बारां के जंगलों में चीता, संरक्षण की पुकार
कोटा: बारां के जंगलों में पिछले एक सप्ताह से घूम रहे चीता की झलक ने हाड़ौती के लोगों में उत्सुकता, उम्मीद और चिंता—तीनों को एक साथ जगाई है। कभी यहां चीता रहा करते थे, और अब उसके लौटने की खबरें स्थानीय समुदायों और संरक्षण कार्यकर्ताओं के लिए सिर्फ वन्यजीव सूचना नहीं, बल्कि उस पुराने प्राकृतिक संतुलन की याद हैं जिसे फिर से जीवित होते देखने की इच्छा लंबे समय से बनी हुई है।
इसी पृष्ठभूमि में अंतरराष्ट्रीय चीता दिवस पर कोटा में मुकुंदरा टाइगर रिज़र्व के मुख्य वन संरक्षक कार्यालय परिसर में संगोष्ठी आयोजित की गई, जिसके बाद बाघ-चीता मित्र और चंबल संसद के प्रतिनिधियों ने मुख्य वन संरक्षक सुगना राम जाट से मुलाकात की और हाड़ौती में चीता संरक्षण के लिए वन विभाग से गंभीर पहल करने का अनुरोध किया।
हाड़ौती, राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी हिस्से का वह पठारी क्षेत्र है जिसमें कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ शामिल हैं। चंबल और पार्वती घाटियों, पथरीली सिलिका-युक्त पहाड़ियों, सूखे मिश्रित जंगलों और छोटे-बड़े वन तालाबों के कारण यहाँ जल और वन दोनों प्रकार का पारिस्थितिकी तंत्र विकसित हुआ है। इसी विविध भू-आकृति ने इसे बाघ, तेंदुआ, भालू, काला हिरण, नीलगाय और मगर जैसे प्रजातियों का घर बनाया है। चीतों का यहाँ लौटकर आना विशेषज्ञों के अनुसार इस बात का संकेत है कि वन्यजीव अभी भी इस भूभाग को प्राकृतिक रूप से पहचानते हैं।
ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह इलाका चीते के लिए अनजाना नहीं रहा। ब्रिटिश काल और राजपूताना अभिलेखों में बूंदी, छापर, झालरापाटन और बारां के जंगलों में चीते के दिखने तथा कभी-कभार मानव-वन्यजीव संघर्ष के दस्तावेज मिलते हैं। स्थानीय लोककथाओं में “धारीदार बिल्ला” और “दौड़ का राजा” जैसे उल्लेख आज भी बुजुर्गों की स्मृति में मौजूद हैं। कुछ पुरानी शिकारी डायरियों में कोटा और मध्य प्रदेश के कूनो होते हुए चंबल पट्टी तक फैले प्राकृतिक गलियारों का उल्लेख मिलता है — वही गलियारा अब फिर से सक्रिय होता दिखाई दे रहा है, जिसमें मध्य प्रदेश से हाड़ौती की ओर चीतों की आवाजाही लगातार दर्ज हो रही है।
बाघ चीता मित्र संयोजक बृजेश विजयवर्गीय ने बताया कि मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क से चीता लगातार बारां की ओर आ रहा है और यह अब तक पांचवीं बार है जब उसने यहां उपस्थिति दर्ज कराई है। उनका कहना है कि यह संकेत है कि हाड़ौती के जंगल चीतों के लिए स्वाभाविक रूप से उपयुक्त हैं। यदि सरकार संरक्षण ढांचा बनाए, तो यह क्षेत्र चीतों के स्थायी आवास के रूप में विकसित हो सकता है।
विजयवर्गीय के अनुसार बारां के प्राकृतिक आवास शेरगढ़ और कोटा के मुकुंदरा के सावन-भादो क्षेत्र में चीतों की मौजूदगी की अच्छी संभावनाएं हैं। प्रतिनिधियों ने मुकुंदरा टाइगर रिज़र्व और बूंदी के रामगढ़ विषधारी क्षेत्र में गांवों के पुनर्वास को तेज़ करने की मांग की, ताकि वन्यजीवों को निर्बाध विचरण क्षेत्र मिल सके। उन्होंने वन्यजीवों की आवाजाही के लिए जंगलों में प्राकृतिक कॉरिडोर विकसित करने की जरूरत पर भी जोर दिया।
प्रतिनिधि मंडल में चंबल संसद के संरक्षक यज्ञदत्त हाडा, पूर्व मानद वन्यजीव प्रतिपालक विट्ठल कुमार सनाढ्य, वरिष्ठ पत्रकार धीरेन्द्र राहुल, मनोज यादव और फिरोज शामिल थे। बैठक में कंजर्वेशन रिज़र्व सोरेंसन में काले हिरणों के संरक्षण की स्थिति पर भी विचार किया गया।
मुख्य वन संरक्षक सुगना राम जाट ने कहा कि कूनो से चीतों को गांधी सागर लाए जाने के बाद हाड़ौती के जंगल स्वाभाविक कॉरिडोर की भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने बताया कि विभाग इस दिशा में प्रस्ताव तैयार करेगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बारां के जंगलों से चीते को वापस भेजने का फिलहाल कोई विचार नहीं है और राजस्थान तथा मध्य प्रदेश — दोनों राज्यों की मॉनिटरिंग जारी है।
जाट के अनुसार मुकुंदरा और रामगढ़ विषधारी में गांवों के विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन इसमें समय लगता है। विभाग वन्यजीव संरक्षण के प्रति पूरी तरह सजग है और चीतों की गतिविधि पर सतत नजर रखी जा रही है।
दिन भर की चर्चा का माहौल यही बताता है कि हाड़ौती में चीते का आगमन सिर्फ वन्यजीव विज्ञान की घटना नहीं है — यह उस पुराने प्राकृतिक ताने-बाने की वापसी की उम्मीद भी है जिसमें चीता कभी इस भूभाग का हिस्सा था। अब स्थानीय समुदायों और संरक्षण समूहों की निगाह इस बात पर टिकी है कि क्या यह उम्मीद योजनाओं और ज़मीनी कदमों में बदल पाती है।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो
