– डॉ. राजेन्द्र सिंह*
अरावली न्याय की मांग कर रही है
अरावली पर्वतमाला ने स्वयं हमें एक बार फिर जगा दिया है। 20 नवंबर 2025, उच्चतम न्यायालय के सस्टेनेबल खनन प्लान से अरावली का दर्द और उनके भावी आंसूओं को देख कर हमारी नींद खुल गई है।
खनन सस्टेनेबल नहीं हो सकता। खनन तो नष्ट करता है। किसी भी कीमत पर, किसी भी तरीके से खनन से अरावली जैसी है वैसी नहीं बनाई जा सकती अर्थात सस्टेनेबल नहीं हो सकती। यह शब्द नया है। हमारा इसका पर्याय तो सनातन है। अरावली भी सनातन-पुरातन पर्वत श्रृंखला है। यही इसकी सांस्कृतिक और प्राकृतिक परिभाषा है। इसको जानकर खनन से अरावली की प्रकृति और संस्कृति दोनों ही नष्ट होंगी। अतः खनन सनातन नहीं है। हमारे जीवन की अरावली सभी जरूरत अन्न, जल देती है। खनन तो इसे भी नष्ट करेगा।
यह भी पढ़ें: सस्टेनेबिल खनन एक भ्रमित करने वाला शब्द है
भारत की न्यायपालिका ने अरावली को 1992 से जो भी निर्णय दिए, वे सभी अरावली को संरक्षण प्रदान करते रहे हैं। पर 20 नवंबर 2025, उच्चतम न्यायालय के सस्टेनेबल खनन प्लान से अरावली का दर्द और उनके भावी आंसूओं को देख कर हमारी नींद खुल गई है। न्यायपालिका के पूरे निर्णय को पढ़कर -100 मीटर की ऊंचाई वाली अरावली बचानी है, इसके नीचे खनन किया जा सकता है? यह बात मुझे विचलित कर रही थी।इससे अरावली में सस्टेनेबल खनन का भावी परिणाम मुझे समझ आ गया। फिर मुझे 80- 90 दशक के अरावली खनन विरोधी आंदोलन की यादों ने विस्तार से खड़ा कर दिया।
‘सस्टेनेबल खनन’ शब्द उद्योगपतियों के षड्यंत्रकारी की चाल है।992 के रियो डी जनेरियो, ब्राजील पृथ्वी शिखर सम्मेलन में उद्योगपतियों की चालबाजी से इस शब्द को नए शब्दकोश में शामिल किया गया। फिर संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इस शब्द को अपना लिया है। लेकिन इसमें प्रकृति व संस्कृति को एक यौगिक रूप में विकास का डिजाइन नहीं बनाकर, आर्थिक ढांचे से विकास का डिजाइन बना दिया है। इसलिए दुनिया में एसडीजी-30 भी कारगर नहीं हो रहा है। विनाश ही ज्यादा तेजी से दिखाई दे रहा है।
अब तो अरावली न्याय की मांग कर रही है। अरावली जैसी है वैसी ही बचाने तथा हरित अरावली को साध्य मानना लक्ष्य है, सस्टेनेबल खनन षड्यंत्र है। यह दिखावा है। लक्ष्य तो अरावली से कमाई के लिए काटकर, इसमें छिपे खजाने को निकालना ही है।
7 दिसंबर 2025 को अरावली कोर्ट आयोजित करके देशभर तथा अरावली के चारों राज्यों के साथियों के साथ संवाद किया और अरावली पर आए नए संकट की संपूर्ण जानकारी दी। सभी ने सर्वसम्मति से ‘अरावली चेतना अभियान’ चलाने का निर्णय ले लिया।
इस अरावली चेतना अभियान का परिणाम आंदोलन बनाने की तरफ जाना है। इस अभियान में कार्यकर्ता निर्माण होता है, लक्ष्य के प्रति स्पष्टता निर्मित होती है। अभी अरावली अभियान में कार्यकर्ता बिना कोष व कार्यालय के ही चल रहा है। अब इस अभियान को प्रभावी बनाने हेतु बालकों और विद्यार्थियों को अरावली का स्वस्थ, हमारे स्वस्थ के साथ कैसे जुड़ा है, इसे अधिक समझाने में अभियान में सनातन अरावली का दर्शन बच्चों और विद्यार्थियों को होने लगेगा। फिर ही कार्यकर्ता साथियों के साथ मिलकर उनका दिल, दिमाग, हाथ और आवाज अरावली की आवाज बन जाएगी।
अरावली के किसान संगठनों, आदिवासियों के संगठनों का अरावली से क्या रिश्ता है, उसे जगाना है। खनन से नष्ट अरावली उनके जीवन पर क्या बुरा असर डालेगी? उनकी खेती-पानी कैसे प्रभावित होगा? वकीलों के साथ भी संवाद बढ़ाना है। वकील तो स्वयं अरावली को बचाने जरूर आगे आएंगे। इन्हें न्यायपालिका हेतु, इनकी अरावली के लिए भूमिका पर संवाद स्थापित करने का वातावरण निर्माण होगा। बहुत से वकील स्वयं अरावली को जैसी है, वैसी बनाए रखने की निःशुल्क अदालत में लड़ने हेतु तैयार होंगे। इसी प्रकार शिक्षकों को इस काम के लिए तैयार करने हेतु समझ बनाना है। जो भी अरावली माई से कमाई की सोच नहीं रखते हैं, ऐसे सभी को हमें अरावली कार्यकर्ता बनाकर अरावली पुनर्जीवन हेतु कार्यक्रम बनाना है।
वर्ष 2026, अरावली पुनर्जीवन वर्ष के रूप में मनाएं। इस हेतु वातावरण निर्माण का अभियान शुरू हो गया है। इसे आंदोलन बनाने हेतु क्रमबद्ध, नियमित, प्रकृति संस्कृति को ध्यान में रखकर डिजाइन तैयार करने की जरूरत है।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।
