फ्यूजेरियम ग्रैमिनेयरम
जैविक आतंक: फ्यूजेरियम की खतरनाक साजिश
फ्यूजेरियम फ्ग्रैमिनेरम नामक फंगस केवल फसलों का ही दुश्मन नहीं है, वह इंसानों की भी जान के लिए बेहद खतरनाक है। यह कोई साधारण फंगस नहीं, बल्कि एक ऐसा खतरा है, जो खेतों से लेकर वैश्विक सुरक्षा तक को चुनौती देता है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए यह एक चेतावनी है कि हमें अपनी फसलों और खाद्य सुरक्षा को बचाने के लिए तत्काल और ठोस कदम उठाने होंगे। जागरूकता, विज्ञान, और सतर्कता ही इस खामोश दुश्मन से हमें बचा सकती है। यह छोटा-सा जीव, जो खेतों में चुपके से पनपता है, एक खामोश हत्यारा है, जो न केवल अनाज को नष्ट करता है, बल्कि मानव और पशु जीवन को भी खतरे में डाल देता है। एक साइंस जर्नल के मुताबिक, यह फंगस कृषि आतंकवाद का खतरनाक हथियार है।वैज्ञानिक इसे ‘एग्रो-टेरेरिज्म’ कहते हैं—एक ऐसी साजिश, जिसका मकसद फसलों को बर्बाद कर अर्थव्यवस्था को कमजोर करना और समाज में डर का माहौल पैदा करना है। इस फंगस से प्रभावित फसल के सेवन से मनुष्य और पशुओं की जान भी खतरे में पड़ सकती है।
फ्यूजेरियम फ्ग्रैमिनेरम एक ऐसा फंगस है, जो विभिन्न अनाजों के विकास को प्रभावित करता है। यह गेहूं, चावल, मक्का और जौ जैसी प्रमुख फसलों पर कहर बरपाता है। इससे उपज भी कम हो जाती है।एक बार जब यह फंगस किसी फसल में अपनी जड़ें जमा लेता है, यह फसल के परिपक्व होने के साथ फैलता चला जाता है। यह इतना चालाक है कि छोटे अनाज के तने और जड़ों जैसे पौधों के अनेक ऊतकों, उनके अवशेषों में जीवित रहने और नए पौधों को संक्रमित करने के लिए जाना जाता है। इसका सबसे घातक हथियार है ‘माइकोटॉक्सिन’, एक जहरीला पदार्थ, जिसे ‘वोमिटोक्सिन’ भी कहते हैं। यह विष दूषित अनाज खाने वाले इंसानों और पशुओं के लिए जानलेवा साबित होता है, जिससे उल्टी, दस्त, बुखार, हार्मोनल असंतुलन, और यहां तक कि प्रजनन समस्याएं हो सकती हैं।
इस फंगस ने हाल ही में वैश्विक सुर्खियां बटोरीं, जब अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई ने एक बड़ी जैविक आतंकी साजिश को नाकाम करते हुए मिशीगन यूनिवर्सिटी में शोध कर रही एक चीनी वैज्ञानिक युनकिंग जियांग को गिरफ्तार किया।जियांग पर आरोप है कि वह फ्यूजेरियम फ्ग्रैमिनेरम को अवैध रूप से चीन से अमेरिका लाई थी। यह फंगस विभिन्न तरह के रोग जैसे हेड ब्लाइट, रूट रॉट, और सीडलिंग ब्लाइट पैदा करता है। इसकी अधिकांश प्रजातियां मृदा-कवक हैं, और यह गेहूं, चावल, मक्का और जौ में हेड ब्लाइट रोग फैलाता है। इससे वोमिटोक्सिन पैदा होता है, जो अनाज को दूषित करता है। इसके विषाक्त द्रव्यों से हर साल अरबों डॉलर की फसल बर्बाद होती है, उपज कम होती है, और कृषि आय प्रभावित होती है।
इस साजिश का पर्दाफाश तब हुआ, जब एफबीआई ने पिछले साल जुलाई में जियांग के बॉयफ्रेंड लियू को डेट्रॉयट हवाई अड्डे पर संदिग्ध लाल पौधे के नमूनों के साथ पकड़ा।लियू ने पहले अनजान बनने की कोशिश की, लेकिन बाद में कबूल किया कि वह मिशीगन यूनिवर्सिटी की लैब में शोध के लिए इन नमूनों का इस्तेमाल करने वाला था। लियू पहले मिशीगन यूनिवर्सिटी की लैब में काम कर चुका था और अब चीन की एक यूनिवर्सिटी में कार्यरत है। उसने अपनी गर्लफ्रेंड जियांग के जरिए इस खतरनाक फंगस को लैब तक पहुंचाया। एफबीआई निदेशक ने इसे गंभीर मामला बताते हुए कहा कि चीन अमेरिकी संस्थानों में घुसपैठ कर खाद्य सुरक्षा को निशाना बनाने की साजिश रच रहा है। इस फंगस के अनधिकृत आयात से अधिक आक्रामक और कीटनाशक-प्रतिरोधी स्ट्रेन विकसित होने का खतरा है, जिससे नियंत्रण के उपाय कमजोर पड़ सकते हैं।
असलियत यह है कि फ्यूजेरियम फ्ग्रैमिनेरम भारत में भी पाया जाता है। अमेरिकी नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर भारत में गेहूं की फसलों में कई बार हेड ब्लास्ट के लक्षण देखे गए हैं। सौभाग्य से, समय रहते इस पर नियंत्रण पा लिया गया, लेकिन जलवायु परिवर्तन इस फंगस के फैलाव का प्रमुख कारण बन रहा है। खासकर गेहूं की फसलों के लिए यह एक बड़ा खतरा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के 2021 के सर्वे में हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु में इस फंगस की मौजूदगी का खुलासा हुआ था, जहां गेहूं के दानों में हेड ब्लाइट और स्टेम की समस्या देखी गई। 2021 और 2022 के रबी सीजन में कर्नाटक कृषि विश्वविद्यालय के सर्वे में उत्तरी कर्नाटक में भी हेड ब्लाइट की समस्या सामने आई।
अमेरिका में चीनी वैज्ञानिक द्वारा फ्यूजेरियम फ्ग्रैमिनेरम की तस्करी की घटना ने वैश्विक कृषि सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह एक चेतावनी है कि मिट्टी, बीज, और फसलें आतंकवाद के हथियार बन सकते हैं। यह फंगस अनाज को सड़ा देता है, जिससे इंसानों और मवेशियों की जान खतरे में पड़ सकती है।यह इतना सूक्ष्म होता है कि आसानी से पकड़ में नहीं आता और हवा, मिट्टी, और बीजों के जरिए फैलता है। इसके शुरुआती लक्षण सामान्य फसली रोगों जैसे होते हैं, लेकिन जब तक इसका पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। वैज्ञानिक इसे जैविक युद्ध का मौन हथियार मानते हैं, जिसका मकसद अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाना और समाज में भय फैलाना है।
भारत, एक कृषि प्रधान देश होने के नाते, इस खतरे के प्रति विशेष रूप से सतर्क रहना होगा। कृषि अर्थव्यवस्था में 17% से अधिक का योगदान देती है और देश की आधी से ज्यादा आबादी खेती पर निर्भर है। पंजाब, राजस्थान, और हिमाचल जैसे सीमावर्ती राज्य, जो चीन और पाकिस्तान से सटे हैं, इस खतरे के प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं। इन देशों को भारत की प्रगति रास नहीं आती। 2016 में बांग्लादेश से आए जहरीले फंगस मैग्नापॉर्थ ओराइजा पाथोटायप ट्रिटिकम ने पश्चिम बंगाल के दो जिलों में भारी तबाही मचाई थी।
इस फंगस का जहर बेहद खतरनाक है। यह दूषित भोजन (रोटी, अनाज, पास्ता, बीयर) या धूल के जरिए सांस या त्वचा के संपर्क से शरीर में प्रवेश करता है।यह जठरांत्र और प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है। शिशु, बच्चे, और कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोग इसके आसान शिकार होते हैं। इसके प्रभाव से उल्टी, दस्त, बुखार, हार्मोनल असंतुलन, प्रजनन संकट, त्वचा में जलन, और कोशिकाओं को भारी नुकसान हो सकता है। पशुओं में भूख की कमी, बांझपन, और लिवर-किडनी की खराबी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
भारत में कृषि अनुसंधान परिषद और कृषि विश्वविद्यालय फंगस-रोधी गेहूं की किस्मों पर काम कर रहे हैं। रोग-प्रतिरोधी बीजों का परीक्षण जारी है, लेकिन इसके साथ-साथ जैविक सुरक्षा मानकों को सख्त करना, अंतरराष्ट्रीय प्रयोगशालाओं से सहयोग, मौसम आधारित पूर्वानुमान प्रणाली, और आधुनिक निगरानी तंत्र विकसित करना जरूरी है।जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इतिहास में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने ब्रिटेन की फसलों को नष्ट करने के लिए कोलोराडो पोटैटो बीटल छोड़ा था। आज फ्यूजेरियम ग्रेमिनिएरम जैसे फंगस उसी तरह की साजिश का हिस्सा बन सकते हैं।
जरूरत है जागरूकता, प्रभावी चिकित्सकीय उपायों, और मजबूत निगरानी की। केवल तभी हम इस खामोश आतंकी से अपनी फसलों, अर्थव्यवस्था, और जिंदगियों को बचा सकते हैं।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।
फोटो: CC BY-SA 3.0

