
अजय शिंदे
बसंत ऋतु को ऋतुराज कहा जाता है। बसंत का उत्सव प्रकृति का उत्सव है। सतत सुंदर लगने वाली प्रकृति बसंत ऋतु में सोलह कलाओं से खिल उठती है।
बसंत पंचमी, प्रकृति और ज्ञान के संगम का पर्व है।
अधिकांश हिंदू त्यौहार प्रकृति के चक्रों से निकटता से जुड़े होते हैं और आध्यात्मिकता और पर्यावरण के बीच परस्पर क्रिया से समग्र रूप से जुड़े होते हैं। बसंत पंचमी का त्यौहार जो बसंत ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है, इससे अलग नहीं है।
बसंत पंचमी समुद्र तट की उदासी के बाद प्रकृति के जगने का प्रतीक है। नये जीवन को समरूपता घटित होते देखना, फूलों को खिलते देखना और पक्षियों के चहचहाने की वापसी, प्रकृति के चक्रीय चमत्कारों के प्रति विस्मय और प्रशंसा की भावना पैदा होती है। खिलते हुए सरसों के पौधे और सूरज की चमक का प्रतीक, जीवंत पीले रंग का परिदृश्य और उत्सव पर हावी रहता है।
बसंत पंचमी का संदेश केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व और ब्रह्मांड के कल्याण के लिए प्रेरणादायक है। प्रकृति को सहेजने से जीवन खिलता है और संस्कृति को सहेजने के लिए साहित्य और सुसंस्कृत वाणी की आवश्यकता होती है।
भारत से ही पूरे विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैला है। ज्ञान एक ऐसा दान माना जाता है जिसे देने से वह कभी घटता नहीं, बल्कि बढ़ता जाता है।
बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा के साथ ही बसंत ऋतु का प्रारंभ हो जाता है। बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा आराधना की जाती है। इसका तात्पर्य यह है कि हम अपने भीतर के ज्ञान, बुद्धि और विवेक का समुचित उपयोग करते हुए अपने जीवन के बारे मे कोई निर्णय लें यानि अपने जीवन का संगीत वाद्य हमारे हांथ में हो।
ग्रंथों के अनुसार देवी सरस्वती विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित तेजस्विनी व अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघ मास की पंचमी तिथि निर्धारित की गई है। बसन्त पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना जाता है। ऋग्वेद में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन है। मां सरस्वती विद्या व ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं। कहते हैं जिनकी जिव्हा पर सरस्वती देवी का वास होता है वे अत्यंत ही विद्वान व कुशाग्र बुद्धि होते हैं।
बसंत केवल प्रकृति का श्रृंगार कारक ही नहीं अपितु मानवीय चेतना को उदभासित करने वाला भी है। वीणा और पुस्तक धारिणी मां शारदे को बसंत का आध्यात्मिक देवी मानकर उनकी पूजा अर्चना का विधान इसी संदर्भ में किया जाता है।यह पर्व जीवन को मधुर और सरस बनाने का पर्व है।
बसंत पंचमी का पर्व भारत की सनातन संस्कृति का प्रमुख पर्व है जिनके आने पर शरद ऋतु की ठिठुरन गुनगुनी धूप से मद्धिम पड़ जाती है। प्रकृति भी इठलाती हुई नजर आती है। हालाकि जलवायु परिवर्तन के कारण फर्क पड़ रहा है। फिर भी बसंत ऋतु में मन की प्रफुल्लता कुछ अच्छा नवीन करने के लिए प्रेरित करती है। ऐसे में बसंत जीवन का संगीत बन जाता है।
बसंत पंचमी पर पीले रंग का विशेष महत्व होता है। प्रकृति की चमक और जीवन की जीवंतता को दर्शाने वाले पीले रंग के रूपांकन दिन भर बार-बार दिखाई देते हैं । रामायण में महर्षि वाल्मीकि ने बसंत का अत्यंत मनोहारी चित्रण किया है। भगवान कृष्ण ने गीता में ‘ऋतुनां कुसुमाकरः’ कहकर बसंत को अपनी सृष्टि माना है।
यौवन हमारे जीवन का मधुमास बसंत है तो बसंत इस सृष्टि का यौवन। मानव को अपने स्वास्थ्य और जीवन के सौंदर्य के लिए प्रकृति के अनुपम सान्निध्य में जाना चाहिए। प्रकृति में ऐसा जादू है कि मानव की वह समस्त वेदनाओं को तत्काल भुला देता है। प्रकृति का सान्निध्य यदि सदैव प्राप्त होता रहे तो मानव जीवन पर उसका प्रभाव बहुत ही गहरा होता है। निसर्ग में अहंकार नहीं है। अत: वह प्रभु के अत्यधिक निकट है। इसी कारण निसर्ग के सान्निध्य में जाने पर हम भी स्वयं को प्रभु के अधिक निकट महसूस करते हैं।
प्रकृति की सुंदरता व मानव की रसिकता में यदि प्रभु की भक्ति न हो तो वह विलास का मार्ग बनकर मनुष्य को विनाश के गर्त में डाल देती है। इसलिए ब संत के संगीत में भक्ति है।