गायों की दुर्दशा को देखकर सरकार ने निकाय एवं पंचायत स्तर पर गौशालाएं बनाने एवं उनके भरण पोषण हेतु समुचित प्रबंध किए गए हैं। लेकिन यह प्रयास इस प्रकार का है जैसे सोने के पिंजरे कैद पक्षी को चुगने के लिए मोती के दाने मिलने पर भी वह अपने को बेबस और लाचार महसूस करता है एवं वह उन्मुक्त हो खुले आकाश में स्वच्छंद उड़ना चाहता है।
वर्तमान में गाय जो भारतीय संस्कृति का मुख्य प्राणी है गोपालक की सेवा एवं उसके द्वारा दिए जाने वाले भोजन पानी से भले ही अपनी उदर पूर्ति करती हो लेकिन स्वभावतः गाय प्रतिदिन 8 -10 किलोमीटर पैदल चलकर विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों को खाकर ही अपने को तृप्त महसूस करती है।
खेतों में फसल रहते यह गायों को यह आजादी मिलना तो असंभव प्रतीत होती है किंतु फसल कट जाने एवं खेत खाली होने पर ग्रीष्म काल के तीन माह की अल्पकालिक आजादी तो गाय एवं गोवंश को मिल ही सकती है। गाय द्वारा जो वनस्पति खाई जाती है उसी से उसके दूध में औषधीय गुण उत्पन्न होते हैं जिसके कारण गाय के दूध को अमृत कहा जाता है। गौशालाओं में कैद गाय एवं गौवंश के चारागाहों में स्वतंत्रता पूर्वक विचरण से ही दूध अमृत समान हो पायेगा।
प्रत्येक गौशालाओं में उनके रखरखाव भोजन पानी का प्रबंध करने वाले कर्मचारियों द्वारा यदि गायों को सानी पानी भोजन करवा कर प्रति सुबह 9:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक खाली खेतों में अथवा जिन क्षेत्रों में वनभूमि नदी तटवर्तीय क्षेत्र हैं उनमें भ्रमण कराने के बाद गायों को प्रति शाम गौशाला में बंद करके भोजन पानी दिया जाए तो तिल तिल कर रोज मर रही गायों को आजादी से तीन माह घूमने के कारण उनमें पुनः जीवन संचार होने लगेगा।
लेकिन ग्राम प्रधान एवं नगरपालिका नगर पंचायत अध्यक्षों से इस विषय पर चर्चा करने पर वे उच्च अधिकारियों एवं शासन की मंशा का हवाला देते हुए गायों को गौशाला से न निकलने देने की अपनी मजबूरी बताते हैं।
यदि शासन प्रशासन चाहे तो इन तीन माह के लिए गौशालाओं के कर्मचारियों की देखरेख में गायों को प्रतिदिन 6 -7 घंटे के लिए गौशालाओं से बाहर खुले आकाश के नीचे स्वतंत्रता पूर्वक विचरण करने की अनुमति दी जा सकती है।
गाय घरेलू पशु है जो भारतीय संस्कृति का मुख्य प्राणी है। एक समय था जब लोग घर में बनने वाली पहली रोटी गुड़ और घी लगाकर गाय को खिलाते थे, बाहर जाते समय घर से निकलकर गाय के पैर छूकर अपने काम को सफल होने एवं अपनी यात्रा मंगलमय होने की कामना करते थे।
लेकिन पशुओं में श्रेष्ठ गाय के भाग्य की विडम्बना है कि जिस गाय की पूजा करते हुए प्रत्येक भारतीय एवं सनातनी अपने को सौभाग्यशाली महसूस करता था आज वही पूज्य गौमाता मानव के स्वार्थी नियत का शिकार होकर पहले बेसहारा हो इधर-उधर भटकने लाठी कुल्हाड़ी के प्रहारों से घायल होने को मजबूर हुई है।
*वरिष्ठ पत्रकार