रविवारीय: तनाव और तनाव प्रबंधन
– मनीश वर्मा ‘मनु’
चलिए इस बार अपने इस स्तंभ में हम बातें करते हैं तनाव की। आख़िर यह क्या बला है? हममें से अधिकतर लोग आजकल तनावग्रस्त रहने लगे हैं। वजह क्या है उनसे पूछो, उन्हें नहीं मालूम। बस इतना जानते हैं – अरे बहुत टेंशन है भाई आजकल- ऐसा लगता है मानो गोया यह टेंशन एक मौसम की तरह है जो आजकल आया हुआ है और कल चला जाएगा। अरे भाई तनाव अगर ज़िंदगी में है तो उसका निदान भी होगा। मेरी समझ में ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका निवारण ना हो। आप समस्या भी जानते हैं और उसका समाधान भी जानते हैं, पर दिक़्क़त कहाँ है ? आप जानबूझकर अनजान बने रहते हैं । आपकी समस्या को कोई हल करने वाला नहीं है । आप ख़ुद सक्षम हैं इसके इलाज करने के लिए। समस्या आपकी है और इसे आपको ही हल करना है ।
काम के दबाव को आप तनाव नहीं कह सकते हैं। दोनों दो चीज़ें हैं । हाँ, काम के दबाव की वजह से तनाव हो सकता है, पर यह आपकी व्यक्तिगत समस्या है। इसे आपको ही सुलझाना है। एक बड़ी सी इमारत बनती है, पर शुरुआत एक ईंट से होती है। इसे आपको समझना होगा। आपको प्राथमिकता देनी होगी ।
आप कहते हैं- वक़्त नहीं है आपके पास। अरे भाई वक़्त तो सभी के पास समान है। आप दिन के चौबीस घंटे को आगे पीछे नहीं कर सकते हैं। आप प्राथमिकता के अनुसार काम करें। वक़्त ख़ुद ही निकल आएगा और काम के दबाव और उससे उत्पन्न तनाव को साथ लिए जाएगा ।
वैसे तनाव से बचने के लिए तनाव प्रबंधन बहुत ज़रूरी है।
आइए आज हम यह समझने की कोशिश करें कि तनाव प्रबंधन वास्तव में है क्या—और इसमें श्रीमद्भगवद्गीता हमारी कैसे सहायता करती है।
आख़िर तनाव प्रबंधन का मतलब क्या है-
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥”
निष्काम कर्म (जहाँ बिना फल की इच्छा के कर्म किया जाता है) । आपको अपने कर्म करने का अधिकार तो है, पर उसके परिणाम पर आपका अधिकार नहीं होता है। परिणाम की आसक्ति तनाव का एक मुख्य कारण है। जहाँ तक संभव हो इससे बचना चाहिए। सुकून और शांति का अनुभव होगा।
“ योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥”
समभाव – सुख और दुख में एक समान रहना । हालाँकि थोड़ा मुश्किल है अपने जज़्बात को क़ाबू में रखना, पर असंभव नहीं ।आपकी कोशिश यह होनी चाहिए कि जीवन के उतार चढ़ाव में भी आप एकाग्रचित्त रहें । हर परिस्थितियों में स्थिर रहें, कदापि विचलित न हों।
“त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः।
कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किञ्चित्करोति सः॥”
आत्म नियंत्रण (मन को वश में करना) के द्वारा तनाव से मुक्ति पाना जहाँ हमें सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करना है । परिणामों की चिंता नहीं करनी है। अगर आप परिणाम की चिंता नहीं करते हैं तो आप अपने मन मस्तिष्क को संतुलित और शांत रख सकते हैं । अपने चंचल और ज़िद्दी मन को आप सतत अभ्यास और अनुशासन से वश में रख सकते हैं। बहुत बड़ी बात नहीं है ।
मोह माया भी तनाव का एक प्रमुख लक्षण है । मोह का त्याग कर आप तनाव से मुक्त हो सकते हैं । किस बात का मोह और क्यों भला ? क्या था आपके पास? क्या लेकर आए थे? ज़िंदगी मोह माया से भरी हुई है। दूर रहने की कोशिश करें ।
निरंतर ज्ञान की खोज और आत्मचिंतन से अज्ञानता और दुख पर विजय प्राप्त कर भी तनाव से मुक्त हुआ जा सकता है।
जिस प्रकार समुद्र की लहरें आती जाती रहती हैं वैसे ही जीवन में कठिनाइयों का क्या? वो तो आती जाती ही रहेंगी। उनसे लड़कर नहीं बल्कि झुककर निकल जाने में ही समझदारी है।सड़कें कितनी भी अच्छी क्यों ना हो आपको स्पीड ब्रेकर को हैंडल करना आना ज़रूरी है। हर वक़्त क्रूज़ कंट्रोल पर गाड़ियों को नहीं चलाया जाता है । ठीक वैसे ही जीवन है तो थोड़ी बहुत कठिनाइयाँ और परेशानियाँ तो रहेंगी। आप उसे हैंडल करना सीखें ।
गीता भी हमें यही सिखाती है। जीवन में आगे बढ़ने और कुछ कर गुज़रने के लिए यह रास्ता बहुत सटीक है।
गीता को सिर्फ और सिर्फ धार्मिक ग्रंथ मानना कहीं से भी उचित नहीं है। गीता तो आपको जीवन जीने की कला का अद्भुत मार्गदर्शन प्रदान करती है। यह आपके व्यक्तित्व और दृष्टिकोण को व्यावहारिक बनाती है। गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को जीवन के हर पहलू में संतुलन बनाए रखने और मन को शांत रखने के लिए अनेक उपदेश दिए हैं। गीता वास्तव में जीवन की चुनौतियों से निपटने और आंतरिक शांति के लिए ज्ञान प्रदान करती है। तनाव – मेरे व्यक्तिगत अनुभवों से मैं कह सकता हूँ, यह कोई बीमारी नहीं अपितु एक धारणा है। आप और हम इसे दिल से न लगाएं। लोगों के बीच रहें । उनसे बातचीत करें । आपकी आधी समस्या तो बस यहीं ख़त्म हो जाती है।
