प्रतीकात्मक फोटो
– डॉ. राजेन्द्र सिंह*
खनन जारी, अरावली की पुकार अब चुप नहीं रहेगी
अरावली सिर्फ पहाड़ियों की श्रृंखला नहीं है, यह उत्तर भारत की जीवनरेखा है। इसकी हर चट्टान, हर जंगल, हर चरागाह और हर नाला हमारी जलवायु, हमारी खेती और आदिवासी जीवन की रक्षा करता है। दशकों से नागरिक समाज, किसान और पर्यावरण कार्यकर्ता इसके संरक्षण के लिए सतत सचेत रहे हैं। उच्चतम न्यायालय ने बार-बार अरावली में अनियंत्रित खनन और पर्यावरणीय नुकसान पर गंभीर चिंता व्यक्त की है और कई आदेशों में स्पष्ट किया कि किसी भी नए खनन पट्टे को पर्यावरण और वन स्वीकृतियों के बिना जारी नहीं किया जाना चाहिए।
लेकिन हाल के महीनों में यह चेतावनी कुछ क्षेत्रों में नजरअंदाज होती दिख रही है। नागरिक अभियानों और स्थानीय स्रोतों के अनुसार, राजस्थान के अलवर, जयपुर, कोटपुतली, तिजारा, राजसमंद, दौसा, भीलवाड़ा, सिरोही और झुंझुनूं जिलों में 2 से 18 दिसंबर 2025 के बीच कई नए खनन पट्टे जारी किए गए। अलवर में 20, जयपुर में 6, कोटपुतली में 7, तिजारा में 2, राजसमंद में 2, दौसा में 1, भीलवाड़ा में 6, सिरोही में 5 और झुंझुनूं में 1 पट्टा, ‘अरावली विरासत जन अभियान’ के अनुसार, जारी किए गए हैं। ये आंकड़े अभियान द्वारा जुटाए गए स्थल निरीक्षण, सरकारी अधिसूचना और रिकॉर्ड पर आधारित हैं। न्यायालय के आदेश की भावना के अनुरूप यह स्पष्ट होना चाहिए कि ये पट्टे किस श्रेणी में हैं और क्या वे पर्यावरण और वन स्वीकृतियों के अनुरूप हैं।
20 नवंबर 2025 को आए हालिया न्यायिक निर्णय ने अरावली की पारंपरिक पहचान और भूमि के भविष्य पर गहरे प्रश्न खड़े किए हैं। नागरिक समाज का मत है कि इस निर्णय की व्याख्या अरावली की सीमाओं और संरक्षण की भावना को प्रभावित कर सकती है। अनुभव बताता है कि जब किसी भूभाग की पहचान कमजोर होती है, तो अगले कदम में उसकी जमीन पर दबाव बढ़ता है—शहरी विस्तार, पर्यटन, खनन और औद्योगिक गतिविधियों के नाम पर। यह लेख किसी भी तरह न्यायपालिका या सरकार पर प्रत्यक्ष आरोप नहीं लगाता, बल्कि सुरक्षित चेतावनी और जागरूक नागरिक आवाज़ पेश करता है।
राजस्थान सरकार ने हाल ही में जारी पट्टों की जानकारी का प्रचार किया है, लेकिन नागरिक अभियान का दावा है कि इससे जुड़ी सटीक स्थिति और भू-स्थानिक विवरण जनता के समक्ष नहीं आए। यह स्थिति चिंता का विषय है, क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट किया था कि खनन के किसी भी नए पट्टे को उच्चतम खनन प्लान और पर्यावरणीय स्वीकृतियों के अनुरूप होना चाहिए।
अरावली संरक्षण के लिए पिछले आंदोलन और परिक्रमा का इतिहास गवाह है कि जब लोग सीधे स्थल पर जाकर अपनी आवाज़ बुलंद करते हैं, तभी खनन गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सकता है। 1980 से सीधे अरावली को बचाने और पुनर्जीवन में काम करने वाले नागरिकों के प्रयास और 1990–1993 की ‘अरावली परिक्रमा’ और ‘अरावली का सिंहनाद’ ने यह दिखाया कि लोक-शक्ति, किसान, आदिवासी और जागरूक नागरिक मिलकर ही पहाड़ों और जल-प्रणाली की सुरक्षा कर सकते हैं। उस यात्रा में भरतपुर, धौलपुर, सवाई माधोपुर, बूंदी, भीलवाड़ा, फुलवारी की नाल, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, मेवाड़, पाली और मारवाड़ जैसे हिस्सों की अरावली को पार करते हुए कुल 18 दलों ने सक्रिय भागीदारी दिखाई थी। गुरुशिखर और माउंट आबू में आयोजित सम्मेलन ने यह सुनिश्चित किया कि प्रत्यक्ष मौके पर खनन गतिविधियाँ रोकी जाएँ और अरावली अधिसूचना लागू हो।
नागरिक अभियान का अनुभव कहता है कि आज भी परिस्थितियाँ उसी मोड़ पर हैं। केवल चर्चा नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष स्थल निरीक्षण और जमीनी जागरूकता जरूरी है। पूरी अरावली की परिक्रमा में भूविज्ञान और राजस्व रिकॉर्ड जानने वाले साथी, स्थानीय किसान और आदिवासी, मीडिया और जागरूक नागरिक, विद्यार्थी और शिक्षक सभी का शामिल होना आवश्यक है ताकि वास्तविक स्थिति सामने आ सके और नीतियों पर प्रभाव डाला जा सके।
अभियान का यह भी दावा है कि इस समय बड़ी औद्योगिक परियोजनाएँ और शहरी विस्तार अरावली के संवेदनशील क्षेत्रों में बढ़ रहे हैं। स्थानीय समुदाय और आदिवासी किसानों को यह समझना होगा कि उनकी जमीन और जीवनरेखा पर इन गतिविधियों का क्या प्रभाव पड़ रहा है। यह लेख इसे नागरिक चेतावनी के रूप में प्रस्तुत करता है, न कि सीधे आरोप के रूप में।
साथ ही, अभियान यह भी बताता है कि नई परिभाषाओं और नोटिफिकेशन ने अरावली की पारंपरिक भूमि पहचान को चुनौती दी है, जिससे उद्योगपतियों और बड़े निवेशकों के लिए जमीन पर नियंत्रण आसान हो गया है। इस प्रक्रिया से किसानों और आदिवासियों की जमीन जोखिम में है। नागरिक अभियान का मानना है कि पारंपरिक सीमाओं, पुराने राजस्व रिकॉर्ड और भू-स्थानिक दस्तावेज़ों का संरक्षण अनिवार्य है, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए अरावली की भूमि संरक्षित रहे।
यह नागरिक अपील स्पष्ट करती है कि अरावली की भूमि अरावली की ही रहनी चाहिए, उसकी पारिस्थितिकी सुरक्षित रहे और आने वाली पीढ़ियों को वही अरावली मिले जो आज भी बची हुई है। अगर आज हम सक्रिय नहीं हुए, अगर आज हम कदम नहीं उठाएँ, तो कल अरावली केवल किताबों और तस्वीरों में बचेगी। विकास के नाम पर पहाड़ काटना विकास नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के साथ विश्वासघात है। अब समय है कि अरावली की पुकार सुनी जाए, लोक-शक्ति और सच की यात्रा शुरू हो, और अरावली का सिंहनाद फिर गूंजे।
नागरिक अभियान इस संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए अगले कदम के रूप में प्रत्यक्ष परिक्रमा और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बना रहा है। अभियान का उद्देश्य केवल खनन रोकना नहीं है, बल्कि असली अरावली को बचाना, किसानों और आदिवासियों की जमीन सुरक्षित करना, जल-प्रणाली और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना है। अभियान की यह यात्रा मीडिया, स्थानीय लोग, विद्यार्थी और शिक्षक सभी के सहयोग से अधिक प्रभावशाली होगी।
अंततः, यह नागरिक अपील और आंदोलनकारी संदेश यही कहता है कि अरावली की गूंज हर कान तक पहुंचे, हर मन में बसे और हर हाथ में सक्रियता पैदा करे। जनता की जागरूकता और प्रत्यक्ष लोक-शक्ति ही अरावली को सुरक्षित रख सकती है। इसे सुनने और समझने में अब देरी नहीं की जा सकती।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।
