– ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य
वाराणसी: अगला नव संवत्सर गौ संवत्सर होगा। गौ-प्रतिष्ठा आन्दोलन के अन्तर्गत आज श्रीकाशी (वाराणसी) से भारत के सभी प्रदेशों के लिए गौ-दूतों की नियुक्ति की जा रही है। ये गौदूत सन्त उन-उन प्रदेशों के गौ-भक्तों से मिलकर आन्दोलन को गति प्रदान करेंगे।दिनांक 4 जनवरी, 2024 को वृन्दावन में सभी प्रदेशों के गौ-भक्तों की एक विशेष गौ-सभा आयोजित होगी, जिसमें आन्दोलन के विविध पहलुओं को स्पष्टता देते हुए कमर-कसी जायेगी।
दिनांक 15 जनवरी से 23 जनवरी, 2024 तक नौ दिनों में दिल्ली में गौ-प्रतिष्ठा आन्दोलन के लिए नौ-विशेषज्ञ समूहों की बैठक आयोजित की जायेगी।
ये समूह निम्नलिखित हैं –
१. गौ-धर्म विशेषज्ञ
२. गौ-आर्थिकी विशेषज्ञ
३. गौ-कानून विशेषज्ञ
४. गौ-विज्ञान विशेषज्ञ
५. गौ-राजनीति विशेषज्ञ
६. गौ-संगठन विशेषज्ञ
७. गौ-मीडिया विशेषज्ञ
८. गौ-प्लेसमेण्ट विशेषज्ञ
९. गौ-व्यवहार विशेषज्ञ (धन समिति)
यदि काम नहीं हुआ तो, दिनांक 30 जनवरी, 2024 को विशेषज्ञों से प्राप्त आँकड़ों, निष्कर्षों के साथ गौ-प्रतिष्ठा आन्दोलन के लोगों को प्रतिनिधि-मण्डल देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और विभिन्न प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों से मिलेंगे।
यदि फिर भी काम नहीं बना तो दिनांक 6 फरवरी, 2024 को प्रयाग में वृहद `गौ-संसद्’ का आयोजन होगा, जिसमें देश की सभी संसदीय-क्षेत्रों से एक गौ-प्रतिनिधि मनोनीत होकर सम्मिलित होगा और देश की जनता की ओर से प्रस्ताव पारित करेगा।
यदि फिर भी काम नहीं बना तो दिनांक 10 मार्च, 2024 को पूरे देश से दिल्ली में गौ-भक्त एकत्रित होंगे और दिनांक 6 फरवरी, 2024 की गौ-संसद् से पारित प्रस्तावों के अनुरूप कार्य करते हुए गौ-माता को राष्ट्रमाता की प्रतिष्ठा दिलाने के लिए प्रयास करेंगे। विद्वान् सन्तों द्वारा यह पहले ही घोषणा की जा चुकी है कि नव-संवत्सर, गौ-संवत्सर होगा।
गाय भारतीय संस्कृति की आत्मा है। महाभारत (अनुशासन पर्व – अ.145) के अनुसार सृष्टि की रचना के इच्छुक ब्रह्माजी ने सबसे पहले गौ-माता का निर्माण किया था, ताकि उनकी सृष्टि का पोषण हो सके।पोषण के अपने इसी गुण से गाय विश्व-माता कहलायी। इसे वेदों और पुराणों में `अहन्या,अवध्या’ कहा गया, पर दुर्भाग्य से इस समय विश्व में सबको पालन-पोषण करने वाली को काटने और खाने का चलन हो रहा है,जो कि भारतीय कृतज्ञ संस्कृति पर कलंक की तरह है।
पूर्व काल में राजा परीक्षित के सामने कलयुग ने डण्डे से गौ को मारना चाहा था, तब वे उसे मृत्युदण्ड दे रहे थे और आज के राजा गाय को काटते और करुण पुकार करते हुए देखकर भी कैसे चुप रह सकते हैं?
गौ-माता की इसी करुण पुकार को सरकार के सामने, सरकार को सुनाने और सरकार द्वारा गौ-व्यथा को दूरकर उन्हें अभय और प्रतिष्ठा प्रदान करने के लिए राष्ट्र-व्यापी गौ-प्रतिष्ठा आन्दोलन आरम्भ हुआ है, जिसको देश के चारों पीठों के पूज्य शंकराचार्यों एवं अन्य विशिष्ट धर्माचार्यों के साथ-साथ कुछ प्रदेशों की विधान सभाओं का भी सहयोग मिल रहा है।