– स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती*
कुंभक्षेत्र प्रयागराजः हिंदू शब्द को परिभाषित करने के पीछे का कारण भ्रांति निर्मूलन है। भारत के विभाजन के समय हिन्दू शब्द के दुष्प्रचार से कई लोगों ने अपने को हिन्दू न गिनवाकर आर्य आदि गिनवाया, फलस्वरूप हिन्दुओं की संख्या कम होने पर पंजाब का वह प्रान्त जो हिन्दुस्थान में रहना चाहिए था,पाकिस्तान में चला गया। अतः हिंदू शब्द को आधुनिक या विदेशियों की देन समझने वालों के आक्षेप या भ्रांतिका निरसन करना अत्यावश्यक है।
हिंदू शब्द प्राचीन ही नहीं वेदों को भी मान्य है।वेदों तत्पश्चात् स्मृतियों, पुराणों एवं तंत्र साहित्यमें भी परिलक्षित-परिभाषित हुआ है।
हिंदू शब्द वैदिक है और वेदों से ही व्युत्पन्न हुआ है। एक मात्र हिन्द संस्कृति में ही यज्ञ यागादि सर्वविध इष्टापूर्त सम्बन्धी अनुष्ठानों में, श्राद्धादि पितृकार्य में, आयुर्वेदिक उपचारों में सवत्सा गाय का वत्सपान अवशिष्ट दूध ही ग्राह्य माना जाता है। अन्य लोग तो केवल दूध मात्र के इच्छुक हैं फिर चाहे वह पशु को डरा-धमका कर अथवा मशीनों के द्वारा ही बलात् क्यों न सूता गया हो।
‘हिङ्कृण्वती दुहाम्’ शब्दों में वत्सदर्शनसंजातहर्षा – अतएव प्रसन्नता सूचक ‘हिं हिं’ शब्द करती हुई गाय का दोहन करनेवाली हिन्द जाति का निर्वचन पूर्वक हिं-दु शब्द बना है। हिंकार करती गाय को दुहने वाली जाति हिन्दु है ।
हिङ्कृण्वती दुहामश्विभ्याम् – अथर्व० ६।१०।५ स्मृति के अनुसार हिंसा से जो दुःखित होता है, सदाचार के लिए जो तत्पर है ऐसे गाय, वेद और प्रतिमा की सेवा करने वाले वर्णाश्रमधर्मी हिन्दु हैं।अतः हिन्दू वह है जो हिंसा से दूर रहे, सदाचार में तत्पर हो, गो सेवक, वेदनिष्ठ, मूर्तिपूजा में श्रद्धान्वित और वर्णाश्रम पालक हो-
हिंसया दूयते यश्च सदाचरण तत्परः। गो-वेद-प्रतिमा-सेवी स हिन्दुमुखवर्णभाक्।
वृद्ध-स्मृति तैत्तिरीय उपनिषद् की शिक्षावल्ली १.११ आधारित सनातन वैदिक हिन्दू धर्म की आचार संहिता, जिसमें आचार्य स्नातक को माता-पिता-आचार्य–अतिथि को देव मानकर उनकी सेवा करने का, आचार्य के अनिंदनीय कार्य का अनुसरण करने का तथा वर्णोचित कन्या का परिग्रहण कर गृहस्थ धर्म में प्रवेश कर प्रजातंतु के संवाहक बनने का; यज्ञ-यज्ञादि से देवताओं को,श्राद्धादि से पितरों को,वेदाध्ययन/अध्यापन से ऋषियोंके प्रति कर्तव्य का निर्वहन करने का उपदेश करते हैं।
यह हिंदुओं की आचार संहिता का मूल है। हिन्दुओं को इसी अनुसार वेद, स्मृति और सदाचार के अनुसार आचरण करना चाहिए।
हिन्दू धर्म के दो रूप हैं – सामान्य और विशेष। हर हिन्दू को सामान्य धर्मों का पालन करने के साथ-साथ अपना नाम, अपने पिता, दादा आदि का नाम, आस्पद, गोत्र, प्रवर, वेद, शाखा, शिखा, सूत्र, कुलदेवी-देवता आदि की जानकारी होना, कम से कम (कण्ठी या जनेऊ) एक संस्कार करवाना, तिलक चोटी धारण करना और हिन्दू तिथि से मनाए जाने वाले अपने पर्व/उत्सव ही मनाया जाना अनिवार्य है।
प्रयागराज कुंभक्षेत्र में 324 कुंडीय गौ प्रतिष्ठा यज्ञ शुरू हुआ है। कुंभ क्षेत्र में सबसे बड़ी यज्ञशाला में 324 कुंडीय यज्ञ 1100 विद्वान पंडितों के द्वारा संपन्न होगाइसमें एक माह में सवा दो करोड़ से ज्यादा आहुतियां दीं जाएंगी।हमारे देश के 543 सांसद यहां आएं और इस यज्ञशाला की परिक्रमा करें और कुंभक्षेत्र में जो सनातन के अनुयायियों का सबसे बड़ा पर्व है इसमें घोषणा करें कि हम गौमाता को राष्ट्रमाता बनाने के लिए प्रयास करेंगे।यह यज्ञ गौमाता की प्रतिष्ठा के लिए किया जा रहा है ताकि सभी देवता आशीर्वाद प्रदान करें।यज्ञशाला के बाहर कोई भी आकर प्रदक्षिणा कर सकता है,कहा जाता है कि प्रदक्षिणा करने वाले को भी पुण्य मिलता है।
*उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य
प्रस्तुति: संजय पाण्डेय (शंकराचार्य के मीडिया प्रभारी)।