रविवारीय: वो बड़ी सी हवेली
– मनीश वर्मा ‘मनु‘
आँखें खुली तो अपने आप को एक खंडहर नुमा मकान में पाया। मकान क्या कहें, समझिए एक बड़ी सी चारदीवारी से घिरी एक बड़ी सी हवेली। होश सँभाला और जैसे-जैसे बड़े होते गए, थोड़ी समझ विकसित हुई तो धीरे-धीरे दुनियादारी भी समझ में आने लगी। वैसे दुनियादारी आपको कोई सिखाता नहीं है। यह तो वक़्त के साथ-साथ ख़ुद समझ में आने लगती है। अगर नहीं समझ पाए तो? खैर! वक़्त के थपेड़े तो हैं ही आपको सिखाने के लिये।
थोड़ा विषयांतर हो गया है । चलिए लौटते हैं फिर वहीं पर।उस खंडहर नुमा बड़ी सी हवेली को देखकर इतना तो समझ में आ ही गया था- समय ने थोड़ी अपनी रंगत दिखा दी वरना इमारत तो बुलन्द थी। विरासत की समृद्धि का अंदाज़ा बख़ूबी लगाया जा सकता था। जहाँ तक आपकी नज़र जा सकती थी वहाँ तक बेमिसाल समृद्धि की झलकियां । बहुत कुछ क्या कहें सब कुछ था आपके पास इठलाने को।
यह समझ में आ गया था कि हमारी तुलना नहीं हो सकती है। लोग आते थे। कोशिश उनकी होती थी एक तुलनात्मक अध्ययन करने की। शुरुआत नहीं कर पाते थे। धीरे-धीरे बहुत हौले से वक़्त ने करवटें बदलनी शुरू की। हम अपने आप में ही मशगूल रहे। ऐसा नहीं कि हम होशियार नहीं थे, पर कहीं न कहीं मात खा गए वक़्त के हाथों – नहीं चल पाए हम वक़्त के साथ। हम तो ख़ुश होते रहे अपनी विशाल हवेली और उसकी समृद्धि को देखकर। उसकी समृद्धि को लेकर हम भविष्य के प्रति आश्वस्त हो गए । अपनी दुनिया को हमने उस बड़ी चारदीवारी के भीतर ही सिमटा रखा था। बाहरी दुनिया से कोई सरोकार नहीं। वक़्त के साथ-साथ दुनिया बड़ी तेज़ी से बदल रही थी और हम उस दुनिया से बिल्कुल अंजान अपनी खुद की बनाई दुनिया में मशगूल। वक़्त के साथ सब कुछ बदल गया। वो बड़ी सी हवेली खंडहर हो चली । चाहरदीवारी – सिर्फ़ और सिर्फ़ स्मृतियों में ।
अब हम भूलावे की दुनिया में जी रहे हैं। पुरानी विरासत को याद कर और उसे बता कर इज़्ज़त बरक़रार रखने की कोशिश बदस्तूर जारी है । किसी तरह चीथड़ों से तन ढकने की क़वायद जारी है। अब भी वक़्त है सँभल जाएँ। कम से कम सर छुपाने की जगह तो है।
कल जहाँ हाथी बांधा जाता था वहाँ अब खूंटा भी नहीं बचा और हम हैं कि आज भी इस बात को बताने में गर्व महसूस करते हैं- देखो! उस जगह को देखो। वहाँ हमारे घर में हाथी बँधता था।
बड़ी तकलीफ़ होती है दोस्तों जब आपकी विरासत यूँ आपका साथ छोड़ दे। आइए हम सब मिलकर अपने समृद्ध विरासत को बचाने के लिए आगे आएं और सब कुछ भूलाकर पुनः उसे सोने की चिड़िया बनाने के लिए कृतसंकल्प हों।
बंदे मातरम।
