पराली का निस्तारण एक बहुत ही गंभीर और विकट समस्या है। सुप्रीम कोर्ट की राज्यों को इस बाबत फटकार का भी कोई असर नहीं हो रहा है। कारण राज्य पराली जलाने के मामले में आज भी विफल साबित हो रहे हैं। जबकि इसरो उन्हें पराली जलाने की जगह तक की जानकारी दे रहा है लेकिन हरियाणा और पंजाब सरकार का यह कहना कि उन्हें पराली जलाने की जगह के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इस पर शीर्ष अदालत ने कहा यह दोनों राज्य सरकारों का असंवेदनशील रवैय्या है। शीर्ष अदालत के माननीय न्यायाधीशों ने इस राज्यों के इस जबाव पर रोष व्यक्त करते हुए कहा है कि यह कैसा उदाहरण है जबकि पराली जलाने वालों के खिलाफ मुकदमा चलाने के बजाय उनपर केवल जुर्माना लगाया जा रहा है। यह कोई राजनीतिक मामला नहीं है बल्कि यह वायु प्रदूषण गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के वैधानिक निर्देशों के क्रियान्वयन का मामला है। यदि इन राज्यों के मुख्य सचिव किसी के इशारे पर काम कर रहे हैं तो हम उन्हें भी नहीं बख्शेंगे। दुख इस बात का है कि पंजाब इस मामले में यह कहकर अपनी असमर्थता जता रहा है कि जमीनी स्तर पर पखाली जलाने के निर्देशों को लागू करना मुश्किल हो रहा है। आखिर पंजाब का यह जबाव समझ से परे है। ऐसी स्थिति में कानून व्यवस्था कैसे कायम रह पियेगा, यह चिंतनीय है जो गंभीर विचार का विषय है।
देश में पराली अब लोगों की जान की दुश्मन बन गयी है। दुख तो इस बात का है कि पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं लेकिन विडम्बना यह है कि आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। इस बारे में दावे भले बराबर किये जायें लेकिन हकीकत में यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है। दुखदायी बात यह है कि सरकारें इस बाबत तब होश में आती हैं जबकि इस समस्या के चलते वायु प्रदूषण में बेतहाशा बढ़ोतरी से लोगों का सांस लेना भी दूभर हो जाता है। पराली जलाने की घटनाओं में हुयी कई गुणा बढोतरी हालात की विकरालता का जीता जागता सबूत है। जबकि धान की कटाई के रफ्तार पकड़ने के साथ ही पराली जलाने की घटनाओं में दैनंदिन होती बढो़तरी को नकारा नहीं जा सकता। उस समय स्थिति की भयावहता की कल्पना ही रोंगटे खडे़ कर देती है। यह हालत तब है जबकि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग देश की शीर्ष अदालत में यह स्पष्टीकरण देता है कि देश में पिछले तीन सालों में पराली जलाने की घटनाओं में कमी आयी है। लेकिन मौजूदा हालात इसके बिलकुल उलट हैं। बीते दिनों में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में पराली जलाने की 772 घटनाएं हालात की भयावहता का जीता जागता सबूत है।
पराली जलाने से हर साल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, उत्तर प्रदेश का पश्चिमी अंचल, हरियाणा, पंजाब और किसी हद तक राजस्थान का उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब का सीमांत क्षेत्र इन दिनों खासकर सितम्बर से नवम्बर-दिसम्बर के आखिर तक भयावह स्तर तक प्रभावित रहता है। जनवरी के आखिरी सप्ताह तक कमोवेश इसका प्रभाव देखा जाता है। ये महीने लोगों के लिए मुसीबत बनकर आते हैं क्योंकि इन राज्यों की सरकारों द्वारा इसे रोकने की दिशा में किए गये सारे के सारे प्रयास, अभियान और किसानों को जागरूक करने के वे सभी कदम बेमानी साबित हो जाते हैं। नतीजतन वायु प्रदूषण दिनोंदिन सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता ही चला जाता है और सरकारें इसके सामने बेबस नजर आती हैं।
विडम्बना यह कि यह सब तब होता है जबकि पराली जलाने पर पाबंदी है। देश की सुप्रीम कोर्ट भी इस बाबत गंभीर चिंता जाहिर कर चुकी है कि यह कैसा प्रबंधन है कि प्रतिबंध के बावजूद राज्यों में पराली जलायी जा रही है। इससे साबित होता है कि प्रदूषण की रोकथाम के दावे हवा-हवाई हैं। हालात इस बात के सबूत हैं कि दिल्ली एन सी आर में वायु गुणवत्ता प्रबंधन अधिनियम की अवहेलना हुयी है और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग इस पर नियंत्रण कायम करने में पूरी तरह नाकाम रहा है। क्योंकि एक भी ऐसी मिसाल नहीं मिली है कि आयोग ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन अधिनियम के तहत एक भी दंडात्मक कार्यवाही की हो। हालात तो यही इशारा करते हैं कि पराली जलाने के खिलाफ निषेधात्मक निर्देश केवल कागजों तक ही सीमित रहे हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी उस वक्त की जबकि सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अभय एस ओका व जस्टिस आगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ के समक्ष पराली जलाने का मामला आया। सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए राज्यों के जिलाधिकारियों को दिये निर्देश में पराली जलाने पर पूर्ण पाबंदी लगाने और पराली जलाने पर जेल भेजने की कार्यवाही सुनिश्चित करने को कहा है।
उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में फसल की बची पराली को जलाया जाना देश की राजधानी और उसके आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण के लिए गंभीर समस्या है। इसके परिणामस्वरूप यहां के लोगों का जीना दूभर हो जाता है। राजधानी क्षेत्र में बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते यहां के लोगों की जहरीली हवा में सांस लेने की मजबूरी है।
राजधानी क्षेत्र में दुनिया के दस फीसदी अस्थमा से पीड़ित लोग रहते हैं। नतीजतन पहले से ही अस्थमा से परेशान लोगों के लिए बढ़ता वायु प्रदूषण जानलेवा बन जाता है। ऐसे हालात में अस्थमा के रोगियों का बढ़ना खतरनाक संकेत है। वैसे भी मौसम में आ रहे बदलाव आने के चलते प्रदूषण बढ़ रहा है।
हरियाणा और पंजाब में पराली जलाये जाने से प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी चिंताजनक है। उस पर इस बार पंजाब ने कीर्तिमान स्थापित किया है। अभी तक वहां पराली जलाने की घटनाओं में नौ गुणा बढ़ोतरी दर्ज हुयी है। इससे पर्यावरणविद और पर्यावरण विशेषज्ञ काफी चिंतित हैं। बीते 5 सालों के आंकड़े सबूत हैं कि पराली जलाने के 75 फीसदी मामले अकेले पंजाब में ही हुए हैं। इस बार पंजाब में धान की कटाई के बाद 200 लाख टन पराली बचेगी जबकि राज्य का लक्ष्य 19.52 लाख टन पराली के प्रबंधन का ही है। जाहिर है शेष पराली प्रबंधन के अभाव में जलायी ही जायेगी।
पंजाब सरकार के लिए पखाली बहुत बड़ी समस्या बन गयी है। कारण सरकार ने पराली निस्तारण के लिए 58 कंप्रैस्ड बायो गैस प्लांट लगाने की मंजूरी तो दे दी है लेकिन उसके पास पराली का भंडारण करने के लिए जमीन ही नहीं है जबकि यह जगजाहिर है कि सीबीजी प्लांट राज्यों के लिए बेहद लाभदायक और जरूरी हैं।
ऐसे हालात में एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ़ इंडिया (ऐसोचेम) का कथन बिलकुल सही है कि पर्यावरण को साफ रखना हम सबका दायित्व है। स्वच्छ पर्यावरण सुनिश्चित करना केन्द्र, राज्य, समाज और लोगों की संयुक्त जिम्मेदारी है। इसको सभी को ईमानदारी से निबाहना चाहिए। लेकिन इसमें हम विफल रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि खासतौर पर जबकि सर्दियों में आसमान धुंध और विषाक्त गैसों से घिरा होता है, के लिए ही नहीं बल्कि पूरे साल के लिए वायु प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए एक समन्वित कार्य योजना बनायी जाये।
पूरे देश की प्रदूषण की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। गौरतलब है कि बीते बरस दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गयी थी जिसमें कहा गया था कि पड़ोसी राज्यों के किसानों द्वारा अपनी फसल के अपशेष यानी पराली जलाये जाने से हर साल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में इस दौरान वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। इस पर लगाम लगायी जाये और पराली से कंपोस्ट खाद बनाये जाने का आदेश दिया जाये। ऐसा करने से दोहरा लाभ होगा। एक ओर खाद बनाने से बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लगेगी और दूसरी ओर किसान इस खाद का उपयोग कर बेहतर और रसायन विहीन पैदावार हासिल कर सकेंगे। चूंकि मनरेगा पंचायत स्तर की सरकारी योजना है, इसलिए खाद बनाने की प्रक्रिया को मनरेगा से जोडा़ जाये। लेकिन उस पर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया।
वायु प्रदूषण में पराली की अहम भूमिका है लेकिन वायु प्रदूषण में सड़कों की धूल, सड़कों पर फैले कूड़े, वाहनों की धूल और बायोमास का भी महत्वपूर्ण योगदान है। इससे वातावरण में जहर के काकटेल का निर्माण होता है। वातावरण में सबसे अधिक घातक अजैविक एयरोसेल का निर्माण, बिजलीघरों, उद्योगों, ट्रैफिक से निकलने वाली सल्फ्यूरिक एसिड और नाइट्रोजन आक्साइड तथा कृषि कार्य से पैदा होने वाले अमोनिया के मेल से होता है। 23 फीसदी वायु प्रदूषण की वजह यह काकटेल ही है। दिल्ली में वायु प्रदूषण का जायजा लें तो पता चलता है कि धुंध का 20 फीसदी उत्सर्जन दिल्ली के वाहनों से, 60 फीसदी दिल्ली के बाहर के वाहनों से तथा 20 फीसदी के आसपास बायोमास जलाने से होता है। राष्ट्रीय राजधानी की 25 लाख आबादी मानक से चार गुणा ज्यादा प्रदूषण की मार झेलने को अभिशप्त है। यही नहीं तकरीब 75 लाख आबादी तीन गुणा यानी 120 से 160 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पी एम 2.5 में सांस लेने को मजबूर है। आस्ट्रिया स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फार एप्लायड सिस्टम एनालिसिस और नीरी के शोध के अनुसार दिल्ली में प्रदूषित हवा के लिए 40 फीसदी दिल्ली वासी और 60 फीसदी पड़ोसी राज्य जिम्मेदार हैं। यदि ऐसे ही हालात रहे तो आने वाले दिनों में स्थिति और भयावह होगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन और दुनिया में हुए हालिया शोध- अध्ययन इसके जीते-जागते सबूत हैं कि देश की हवा दिनोंदिन और जहरीली होती जा रही है। ऐसे हालात में रोजाना दो से पांच मौतें हो रही हैं। यह आंकड़ा बढ़ भी सकता है। इस मामले में बीते 100 सालों में हमने चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। इसलिए पराली जलाने पर किसानों को कोसने से कुछ नहीं होने वाला। इसके लिए सरकारी प्रशासनिक तंत्र की निष्क्रियता पूरी तरह जिम्मेदार है। वायु प्रदूषण की समस्या किसी युद्ध की विभीषिका की आशंका से कम नहीं है। इसलिए विकास का दावा उसी स्थिति में कारगर हो सकता है जबकि वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान हम अपने देश की मौजूदा परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए निकालने का शीघ्रतिशीघ्र प्रयास करें अन्यथा हवा में घुल रहा यह जहर मानव अस्तित्व के विनाश का सबब बन जायेगा। इसमें दो राय नहीं।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।