धरती का तापमान जिस तेजी से बढ़ रहा है वह समूची दुनिया के लिए ख़तरनाक संकेत है। देखा जाये तो तापमान में बढ़ोतरी नित नए कीर्तिमान बना रही है। बीते नौ सालों ने तो धरती के सर्वाधिक गर्म होने का रिकार्ड कायम किया है। असलियत यह है कि दिन ब दिन, महीने दर महीने, साल दर साल तापमान में बढ़ोतरी के रिकार्ड ध्वस्त होते जा रहे हैं। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इस पर अंकुश की कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही। क्योंकि तापमान को नियंत्रित करने के बारे में किये गये सारे प्रयास अभी तक नाकाम साबित हुए हैं। जहां तक देश का सवाल है, देश का बड़ा हिस्सा आजकल झुलसा देने वाली गर्मी की चपेट में हैं। सच तो यह है कि इस भीषण गर्मी की मार से पहाड़ से लेकर मैदान तक सब जल रहे हैं। गर्मी ने सारा जन जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है और लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। हकीकत में गर्मी से बुरा हाल है। रात -दिन चल रहे एयर कंडीशनर और कूलर भी फेल हो रहे हैं। बिजली की मांग पूरी न होने के कारण फाल्ट बढ़ रहे हैं और ट्रांसफार्मर फुंक रहे हैं। इससे बिजली कटौती की हालत में लोग हाय-हाय कर रहे हैं। देश की राजधानी दिल्ली सहित राजस्थान, पंजाब, गुजरात, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में तापमान 45 डिग्री को भी पार कर गया है। जबकि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के इलाकों नजफगढ़ और मुंगेशपुर में सोमवार 27 मई को तापमान 48.8 डिग्री तक पहुंच गया। यहां दिल्ली -हरियाणा से लगती सीमा के इलाकों में सबसे ज़्यादा लोगों को गर्मी की मार झेलनी पड़ी है। यही नहीं हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में तापमान 40 डिग्री को पार कर गया है। दरअसल पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से भारत की ओर आने वाली गर्म हवाओं ने खासा असर डाला है। मौसम विज्ञान विभाग ने तो उपरोक्त राज्यों के लिए रेड अलर्ट जारी कर दिया है। जबकि बिहार और मध्य प्रदेश के लिए यलो अलर्ट है। बढ़ते तापमान में दिल्ली का मुंगेशपुर इलाका पहले, उत्तर प्रदेश का आगरा का ताजमहल वाला इलाका दूसरे और मध्य प्रदेश के दतिया का इलाका तीसरे स्थान पर रहा है। मौसम विज्ञान विभाग ने तो लोगों के लिए जारी रेड अलर्ट में गर्मी से बचने और शरीर में पानी की कभी होने से बचने की सलाह दी है। डाक्टर दिन में कम से कम आठ से दस गिलास पानी पीने की सलाह दे रहे हैं।
आने वाले दिनों में तापमान में कमी की उम्मीद ही बेमानी है
बर्लिन स्थित मर्केटर रिसर्च इंस्टीट्यूट इन ग्लोबल कामंस एण्ड क्लाइमेट चेंज का अध्ययन तो यही संकेत देता है कि आने वाले दिनों में तापमान में कमी की उम्मीद ही बेमानी है। विज्ञान पत्रिका नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार तो धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने के प्रयास बेहद कठिन हैं। अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक यदि योजनाओं को पूरी तरह भी लागू कर दिया जाये तो भी कार्बन की वार्षिक मात्रा वर्ष 2030 तक 0.5 गीगाटन और वर्ष 2050 तक 1.9 गीगाटन बढ़ेगी। जबकि 2050 तक कम से कम 3.2 गीगाटन कार्बन उत्सर्जन कम होना चाहिये। ऐसे में पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करना नामुमकिन है। यह सीमा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 2015 के पेरिस समझौते में इसी 1.5 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान को दुनिया की सुरक्षा के लिए ख़तरनाक सीमा माना गया था। गौरतलब है कि यह स्थिति तब है जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में बीते दो हजार सालों का रिकार्ड 2023 की गर्मी से टूट चुका है। इस अवधि में सामान्य से तापमान चार डिग्री सेल्सियस अधिक था। इस बारे में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर उल्फ बंटगेन का मानना है कि 2023 एक असाधारण गर्म वर्ष था और यह तब तक जारी रहेगा जब तक कि हम ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी नहीं करते। कैम्ब्रिज विश्व विद्यालय के शोधकर्ताओं का दावा है कि पिछले साठ वर्षों में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के कारण होने वाली ग्लोबल वार्मिंग के कारण अल-नीनो मजबूत हो रहा है जिसके चलते गर्मी बढ़ रही है। इस साल संभावना है कि गर्मी में तापमान फिर रिकार्ड तोड़ेगा। सिडनी विश्व विद्यालय में हुए एक अध्ययन की मानें तो धरती के गर्म होने के पीछे मंगल ग्रह है। इसका कारण लाल ग्रह का गुरुत्वाकर्षण बल है जो हर 24 लाख वर्ष में धरती को सूर्य की ओर खींचता है। इससे धरती पर सौर ऊर्जा में वृद्धि होती है और मौसम गर्म हो जाता है। अध्ययन के मुताबिक धरती से मंगल ग्रह की दूरी 22.5 करोड़ किलोमीटर है। परन्तु दोनों ग्रह के बीच करोड़ों साल पुराने रिश्ते हैं जो धरती के वातावरण को प्रभावित करते हैं। धरती और मंगल ग्रह के बीच खींचने और धकेलने की प्रक्रिया चलती है। इससे धरती की जलवायु प्रभावित होती है। ग्रह अपनी कक्षा में दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में घूमते हैं। इस कारण दोनों ग्रह एक-दूसरे के नजदीक पहुंचते हैं तब ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है। यह प्रक्रिया चार करोड़ साल से अधिक से जारी है।
अब तक आर्कटिक महासागर में ग्लोबल वार्मिग का सबसे ज़्यादा असर
दरअसल अभी तक यह माना जाता था कि चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण समुद्र में ज्वार-भाटा आता है, पर नये अध्ययन से साफ हो गया है कि मंगल भी धरती को प्रभावित करता है। इससे धरती ही नहीं, महासागर भी गर्म होते हैं। हर 24 लाख वर्ष में होने वाली यह प्रक्रिया लम्बी चलती है। इससे समुद्र गर्म होते हैं और धरती की जलवायु स्थिर होने लगती है। इसका मुख्य कारण यह होता है कि इस दौरान धरती पर सौर ऊर्जा का असर ज्यादा रहता है। बेहद गर्म यह सौर ऊर्जा न सिर्फ समुद्र को गर्म करती है बल्कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को भी बढ़ाती है। जर्मन और स्विस वैज्ञानिक बढ़ते तापमान के लिए सागर के नीचे दबी मीथेन को एक बड़ा कारण मानते हैं। एक नयी रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है कि 1945 में अरब सागर में एक बड़ा भूकंप आया था। उसकी तीव्रता 8.1 थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्र तल के नीचे नएसंट लिए नामक जगह पर गैस का भंडार था जिसमें भूकंप से विस्फोट हुआ। तब से लेकर अबतक तकरीब 74लाख घनमीटर मीथेन बाहर निकली है। इसके अलावा भी अरब सागर में और भी इलाके हो सकते हैं जहां समुद्री जल में दरारें हैं और वहां से गैस निकली हो। ब्रेमन यूनीवर्सिटी के डेविड फिशर कहते हैं कि अध्ययन में इस बात का भी पता चला है कि भूकंप से तलछट अलग हो गया जिस वजह से नीचे फंसी मीथेन गैस समुद्र में आ गयी। हाल ही में नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्वी साइबेरियाई सागर के तट से 50 अरब टन मीथेन लीक हुयी है। यह इलाका आर्कटिक महासागर का हिस्सा है और ग्लोबल वार्मिग का सबसे ज़्यादा असर अब तक यहीं पर हुआ है।
तेजी से बढ़ रहे तापमान के लिए यूरोप कतई तैयार नहीं है
दरअसल पिछले दस महीनों से लगातार धरती के तापमान में रिकार्ड बढ़ोतरी हुई है। बीता मार्च महीना रिकार्ड इतिहास का सबसे गर्म महीना रहा है। वैज्ञानिक इससे चिंतित हैं कि हमारा ग्रह एक नये युग में प्रवेश करने जा रहा है। वैस्टर्न आस्ट्रेलिया यूनीवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक धरती के गर्म होने की रफ़्तार अनुमान से भी कहीं ज्यादा है। क्योंकि धरती 1.7 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो चुकी है जो संयुक्त राष्ट्र के मानक तापमान के अनुमान से भी आधा डिग्री अधिक है। तेजी से बढ़ रहे तापमान के लिए यूरोप कतई तैयार नहीं है। यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी इस संकट के बारे में पहले ही आगाह कर चुकी है। उसने कहा है कि मौसमी आपदा का असर यहां के लोगों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर रहा है। हमारा विश्लेषण कहता है कि योरोपीय जलवायु खतरे में है और यह खतरा हमारी तैयारियों की तुलना में तेज गति से बढ़ रहा है। ईईऐ के अनुसार यदि निर्णायक कार्यवाही अभी नहीं हुई तो सदी के अंत तक अधिकतर जलवायु खतरे विनाशकारी स्तर पर होंगे।
यह भी पढ़ें: दो टूक: पारा चढ़ने का टूटता रिकॉर्ड
वैज्ञानिकों की चिंता यह भी है कि यदि साल के अंत में तापमान में गिरावट नहीं हुयी तो यह ग्रह किस दिशा में जायेगा, यह कहना बहुत मुश्किल है। यह इसलिए भी क्योंकि पिछले दस महीने से तापमान में रिकार्ड बढ़ोतरी हुई है। तात्पर्य यह कि हर महीना अबतक अपने पिछले रिकार्ड से अधिक गर्म रहा है। गौरतलब है कि धरती के तापमान में बढ़ोतरी के कारणों में ग्लोबल वार्मिग तो एक कारण है ही, ग्रीन हाउस गैसों, कार्बन डाइऑक्साइड का सतत उत्सर्जन, सल्फर डाइऑक्साइड की बढ़ती हुयी मात्रा, वनों के तेजी से होते विनाश, कार्बन फ्लोरो कार्बन गैसों का सतत उत्सर्जन, जीवाश्म ईंधन का दहन आदि की भी अहम भूमिका है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। बहरहाल वैज्ञानिक इस बारे में एकमत हैं कि धरती के बढ़ते तापमान को रोकने का प्रभावी तरीका ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करना है। फिर डब्ल्यू एम ओ की रिपोर्ट को भी नजरंदाज करना बहुत बड़ी नादानी होगी जिसमें चेतावनी दी गयी हैं कि 2027 तक धरती 1.5 डिग्री सेल्सियस और गर्म होगी। दरअसल वैश्विक इतिहास में पहली बार आने वाले सालों में हम वैश्विक गर्मी की वह भयावहता देखेंगे जिसकी अभी तक विश्व भर के विज्ञानी और पर्यावरणविद् केवल कल्पना ही कर रहे थे। विश्व मौसम विज्ञान विभाग ने आशंका जाहिर की है कि 2027 तक धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस और बढ़ जाएगा। वैश्विक तापमान की सीमा को छूने का अर्थ है कि विश्व 19वीं शताब्दी के दूसरे हिस्से के मुकाबले अब 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म है। विज्ञानियों के अनुसार कोयला, गैस और तेल जलाने की सभी सीमाएं पार करने से यह होगा। इससे पर्यावरण विज्ञानी जेट हौसफादर की बात से और बल मिलता है कि हमें वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस 2030 से पहले पहुंचने की उम्मीद नहीं है। लेकिन हर साल 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के करीब तेजी से पहुंचना भी बहुत बड़ा संकट है। इसके परिणाम बहुत भयावह होंगे।
सदी के अंत तक अत्याधिक गर्मी से 1.5 करोड़ लोगों की मौत हो जायेगी
अमेरिका की पर्यावरण संस्था ग्लोबल विटनेस और कोलंबिया विश्वविद्यालय के विज्ञानियों के अध्ययन के मुताबिक सदी के अंत तक अत्याधिक गर्मी से 1.5 करोड़ लोगों की मौत हो जायेगी। पिछले कुछ वर्षो में हीटवेव ने लगभग दुनिया के हर महाद्वीप को प्रभावित किया है। इससे जंगल में आग लगने से हजारों लोगों की जान चली गयी हैं। वहीं यूरोप में 60 हजार से अधिक लोगों की जान चली गयी। दुनिया के जलवायु विशेषज्ञों के सर्वे की मानें तो वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ेगा। इसकी संभावना प्रबल है। ऐसा होने पर बाढ़, विनाशकारी गर्मी और तूफ़ान आयेंगे। इस बारे में फ्रांस के आईडीडीआई नीति अनुसंधान संस्थान के डा. हेनरी वाइसमैन का कहना है कि जलवायु परिवर्तन में हमें डिग्री का हर दसवां हिस्सा बहुत मायने रखता है। उस स्थिति में जब आप सामाजिक आर्थिक प्रभावों को देखते हैं। तापमान के 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने पर हीटवेव और तूफ़ान की तीव्रता में तेजी आयेगी। और अगर तापमान तीन डिग्री तक पहुंचा तो दुनिया के कई शहर समुद्र में डूब जायेंगे। हिंद महासागर का तापमान भी बढ़ रहा है। हिंद महासागर का गर्म होना सिर्फ सतह तक सीमित नहीं है, बल्कि समुद्र में गर्मी का भंडार भी तेजी से बढ़ रहा है। इससे चक्रवात और भारी वर्षा की घटनाएं बढ़ेंगीं। समुद्र का पानी असामान्य रूप से गर्म होगा। इससे वायुमंडल गर्म होगा। समुद्री जैव विविधता और मछलियों पर खतरा बढ़ जायेगा। सबसे चिंताजनक बात यह है कि समुद्र के अमलीकरण में तेजी आयेगी। नतीजतन मूंगे की चट्टानें और खोल वाले जीवों सहित समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। बड़े पैमाने पर जीवों के आवास और पारिस्थितिकी तंत्र का खात्मा हो जायेगा। मध्य और उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में सूखे की स्थिति में बढ़ोतरी होगी और उत्तरी गोलार्द्ध के उच्च अक्षांश क्षेत्रों में औसत से अधिक बरसात होगी।
अत्याधिक गर्मी के संपर्क में आने से भारत सबसे ज्यादा प्रभावित देश होगा
पृथ्वी आयोग और नानजिंग यूनीवर्सिटी के सहयोग से यूनिवर्सिटी आफ एक्सेटर इंस्टीट्यूट फार ग्लोबल सिस्टम यू के के शोध से खुलासा हुआ है कि बढ़ रही गर्मी के कारण दुनिया भर में दो अरब तथा भारत में साठ करोड़ लोगों पर खतरा मंडरा रहा है। समूची दुनिया की 22 से 39 फीसदी आबादी गर्मी के दुष्प्रभाव झेलेगी। दुनिया में भारत सहित नाइजीरिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, पाकिस्तान,सूडान और नाइजर के लोग सबसे ज़्यादा गर्मी की मार से प्रभावित होंगे। यदि तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होती है तो अत्याधिक गर्मी के संपर्क में आने से भारत सबसे ज्यादा प्रभावित देश होगा। वर्तमान में 6 करोड़ लोग पहले ही से खतरनाक गर्मी के संपर्क में हैं।अगर तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होती है तो यह आंकड़ा काफी बढ़ जायेगा। भारत में बढ़ते तापमान से गर्भवती महिलाओं के लिए समय से पहले प्रसव, उच्च रक्तचाप सहित अनेक गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा हो रहे हैं। ब्रिटिश अखबार गार्जियन द्वारा किये गये सर्वे में कहा गया है कि भारत सहित कई देशों के महिला वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन्हें बच्चों के भविष्य को लेकर घबराहट होने लगी है। भारत सहित ब्राजील, चिली, जर्मनी और केन्या की महिलाओं के अलावा 17 वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन्होंने कम बच्चे पैदा करना चुना है। इन बदलावों का असर हमारी पीढ़ी पर भी पड़ेगा। इसमें दो राय नहीं कि मौसम सम्बंधित मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण तापमान की चरम स्थिति भी है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक देश में पिछले साल अप्रैल और जून में भीषण गर्मी के कारण हीट स्ट्रोक से 110 मौतें हुईं। असलियत यह है कि धरती को गर्म करने में कार्बन डाई ऑक्साइड की महत्वपूर्ण भूमिका है। सैनडियागो के स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन आफ ओसनोग्राफी के हालिया अध्ययन में चेतावनी दी गयी है कि वायुमंडल में अबतक इस गैस के स्तर में रिकार्ड बढ़ोतरी हुयी है। इससे हीटवेव, बाढ़, सूखे और जंगल की आग के रूप में विनाशकारी जलवायु संकट का खतरा बढ़ गया है।
सबसे अहम मुद्दा तो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि का है जिसने विज्ञानियों की चिंता को और बढ़ा दिया है। एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि लगातार तापमान में बढ़ोतरी से अगले कुछ दशकों में बड़े पैमाने पर विस्थापन की समस्या पैदा होगी। करोड़ों लोग उपयुक्त स्थान और परिस्थितियों की तलाश में विस्थापन को विवश होंगे। वहीं बड़ी आबादी इतने अधिक तापमान का सामना करेगी जो अभी तक केवल सहारा जैसे गर्म मरुस्थल में अनुभव किया जाता रहा है। जैसे जैसे धरती गर्म होती जायेगी, वैसे ही वर्तमान जलवायु में भी बदलाव आयेगा और समय के साथ साथ यह परिवर्तन भविष्य में विस्थापन की गति को बढ़ावा देगा। यह भी कि केवल एक ही डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से ही दुनिया में विस्थापन करने वालों की संख्या 10 गुणा बढ़ सकती है। अध्ययन में पाया गया है कि 2011 से 2020 तक का दशक रिकार्ड सबसे गर्म रहा है। इस दशक के अंत तक 29 डिग्री सेल्सियस से ऊपर औसत वार्षिक तापमान पहुंच जायेगा। उस समय तकरीब दो अरब लोगों को भीषण गर्मी का सामना करना पड़ेगा। यूनिवर्सिटी आफ ईस्ट जंगलिया में टिंडल सेंटर फार क्लाइमेट रिसर्च की शोधकर्ता रीटा इस्सा का कहना है कि वैश्विक तापमान बढ़ने के कई दुष्परिणाम होंगे। जैसे हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क और गुर्दे के साथ साथ दिमाग और हार्मोनल प्रणाली भी प्रभावित हो सकती है। यह समय पूर्व मृत्यु और विकलांगता का कारण हो सकता है। गौरतलब है कि अत्याधिक तापमान के कारण हर साल तकरीबन 50 लाख से ज़्यादा लोग अनचाहे मौत के मुंह में चले जाते हैं। यहां इस तथ्य को नकार नहीं सकते कि तापमान में बढ़ोतरी के चलते वाष्पीकरण की दर में वृद्धि होती है और इससे मिट्टी की नमी कम होने लगती है। इससे कई क्षेत्र सूखे का सामना करते हैं और नतीजतन फसलों की पैदावार में कमी आती है। इससे खाद्य असुरक्षा, गरीबी, बेरोजगारी और बाढ़ का खतरा मंडराने लगता है। जलाशयों में पानी का भंडारण कम होने और भूजल का स्तर गिरते जाने से जल संकट गहराता है सो अलग। इसलिए जरूरी है कि हम सतर्क रहें, सादा जीवन जियें और इस हेतु दूसरों को प्रेरित करें। अधिकाधिक वृक्षारोपण करें, प्लास्टिक का कम से कम प्रयोग करें। यह जान लें कि प्लास्टिक का उत्पादन नहीं घटा तो तापमान और बढ़ेगा। अक्षय ऊर्जा को प्रमुखता देनी होगी और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना होगा। सबसे बड़ी बात कि हमें प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करना होगा। उसकी रक्षा जीवन का ध्येय बनाना होगा और प्रकृति प्रदत्त संसाधनों की रक्षा हेतु सदैव तत्पर रहना होगा। तभी धरती बची रह पायेगी।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।