महिला दिवस: अब महिलाएं ले सकती हैं मोबाइल पर परामर्श सेवाएँ
आज की सुबह, मीरा के लिए सुबह नहीं थी। उसे लग रहा था कि जैसे कल की रात ही उसकी सुबह पर हावी थी। पूरी रात मीरा सोई जो न थी। पति शेखर से मन मुटाव लगातार बढ़ता ही जा रहा था। कल रात तो हद ही हो गयी। जैसे ही मीरा, शेखर के साथ रात्रि भोजन के लिए खाने की टेबल पर पहुंची, मीरा ने देखा कि शेखर ने टेबल पर भी लेपटॉप लगा लिया है। मीरा की भूख तो जैसे उड़ ही गई। बड़े चाव से मीरा अपने कामों से निपट कर रात्रि 9 बजे भोजन के लिए तैयार हुई। मीरा को भी एक-एक क्षण चुराना पड़ता है। पर आज मीरा, शेखर से बहुत सारी बातें करना चाहती थी। शेखर का मूड भी अच्छा ही प्रतीत हो रहा था। लेकिन यह क्या? खाने की टेबिल पर लेपटॉप के साथ बैठ जाना मीरा को, बहुत ही पीड़ा दायक हो रहा था। मीरा, शेखर से नम्रता पूर्वक कुछ पल मांगती है। लेकिन मीरा का पति अपने ही ख्यालों में गुम कभी लेपटॉप तो कभी मोबाइल में ही खोया रहता है।
कल भी जब मीरा ने अपने पति को अपनी मन की बात बतानी चाही तो उसका पति शेखर बिना ही बात के नाराज हो गया। मीरा भी रोज़-रोज़ की खट-पट से तंग आ चुकी थी। पूरी रात उसने आँसुओं में निकाली थी। वह सोच रही थी कि अगर पति तीन लाख कमाता है तो वह भी तो दो लाख कमाती है। वह भी तो पति और घर के लिए समय निकालती है तो शेखर क्यों ऑफिस के काम को घर ले आता है? मीरा तो घर आने के बाद ऑफिस की एक भी कॉल अटेण्ड नहीं करती। शादी के पंद्रह साल बीत जाने पर मीरा ने शेखर से कोई शिकायत नहीं की। लेकिन मीरा, शेखर से खुश भी तो नहीं थी। इस जिन्दगी में कोई उल्लास या रोमांस भी तो नहीं बचा था।
शेखर धीरे-धीरे अपने काम में ही व्यस्त होता जा रहा है। अब मीरा को यह गवांरा नहीं था। मीरा बार-बार यह सोच रही थी कि अब इस रूढ़ व्यक्ति के साथ अपनी जिंदगी बर्बाद नहीं करेगी। मीरा पूरी रात खर्राटे लेते हुए शेखर के बारे में सोच रही थी। इसे मेरे आँसुओं से कुछ फर्क ही नहीं पड़ता। अगर शेखर को भी कोई शिकायत है तो वह उसे बताता क्यों नहीं है? क्यों मीरा एकाकी जीवन जीने को मजबूर है? यही सोचते-सोचते रात, सुबह हो गयी थी। भारी कदमों और असमंजस में मीरा ऑफिस पहुँच गयी। ऑफिस में उसकी सहेली मीना ने जैसे ही मीरा को देखा वह पूछ बैठी कि क्या हुआ मीरा? मीरा बिना कुछ उत्तर दिए जार-जार रोने लगी। मीना ने प्रश्न पूछकर जैसे मीरा के जख्मों को हरा कर दिया। तभी मीना ने कहा कि तुम्हें अवश्य ही पारिवारिक परामर्श केंद्र सम्पूर्णा में परामर्शदाता से मिलना चाहिए।
मीरा ने तुरंत परिवार परामर्श केंद्र पर फोन मिलाया। मीरा को परामार्शदाता ने उत्तर दिया कि आप को केंद्र पर आना पड़ेगा। तभी मीरा ने बताया कि वह तो नोएडा से बोल रही है और तुरंत परामर्श केंद्र आना संभव नहीं है। मीरा को लग रहा है कि वह तुरंत ही शेखर को छोड़, कोई नई राह चुनें। प्रारंभ के कुछ वर्ष तो हंसते-खेलते निकल गए। बच्चे भी छोटे थे। मीरा चाह कर भी कुछ न कर पायी लेकिन अब पिछले पांच वर्षों से उसके जीवन में कोई तरंग भी तो नहीं रही। बार-बार मन बोझिल होकर एक अजीब से अवसाद की ओर बढ़ रहा है। आज तो मीरा कुछ न कुछ निर्णय अवश्य लेगी। यही विचार मीरा के मन में घुमड़ रहे थे। लेकिन परामर्श के लिए तुरंत परिवार परामर्श केंद्र पहुंचना भी मीरा के लिए संभव नहीं था। मीना, मीरा को जितना समझा सकती थी उसने समझाने की चेष्टा की। किंतु मीरा का अब शेखर के साथ रहना संभव नहीं था।
मीरा का मन अब इतना ज्यादा परेशान और व्यथित लग रहा था कि परामर्शदाता को लगा कि मीरा को तुरंत ही परामर्श देना चाहिए। तभी दिल्ली की एक सामाजिक संस्था सम्पूर्णा परामर्शदाता ने अपनी अध्यक्षा से कहा कि दूरदराज़ के शहरों, कस्बों और गाँवों में रहने वाली महिलाएँ हर दिन ही पारिवारिक विषय को लेकर उलझी सी रहती हैं और सही परामर्श के अभाव में कई बार उनकी जिन्दगी बर्बाद हो जाती है।
ऑफिस में काम करने वाली महिलाएँ भी 10 से 5 बजे के बीच में में परामर्श केंद्र में नहीं पहुंच पाती हैं। अतएव यही विचार कर दिल्ली की एक सामाजिक संस्था सम्पूर्णा ने यह निर्णय लिया कि उसके परिवार परामर्श केंद्र की सुविधाएँ फोन से भी उपलब्ध की जानी चाहिए। अक्सर यह देखा जाता है कि कुछ समस्याएँ क्षणिक होती हैं और उनका समाधान भी शीघ्र ही होना चाहिएँ अन्यथा कोई भी स्त्री या पुरूष गलत कदम उठा सकते हैं। सम्पूर्णा की कार्यकारिणी ने निर्णय लिया कि वह तुरंत ही सोमवार से बुधवार सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक फोन से परामर्श देगी। कोई भी महिला अपनी समस्याओं को निपटाने के लिए परमार्शदाताओं से संपर्क कर सकती है। उचित परामर्श के माध्यम से किसी महिला के जीवन में परिवर्तन आ सकता है।
*संस्थापिका, सामाजिक संस्था सम्पूर्णा (गै़र सरकारी संगठन)