बाँदा: प्रगतिशील काव्य धारा में वृहत त्रयी के तीन शीर्षस्थ कवि हैं – केदार नाथ अग्रवाल, नागार्जुन तथा त्रिलोचन। केदार नाथ अग्रवाल का जन्म बाँदा जनपद के कमासिन गाँव में 01 अप्रैल 1911 को हुआ था। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई करके बाँदा लौटे और वकालत करने लगे।वे एक बार जिला शासकीय अधिवक्ता (डीजीसी) फौजदारी बने तो उनकी ईमानदारी और मुकदमों में उनकी मेहनत के चलते वे रिटायरमेंट तक उसी पद रहे। ऐसा कम देखने को मिलता है।
कविता लिखने का शौक केदार ने बचपन में ही पाल लिया था। उनका रुझान कविता की तरफ बढ़ता चला गया। जब उनका कविता संग्रह “फूल नहीं, रंग बोलते हैं” प्रकाशित होकर आया, तो उस कविता-संग्रह ने साहित्य जगत में धूम मचा दी। उनका नाम बड़े कवियों में शामिल हो गया। इसी कविता-संग्रह में उनको अंतरराष्ट्रीय महत्व के सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया और रूस घूमने का अवसर प्राप्त हुआ। इसके बाद उनको बड़े महत्व के अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा जाता रहा।
कालांतर में अपने युग के सर्वश्रेष्ठ आलोचक डॉ रामविलास शर्मा ने केदार नाथ अग्रवाल पर एक आलोचनात्मक पुस्तक लिख दी, तो कवि केदार का कद प्रगतिशील कवियों के शिखर पर पहुँच गया।
अब अपने गृह जनपद में भी उनकी जय फैली। इसी क्रम में उनके दो प्रथम शिष्य बने – कृष्ण मुरारी पहारिया और इकबाल बहादुर श्रीवास्तव उर्फ अजित पुष्कल। बाबा नागार्जुन ने अपने बाँदा आगमन पर इन दोनों शिष्यों का रचनात्मक अवदान और सुचिंतित धारा का लेखन देख सुनकर तथा पढ़कर केदारनाथ से कहा, “शिष्य तुम्हारे शब्द शिकारी / तरुण युगल इकबाल मुरारी॥”
बाबा नागार्जुन ने केदार जी पर भी एक लंबी कविता लिखकर उनके पूरे व्यक्तित्व एवं कृतित्व को उजागर कर दिया। उनकी लंबी कविता के कुछ अंश याद आ रहे हैं – ” केन कूल की काली मिट्टी, वह भी तुम हो/ कालिंजर की चौड़ी छाती, वह भी तुम हो/ कुपित कृषक की टेढ़ी भौंहे, वह भी तुम हो, / ग्राम वधू की दबी हुई कजरारी चितवन, वह भी तुम हो/ तुम्हें भला क्या पहचानेंगे बाँदा वाले…”।
इन्ही दिनों केदार जी के पास स्थानीय साहित्यकारों और साहित्य प्रेमियों का जमावड़ा लगने लगा। उनके पास नियमित रूप से बैठकी करने वालों में कृष्ण मुरारी पहारिया, एहसान आवारा तथा दो प्रमुख युवा रचनाकार थे गोपाल गोयल और जयकांत शर्मा। ये दोनों छह फीट लंबे कद के थे। इसलिए केदार जी इनको अपनी “दो सारसें” कहते थे। अपने अनेक कविता-संग्रहों में उन्होंने इन दोनों सारस का उल्लेख बार-बार किया है।
लगभग पाँच वर्ष पूर्व कैंसर की बीमारी से जयकांत शर्मा कालकवलित हो गए। सारसों का जोड़ा टूट गया। लेकिन गोपाल गोयल ने अकेले दम मोर्चा सँभाला। वे स्थानीय डीएवी कालेज में प्रवक्ता रहे। सेवानिवृत्त होते ही उन्होने दिल्ली से “मुक्तिचक्र” पत्रिका के प्रकाशन की शुरुआत की। ज्ञात रहे कि “मुक्तिचक्र” शीर्षक भी कभी केदार जी ने ही गोपाल गोयल को सुझाया था। शुरूआत में यह अखबार के रूप में छपता रहा। आर्थिक संकट के कारण प्रकाशन कभी नियमित नहीं रहा।
वर्ष 2018 से “मुक्तिचक्र” को रंगीन मासिक पत्रिका के रूप प्रकाशन शुरू हुआ। तभी गोपाल गोयल ने केदारनाथ अग्रवाल की शिष्य परंपरा के साथियों को एकत्र करके “मुक्तिचक्र जनकवि केदारनाथ स्मृति सम्मान” की स्थापना की। इस काम के सहयोगी बने युवा आलोचक उमाशंकर सिंह परमार, वरिष्ठ कवि जवाहर लाल जलज, प्रद्युम्न कुमार सिंह, नारायन दास गुप्त, आनंद सिन्हा, अशोक त्रिपाठी जीतू, शक्तिकांत, अनिल शर्मा, दीनदयाल सोनी, रामऔतार साहू, कालीचरण सिंह आदि।
इन सभी ने संकल्प लिया कि प्रतिवर्ष किसी एक बड़े कवि को इस सम्मान से बाँदा मे ही सम्मानित किया जाएगा। किसी भी व्यक्ति से कोई आर्थिक सहयोग या चंदा नहीं लेंगे। अपनी अपनी जेब के और मुक्तिचक्र के बलबूते ही आयोजन करेंगे।
वर्ष 2018 से शुरू यह सम्मान समारोह अब तक जारी है। उल्लेखनीय बात यह है कि इस आयोजन में सम्मानित होने वाले कवि और आयोजन में देश के दूर दराज इलाकों से शामिल होने वाले साहित्यकार अपने अपने खर्चे पर आते जाते हैं। स्थानीय स्तर पर आयोजकों की ओर से सिर्फ आवास और भोजन की व्यवस्था रहती है। सम्मानित होने वाले कवि को बहुत आकर्षक प्रशस्तिपत्र, अंगवस्त्र आदि से सम्मानित किया जाता है। इसी के साथ साथ सम्मानित होने वाले कवि पर एक आलोचनात्मक पुस्तक प्रकाशित करने की योजना है, जो इस वर्ष पूरी हो रही है।
अब तक के सम्मानित कवियों की यदि बात करें, तो वर्ष 2018 में डॉ सुधीर सक्सेना को यह सम्मान मिला। वे वरिष्ठ कवि, लेखक, आलोचक तथा “दुनिया इन दिनों” पत्रिका के संपादक हैं। इसी क्रम में वर्ष 2019 में झारखंड के आदिवासी इलाके के वरिष्ठ कवि शंभु बादल को यह सम्मान मिला। शंभु बादल के अनेक कविता-संग्रह आ चुके हैं। वे एक साहित्यिक पत्रिका “प्रसंग” का भी नियमित प्रकाशन कर रहे हैं। इसी क्रम में वर्ष 2020 में छत्तीसगढ़ राज्य के आदिवासी इलाके जगदलपुर (बस्तर ) के कवि विजय सिंह को यह सम्मान दिया गया। विजय सिंह के अनेक कविता-संग्रह आ चुके हैं। वे “सूत्र” नाम से एक पत्रिका भी निकालते हैं। इसके अतिरिक्त वे नाट्य कर्मी भी हैं। वर्ष 2021 का यह सम्मान लखनऊ के वरिष्ठ कवि कौशल किशोर को मिला। उनके अनेक कविता-संग्रह हैं। वे साहित्य की एक पत्रिका “रेवांत” के संपादक हैं तथा सोशल एक्टिविस्ट भी हैं। वर्ष 2022 का सम्मान एक ऐसे कवि को मिला, जो कवि होने के साथ-साथ राष्ट्रीय महत्व के रंगकर्मी, शिल्पी तथा कलाकार भी हैं। वे अर्थात कुँअर रवीन्द्र रायपुर से आते हैं। वर्ष 2023 का यह “मुक्तिचक्र केदारनाथ अग्रवाल सम्मान” बीकानेर राजस्थान के अति महत्वपूर्ण और वरिष्ठ कवि नवनीत पाण्डेय को प्रदान किया गया। वे हिन्दी और राजस्थानी भाषा में छोटी छोटी धारदार कविताएँ लिखते हैं। उन्होने केदार साहित्य का राजस्थानी में अनुवाद भी किया है। उनके अनेक कविता-संग्रह प्रकाशित हैं।
वर्ष 2024 का सम्मान भोपाल की वरिष्ठ कवियित्री प्रज्ञा रावत को प्रदान किया गया। उनके कविता-संग्रह साहित्य जगत में बहुत सराहे जा रहे हैं। वे प्रगतिशील लेखक संघ के आधार स्तंभ कवि भगवत रावत की बेटी हैं। सम्मान समारोह का आयोजन बाँदा के जैन धर्मशाला में “मुक्तिचक्र” पत्रिका और जनवादी लेखक मंच, बाँदा की ओर से संयुक्त रूप से किया गया। बाँदा की जनवादी परम्परा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने वाले प्रखर आलोचक, उम्दा कवि व व्यंग्य में अपने ठेठ देशी अंदाज में साहित्य सृजन करने वाले प्रखर वक्ता उमाशंकर सिंह परमार ने बीज वक्तव्य दिया। कार्यक्रम के चतुर्थ समापन सत्र के अवसर पर जनकवि केदारनाथ अग्रवाल की प्रिय नदी केन के तट पर कवि गोष्ठी संपन्न हुई। इसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि नवनीत पाण्डे ने की।
22 जून 2024 को बाँदा के केदार सम्मान में साहित्यकारों का जुटान एक ऐतिहासिक घटना थी।इस कार्यक्रम की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि यह रही कि जनकवि केदारनाथ के प्रथम कवि शिष्य स्मृतिशेष कृष्ण मुरारी पहारिया की 75 कविताओं की विलुप्त पांडुलिपि का मिलना। इसका एकमात्र श्रेय दिल्ली के पत्रकार मुकुन्द को है कि उन्होंने इसे दिल्ली में खोज निकाला और उपलब्ध कराया। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि पहारिया जी के जीते जी उनका एकमात्र कविता संग्रह, “यह कैसी दुर्धष चेतना” डा रेनू चन्द्र, डा रमेश चन्द्र, अमित सक्सेना, अनिल सिंदूर, के के गुप्ता और उरई के कई संवेदनशील साथियों के प्रयासों से प्रकाशित कराया गया था। उस कविता संग्रह की अनुगूंज आज तक विद्यमान है। कार्यक्रम के संयोजक एवं “मुक्ति चक्र” पत्रिका के संपादक गोपाल गोयल ने एक सुखद जानकारी यह दी कि कृष्ण मुरारी पहरिया की इन पिचहत्तर कविताओं के कविता-संग्रह का विमोचन वर्ष 2025 में “मुक्तिचक्र जनकवि केदारनाथ अग्रवाल स्मृति सम्मान” के अवसर पर किया जायेगा।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि केदार बाबू के एकमात्र पुत्र अशोक अग्रवाल ने अपने पिता की स्मृति संजोने की कोई कोशिश नहीं की, उल्टे सभी परिजनों ने मिलकर केदार जी के पैतृक आवास रातोंरात बेच डाला। इस खबर ने बाँदा के केदार प्रमियों को गहरा आघात पहुँचाया। एक तथाकथित एकाक्षी और कृतघ्न कवि केदार जी का विपुल साहित्य रातोंरात ढो कर ले गया, जिसमें केदार जी की अनेक पांडुलिपियाँ भी थीं।
केदार बाबू के एकमात्र पुत्र अशोक अग्रवाल ने अपने पिता केदारनाथ अग्रवाल की स्मृतियों को भले ही मिटा दिया हो, लेकिन दूसरे अशोक अर्थात जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक त्रिपाठी जीतू ने कचहरी परिसर में केदारनाथ अग्रवाल की प्रतिमा स्थापित कराई। इस कार्य मे केदार बाबू के शिष्य जिला जज शक्तिकांत श्रीवास्तव का विशेष सहयोग उल्लेखनीय है। इस घटना में खास बात यह भी है कि अशोक जीतू के पिता रामरतन शर्मा जनसंघ पार्टी के सांसद थे, लेकिन केदार बाबू के प्रशंसक थे। अशोक जीतू भी केदार जी के शिष्यवत थे, इसीलिए उन्होंने अपने गुरु ऋण को चुका दिया, उनकी मूर्ति स्थापित कराकर।
“अंत मे केदार बाबू की एक बहुचर्चित कविता का उल्लेख जरूरी है ~
“जिऊँगा लिखूँगा
कि मैं जिंदगी को
तुम्हारे लिए और अपने लिए भी
अनूठी मिली एक निधि मानता हूँ
कि मैं लेखनी को
हिमालय हॄदय और सागर हृदय की
सती पार्वती और रमा मानता हूँ।”
*वरिष्ठ पत्रकार
बहुत शानदार प्रस्तुति। बेहतरीन कवरेज। संक्षेप में भी विस्तृत और सारगर्भित लेखनुमा रिपोर्ट ~ अनिल भाई की मुक्त कंठ से सराहना और Global Bihari को बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार।
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