राजनीतिक गलियारे से
– अनिल शर्मा*
दिल्ली: प्रत्येक चुनाव के पहले चौकानेवाले निर्णय लेने के लिए मशहूर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले दलितों के दो बड़े नेताओं क्रमशः पूर्व उपप्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम और कांशीराम को भारत रत्न देकर भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में दलितों को भावनात्मक रूप से जोड़ने का काम करेंगे?
सूत्रों की मानें तो यह संभव हो सकता है। मोदी अपनी चौंकाने वाली रणनीति के लिए वैसे ही प्रसिद्ध हैं । जिस प्रकार से हाल में हुए उत्तर प्रदेश चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी को निशाने पर रखा था उससे भारतीय जनता पार्टी को नि:संदेह लाभ हुआ था।
मालुम हो देश की दलिति राजनीति में डा भीम राव अम्बेडकर के बाद पूर्व उप प्रधान मंत्री बाबू जगजीवन राम और कांशीराम दो ही ऐसे नेता हैं जिनका दलित समाज में बहुत ज्यादा सम्मान है। बाबू जगजीवन राम बिहार के चांदवा ग्राम में वर्ष 1908 में पैदा हुए। वर्ष 1935 में उन्होंने दलित समाज को समाज में समानता दिलाने के लिए ऑल इंडिया डिप्रेस्ड क्लासेस लीग का गठन किया था। 1937 में बिहार विधान सभा के लिए निर्वाचित हुए थे। उन्होंने बीएचयू और कोलकाता में शिक्षा प्राप्त की और दलित समाज में उनका देशव्यापी जनाधार था। वर्ष 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री बने। वे सहरसा लोकसभा सीट से 8 बार सांसद चुने गए और कभी चुनाव नहीं हारे। वह लगभग 30 वर्षों तक केंद्र सरकार में मंत्री रहे। वर्ष 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के समय तथा बांग्लादेश के निर्माण के समय वह देश के रक्षा मंत्री रहे। श्रम मंत्री रहते हुए उन्होंने श्रम कानूनों में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए थे| वर्ष 1977 में इंदिरा गांधी से अलग होकर तथा मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर उन्होंने कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी नाम से अलग पार्टी बनाई। उनके साथ के केंद्रीय मंत्री व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा भी उनके साथ कांग्रेस छोड़कर आए थे। इन दोनों नेताओं के आने के बाद जनता पार्टी के नेताओं को यह विश्वास हो गया था अब कांग्रेस की चुनाव में उल्टी गिनती शुरू हो गई है। जनता पार्टी की सरकार में बाबू जगजीवन राम को प्रधानमंत्री का पद दिया गया लेकिन जनता पार्टी के ही कुछ नेताओं ने साजिश करके उन्हें प्रधानमंत्री बनने की राह में रोड़े डालकर रुकवा दिया। आज भी बिहार में सदा देश में दलित समाज में बाबू जगजीवन राम का नाम आदर के साथ दिया जाता है। उनका देहावसान 6 जुलाई 1986 को 78 वर्ष की उम्र में हो गया था।
अंबेडकरवादी चिंतक तथा लोकतंत्र प्रहरी मान्यवर कांशीराम: एक विश्लेषण किताब के लिखने वाले बाबू रामाधीन के अनुसार कांशीराम ग्राम खवासपुर जनपद रोपण पंजाब प्रांत के निवासी हरि सिंह की सबसे बड़ी संतान थे। पंजाब में स्त्री परंपरा अनुसार किसी भी महिला की प्रथम संतान उसके मायके में पैदा होती है। इस परंपरा के अनुसार कांशीराम का जन्म अपने ननिहाल पृथ्वीपुर दूंगा में 15 मार्च 1934 को हुआ था। उनकी मां का नाम विशन कौन था। वे दलित समाज के राम दसिया परिवार से आते हैं| उन्होंने दलित और अति पिछड़े समाज की दशा को देखकर उसे समाज के साथ-साथ राजनीति की मुख्यधारा में लाने का प्रण किया। इसके चलते उन्होंने पूरे देश में 3000 किलोमीटर की साइकिल यात्रा करके समाज को गहराई से समझा। वर्ष 1981 दलित शोषित समाज संघर्ष समिति(डी एस 4 का गठन) किया। उस समय उनका नारा था ठाकुर, ब्राह्मण,बनिया छोड़ बाकी सब है डीएस 4 । कांशीराम जहां एक बार इटावा से सामान्य सीट पर सांसद बने वहीं पंजाब के होशियारपुर से भी सांसद बने। उनकी नीतियों पर चलकर ही कुमारी मायावती को बहुजन सामाज पार्टी की सुप्रीमो बानी जिसमे कांशीराम का ही बड़ा योगदान रहा। कांशीराम का निर्वाण 9 अक्टूबर 2006 को हो गया।
यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दोनों को यदि भारत रत्न सम्मान से सम्मानित करते हैं तो इसका भावनात्मक लाभ भाजपा को आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में मिल सकता है । क्या मोदी सरकार आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले दलित नेता बाबू जगजीवन राम और कांशीराम को भारत रत्न देकर दलित और अति पिछड़े समाज को अपनी और भावनात्मक रूप से आकर्षित करने का काम कर सकती है? सूत्रों का तो यही कहना है पर इंतज़ार करें।
*वरिष्ठ पत्रकार