उत्तराखंड राज्य का टिहरी गढ़वाल जिला बाढ़ और भूस्खलन के लिए बहुत संवेदनशील है। यहां पर बाल गंगा, भिलंगना, भागीरथी और इसमें मिलने वाले सैकड़ो छोटे-बड़े गाड़ -गदेरे बरसात के समय में बहुत संवेदनशील हो गए हैं जो आबादी वाले स्थान के लिए बहुत जानलेवा साबित हो रही है। पूरे हिमाचल और उत्तराखंड में 2024 में जिस तरह की भीषण आपदा आयी थी उसका रूप बालगंगा और धर्मगंगा में भी देखा गया है जहां पर 2024-25 मे भंयकर जल प्रलय ने एक बार फिर से 2013 की केदारनाथ आपदा की याद दिला दी थी।
बालगंगा और धर्मगंगा, इन दोनों नदियों का उद्गम सहस्रताल ग्लेशियर से ही है। इस क्षेत्र में पिछले 20-25 वर्षों में भारी मात्रा में निर्माण कार्यों का मलवा नदियों में डाला गया है। नदियों के रास्ते के दोनों ओर विकास के लिए अति महत्वपूर्ण सड़कों की लाइनें खींचने का काम किया जा रहा है। थाती गांव से बहुत दूरस्थ क्षेत्र पिन्स्वाड गांव तक 20-25 किमी सड़क बनाने के दौरान अनेकों बार भूस्खलन होता रहा जिसका मलवा धर्म गंगा में गिरता रहा है। बाल गंगा की तरफ भी यही हाल दो दशकों में पैदा हुए हैं। इस क्षेत्र में वनों का व्यावसायिक दोहन भी हो रहा है, नदियों में खनन भी चल रहा हैं। पर्यावरण और मौसम परिवर्तन के कारण बारिश का समय भी बदल गया है।अब पहले की जैसी वर्षा नहीं हो रही है।
बरसात की हर रात पहाड़ों के लिए जानलेवा साबित हो रही है। हिमालय के उत्तर- पूर्व, पश्चिम और मध्य क्षेत्र में स्थिति गंभीर बन गई है कि यहां मानसून आने से पहले ही जगह-जगह बाढ़ और भूस्खलन देखा जा रहा है। 2023- 24 में हिमाचल और उत्तराखंड की बाढ़ ने भविष्य के लिए इस तरह के संकेत दिये हैं कि यदि मनुष्य अपनी जीवन शैली को बदलते जलवायु और मौसम परिवर्तन के अनुसार अनुकूलित नहीं कर पाएगा तो बड़े पैमाने पर विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा।
26- 27 जुलाई 2024 में बहुत देर से बारिश हुई थी। इससे पहले जून के महीने में बहुत ऐतिहासिक गर्मी पड़ी थी। तापमान 42 डिग्री तक चला गया था।लेकिन जब जुलाई के इन अंतिम दिनों में ही पहली बारिश हुई तो उसने ही यहां ऐसी खतरनाक तबाही का मंजर खड़ा कर दिया जिसमें बड़ी मात्रा में दोनों नदियों के किनारे की फसल चौपट हो गई थी। खेती मलवे में बदल गयी। लोगों के घराट बह गये।मकान और मवेशी बर्बाद हुए। यहां इन दो नदी के बीच में प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर थाती गांव के दोनों ओर भी भारी नुकसान हुआ। बाल गंगा के उद्गम में लगभग आधा दर्जन गांवों की आजीविका के साधन खेती बाड़ी, फसल बाढ़ में बह गये थे। तिनगढ़ गांव की हालात सबसे ज्यादा चिंताजनक बनी। जहां पर गांव के पीछे से बनायी गयी सिंचाई नहर से जल रिसाव के कारण गांव का अधि संख्य क्षेत्रफल मलवे में दब गया था। सरकार ने यहां इस गांव को पूरी तरह विस्थापित करने की योजना बनायी है। धीरे-धीरे गांव के लोग यहां से निकलकर इसके बगल में सुरक्षित स्थान पर घर बना रहे हैं।भले ही उन्हें भवन निर्माण के लिए उतनी पर्याप्त सहायता तो नहीं मिली है लेकिन वह अपने बल पर जितना बना सकते हैं उसके लिए रात दिन मेहनत कर रहे हैं। यह भी सत्य है कि उन्हें उस तरह के मकान और आगे का आंगन और सड़क सुविधा पूर्व की भांति तो नहीं मिलेगी। जबकि नये स्थान पर बसाये जा रहे हैं इस गांव तक सड़क ले जाने की भी योजना बनायी गयी है।
टिहरी गढ़वाल जनपद के भिलंगना ब्लॉक के अंतर्गत यह स्थान पड़ता है।जहां थाती गांव में पवित्र बूढ़ा केदारनाथ का मंदिर भी है। जहां पर चार धाम यात्रा के समय हजारों यात्री दर्शन करने के लिए भी पहुंच रहे हैं। 2024 की बाढ़ ने इस स्थान की खूबसूरती को बहुत नुकसान पहुंचाया है।अब यहां पर धीरे-धीरे सरकारी सहायता के द्वारा नदी के दोनों तरफ सुरक्षा दीवाल बनायी जा रही है। जिसे पूरा होने में आगामी एक वर्ष तक का समय लग सकता है। इस क्षेत्र में ऐसे भी अनेकों लोगों के घर बाढ़ में बह गये। जहां पर उनके दुकान, होटल और बाहर से आने वाले लोगों के लिए होमस्टे जैसी व्यवस्था थी। जिन्हें दोबारा पूर्व की स्थिति में लौटना मुश्किल होगा। क्योंकि उनके पास कोई व्यवस्था नहीं है कि उन्हें दूसरे स्थान पर पुनर्निर्माण के लिए सहायता मिल सके। इतना जरूर है कि सरकार ने अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को वापस लौटाने के लिए टूटी-फूटी सड़कों को फिर से बहाल कर दिया है। पेयजल लाइनें, आवागमन के रास्ते खुलने लगे हैं। थाती और रगस्या गांव के दोनों ओर सुरक्षा दीवार बनायी जा रही है।
यह स्थिति 2025 में भी सामने आ रही है। इस क्षेत्र में फिर से दो-तीन जुलाई 2025 को भीषण बाढ़ आई। जिन स्थानों में अभी तक क्षतिपूर्ति के उपाय नहीं हुए थे उसको फिर भारी नुकसान पहुंचा दिया है।
इस क्षेत्र में बाढ़ सुरक्षा के नाम पर अभी भी ऐसे महत्वपूर्ण प्रभावित स्थानों की उपेक्षा की गयी है। जिन्होंने पिछले 40 वर्षों में आयी बाढ़ के समय हजारों लोगों की सेवा की है। प्रभावितों को राहत सामग्री दिलवायी विधवाओं के मकान बनवाये और गरीब लोगों के घरों का पुनर्निर्माण करवाया है। उसमें एक चर्चित नाम प्रसिद्ध सर्वोदय नेता और समाजसेवी स्व० बिहारी लाल जी का आता है। जिन्होंने यहां धर्म गंगा-बालगंगा नदी के संगम पर 1977 में लोक जीवन विकास भारती की स्थापना की थी। संस्थान ने नई तालीम, पंचायती राज, रोजगार के लिए ग्रामीण उद्योग धंधों का प्रशिक्षण और छोटी पन बिजली आदि के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके द्वारा स्थापित यह केंद्र बाहर से आने वाले सरकारी और गैर सरकारी लोगों के रात्रि विश्राम का एक महत्वपूर्ण स्थान के रूप में भी जाना जाता है। जो गत वर्ष की बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुआ हैं। संस्थान के परिसर के सामने एक बड़ा संकट पैदा हो गया है कि पिछले दो-तीन वर्षों में ऊपरी क्षेत्र से बहकर आया अधिकांश मलवा इसके सामने इकट्ठा हो गया है जिसने यहां पर बहुत नुकसान पहुंचाया है।
जिस तरह की बाढ़ हर वर्ष आ रही है उसके अनुसार भविष्य में संकेत बता रहे हैं कि इसके निचले क्षेत्र में टिहरी बांध के जलाशय तक भारी मात्रा में गाद जमा होने की संभावनाएं बढ़ गयी है। यहां के सामाजिक कार्यकर्ताओं और लोक जीवन विकास भारती के मंत्री जय शंकर नगवान बार-बार इसकी गुहार स्थानीय शासन -प्रशासन से लगा रहे है लेकिन अभी तक यहां पर बाल गंगा नदी को सुरक्षित स्थान पर डाइवर्ट करने और सुरक्षा दीवाल हेतु अपेक्षित सरकारी सहयोग प्राप्त नहीं हो पा रहा है। भविष्य में इसकी गुंजाइश तभी बन सकती है जब स्थानीय स्तर पर जिलाधिकारी, सिंचाई विभाग में बाढ़ नियंत्रण में लगे हुए इंजीनियर और आपदा प्रबंधन विभाग से जुड़े हुए लोग सकारात्मक सहयोग देंगे।
अभी तक केवल स्थानीय विधायक शक्ति लाल शाह ने जून के अंतिम सप्ताह में 5-6 दिन के लिए बालगंगा नदी को सुरक्षित स्थान की तरफ मोड़ने के लिए और मलवा हटाने के लिए जेसीबी मशीन भेजी थी। लेकिन कुछ कार्य करने के बाद दो-तीन जुलाई को फिर से भारी बाढ़ आ गई और स्थिति पूर्व की भांति हो गई है।
यहां बार-बार मांग की जा रहा है कि बाल गंगा नदी के निचले क्षेत्र को सुरक्षित रखने के लिए लोक जीवन विकास भारती के परिसर में जमा हुए मलवे को सही स्थान की तरफ समय रहते यदि निस्तारित नहीं किया गया तो संकट के घने बादल बालगंगा नदी तट की आबादी पर मंडरा रहा है।
*लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता हैं।



