुवारा समुदाय के मन में बहुत अधिक निराशा है और वह अपने भविष्व को लेकर चिंतित हैं कि तालाब फिर से पुनः अपनी पुरानी परिस्थिती में वापस लौट आये ताकि उनकी तालाब आधारित आजीविका चलती रहे।
कुओं की हालत यात्रा के दौरान बहुत खराब दिखी। अधिकांश कुएं या तो खराब हो गये या कचरे से पट गये हैं या खराब होने के स्थिति में हैं। लगभग लगभग पूरे बुंदेलखण्ड में कुओं की संस्कृति खत्म होती जा रही है। लोगों ने इस पर भी चिंता व्यक्त की। गांव के लोग चाहते हैं कि उनके कुएं आज फिर से साफ-सुथरे रहें और उनकी अपेक्षा है कि पंचायत, सरकारें कुओं को सुन्दर बनवाएं।
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साथ ही साथ में बुंदेलखंड में जल सहलियां यहां के फसल चक्र को भी देख रही हैं कि किस इलाके में किस तरह की फसलें हैं, फसलों की स्थिति कैसी है, जलवायु परिवर्तन के असर का प्रभाव किस प्रकार से दिख रहा है। जल सहेली लक्ष्मी ने बताया कि पूरी जल यात्रा के दौरान जब गांव-गांव जा रही थी तो कहीं पर भी आम के पेड़ों में बौर नहीं दिखाई दी। उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए जल सहेली रागनी ने कहा कि इस साल पूरे बुंदेलखंड में आम केे पेड़ों में बौर ना आना इस बात का प्रतीक है कि जाड़े की तुरंत बाद ही मौसम इतना गर्म हो गया कि जिसके कारण आम के पेड़ों में बौर नहीं आए। इस बार बुंदेलखंड के लोगों को यहां के देशी प्रजाती के आम के फल प्राप्त नहीं होंगे, अमिया का स्वाद नहीं मिलेगा।
बुंदेलखंड में कुशवाहा समाज के लोग जो प्रायः सब्जी का उत्पादन करते हैं वह सबसे अधिक इन दिनों परेशान हैं। मौसम में आए अचानक परिवर्तन के कारण सब्जी की गुणवत्ता खराब हो रही, उत्पादन कम हो रहा है, लागत ज्यादा लग रही है। वहीं दूसरे तरफ वह जल के संकट के कारण वह गर्मियों में सब्जी के उत्पादन करने में असफल हो रहे हैं।
जल सहेली मन्जूलता ने बताया कि बुंदेलखण्ड मध्य प्रदेश के इलाके में अधिकांश खेतों पर पेड़ देखने को मिल रहे हैं जो उत्तर प्रदेश में कम देखने को मिलते हैं। बड़ी संख्या में महुआ के पेड़ देखकर लोगों के मन में एक भावना है कि एक जमाने में ये महुआ का एक सघन इलाका था, लेकिन अब धीरे धीरे उनके पेड़ कट रहे हैं और विलुप्त हो रहे हैं। लोगों ने चौड़ी पत्ती के पेड़ों को तालाबों के किनारे लगाने के सुझाव दिये हैं।
यात्रा में चल रही जल सहेली मीरा ने बताया कि जल जीवन मिशन के नल से पानी मिलने लगा है, लेकिन फिर भी गांव के कई मुहल्ले छूटे हैं और यह इस बात का प्रतीक है कि सामूहिकता से समाधान नहीं खोजा गया है। जिन घरों में पानी नहीं पहुंच रहा है वहाँ के लोग परेशान हैं और अपने घरों में अपने गांव से उनके मुहल्लों एवं घरों में पानी की आपूर्ति की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कई लोग नलों में टोटी नहीं लगा रहे हैं जिससे पानी की बर्बादी हो रही है।
यात्रा के दौरान यह भी देखने को मिला कि सड़कों के किनारे स्वच्छ भारत मिशन की सार्थकता के बाद भी खुले में शौच की परम्परा बदस्तूर जारी है और जिसके कारण सड़कों पर गंदगी देखने को मिल रही है।
यात्रा के दौरान सबसे अधिक लाभान्वित बच्चें हो रहे हैं, क्योंकि बच्चों के मन में जलवायु परिवर्तन को लेकर बहुत सारे सवाल हैं, इन दिनों लगभग इस यात्रा के दौरान हजार बच्चों के साथ संवाद किया। जलवायु परितर्वन क्या है और उसके पड़ने वाले प्रभाव किस तरह के है, और इसके समाधान क्या हो सकते हैं। ग्राम पठा में आयोजित बाल सभा के दौरान बच्चों ने बडी संजीदगी से जल चैपाल में हिस्सा लिया और पानी के महत्व और उसके उपयोग को जाना और कैसे वह जल संकट को दूर कर सकते हैं, इन सारी परिस्थितियों के बारे में समझने एवं जानने की कोशिश की। इसके लिए सभी लोग बहुत ही कृतज्ञ हैं कि बच्चों के साथ जो संवाद हुआ है वह अत्यन्त उपयोगी और महत्वपूर्ण है, इससे बच्चें जागरूक होंगे और आगे बढ़ सकेंगे। ऐसी परिस्थिति में हर रोज कम से कम दो स्कूलों में बाल सभा का आयोजन किया जाता है और बच्चों के साथ बात की जाती है। संवाद के दौरान उनसे राय भी ली जाती है और जलवायु परिवर्तन के कारणों और महत्व के बारे में संवेदित किया जाता है। यात्रा के दौरान किसानों-नव जवानों और समाज के विविध हितग्राही के साथ संवाद किया जा रहा है। जिससे व्यापक स्तर पर जल की प्रति जागरूकता बढ़ रही है।बच्चे बहुत अधिक यात्रा से सीख रहे हैं, जान रहे हैं और जल साक्षरता में अपनी रूची बढ़ा रहे हैं। बच्चों के अंदर जल के प्रति साक्षरता का बोध हो रहा है अभी से वह जानने की कोशिश कर रहे हैं।
सरकार के स्तर में सहयोग स्थानीय सरकारी अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है। पंचायतों में सरपंचों और लोगों के बीच में यात्रा को लेकर बहुत अधिक उत्साह है।यात्रा के सम्मान में गांवों में सैकड़ों की तादात में लोग यात्रा के स्वागत में आ रहे हैं और यात्रा का स्वागत कर रहे हैं।वह सब भी अपने इलाके को पानीदार बनाए रखने के लिए जल सहेलियों के साहसिक प्रयास की तारीफ करते हुए नहीं थक रहे हैं। जिस तरह से जल सहेलियों ने अपना घर, परिवार छोड़ कर और तमाम सारी असुविधाएं और दुश्वारियों के बाद भी इतनी लम्बी यात्रा निरंतर जारी रखी है, इसके कारण बुन्देलखण्ड के लोगों में एक अलग तरह का जल यात्रा को लेकर सम्मान बढ़ रहा है और सब तालाबों को और नदियों को पुर्नजीवित होता देखना चाहते हैं।
इस यात्रा में चल रहे सिने अभिनेता आरिफ शहडोली प्रायः लोगों को जल के महत्व एवं उसके उपयोग पर लोगों को ज्ञान दे रहे है, कि तालाब नदियों की मां है, यदि तालाब जिंदा रहेंगे तो नदी जिंदा रहेगी। इको सिस्टम है वह सुरक्षित रहेगा। इसलिए हर हालत में हमें तालाबों को बचाना है।
*लेखक झाँसी स्थित गैर सरकारी संस्था परमार्थ समाज सेवी संस्थान के प्रमुख हैं।