उरई: बुंदेलखंड के जालौन ज़िले में आज जिला प्रशासन द्वारा आयोजित वाटर समिट के अंतर्गत जिले की 568 ग्राम पंचायत के सभी 574 प्राइमरी और जूनियर स्कूल से लेकर इंटर कालेज, और तमाम प्राइवेट विद्यालयों के छात्र, छात्राएं, व अध्यापकों के अलावा अधिकारियों, कर्मचारियों और पुलिस कर्मचारियों को मिलाकर लगभग 7 लाख 50 हजार लोगों ने आज जल संरक्षण, जल संचयन की शपथ ली।
इस अवसर पर स्थानीय राजकीय मेडिकल कालेज में आयोजित कार्यक्रम में भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय में अपर सचिव व मिशन निदेशक अर्चना वर्मा ने कहा कि आज जिलाधिकारी जालौन ने जिस तरह से पानी के जल संरक्षण के लिए जिले में सैंकड़ों पानी की पाठशालाएं आयोजित कराईं हैं, जल के लिए ऐसा काम उन्होंने पूरे देश में नहीं देखा।
जालौन जिले के जिलाधिकारी राजेश कुमार पांडे ने लोगों को पानी को लेकर के जागरूक करने के लिए काफी पहले से प्रयास शुरु किए। इसी वजह से आज के दिन जिले करीब 1800 पानी की पाठशालाओं चलाई गई। इस बारे में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी चंद्र प्रकाश ने विभिन्न विद्यालयों में आज हुए जल शपथ ग्रहण समारोह के बारे में जानकारी दी। प्रदेश के जल निगम के प्रबंध निदेशक राजशेखर ने कहा कि जालौन जिले ने जल सहभागिता के साथ प्रशासन व पुलिस का सहयोग लेकर जल संरक्षण का जो नया इतिहास रचा है, समुदाय को निरंतर इस कार्य में लगे रहना होगा। नहीं तो सफलता नहीं मिलेगी।
जलसंरक्षण और जल संचयन की आज शपथ लेने के बाद छात्र एवं छात्रों ने कहा की वे जल संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध होंगे। “जल संचयन और जल संरक्षण के लिए मैं अपने मां बाप और दीदी के साथ मिलकर तथा जैसा शिक्षक बताएंगे योजना बनाकर काम करेंगे,” प्राथमिक विद्यालय आमखेड़ा के छात्र समर ने कहा।
हमेशा पानी की समस्या से जूझने वालेबुंदेलखंड के शिक्षकों ने बताया कि अब रोज प्रार्थना में इस्तपत को दोहराया जाएगा तथा बाल सभा में भी इस पर चर्चा होग।
एक और छात्र पांकुर ने कहा, “हमारी बहनें, हमारी मां, पहले से ही जल संचयन और जल संरक्षण का काम कर रही हैं। अब हमारी भी कोशिश होगी कि हम अपने उपयोग के लिए कम से कम पानी खर्च करें, उसे व्यर्थ ना करें क्योंकि वरना आगे आने वाले समय में हमारे यहां भी पानी का संकट और विकराल हो जाएगा।”
कक्षा 5 के छात्र हार्दिक भदौरिया ने कहा उनके गांव में जल संचयन और जल संरक्षण का काम जैसे वर्षा के जल को नालियों के माध्यम से तालाब में भरने, नहर के कटने पर श्रमदान का काम सभी महिलाऔर पुरुष करते रहे हैं।
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पिछले कई दशकों में पेय जल की समस्या बुंदेलखंड में काफी विकराल रही है। यहां पिछले चार दशको में घर मे पेय जल की किल्लत का हल केवल और घर की महिलाओं, किशोरियों और छात्रों ने ही किया है। घर के कामकाज और पढ़ाई के साथ छात्राओं पर पानी लाने की जिम्मेदारी भी रहती है। भला हो सर्विलांस का जिसके चलते अब डकैतों से बुंदेलखंड के वासियों को मुक्ति मिल गई है। पर उन दिनों पानी लेने गई लड़कियों, महिलाओं का और छात्रों का डकैत गिरोह अपहरण तक कर लेते थे।
बुंदेलखंड के बच्चे जानते हैं कि पेय जल के लिए महिलाओं, छात्राओं और छात्रों को क्या-क्या सहना पड़ता था। इसी पीड़ा को बुंदेलखंड के चित्रकूट जिले के पाठक क्षेत्र की महिलाएं जो कई-कई किलोमीटर अपने सिर पर मिट्टी का घड़ा लेकर पानी भरने जाती थी, इस दर्द भरे लोकगीत गा कर उजागर करती थीं – “भौरा तोरा पानी गजब कर जाए। गार्गी ना फूटे चाहे खसम मर जाए।”
भौंरा बीहड़ क्षेत्र का वह गांव जहां मीठा पानी लेने के लिए महिलाएं सिर पर मिट्टी की गगरी लेकर जाती थी। चार-पांच किलोमीटर की वह दूरी कितनी कठिन थी कि वह भगवान से मानती थी कि भले ही उनका खसम यानी पति मर जाए लेकिन उनकी पानी से भरी है गगरी न बीच रास्ते में टूटे ।
अर्चना वर्मा ने कहा कि पहले बुंदेलखंड को दस्यु सुंदरी फूलन देवी और अन्य डकैतों के नाम से जाना जाता था। आज जल सहेलियों के कारण देश व विदेश में जाना जाता है। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड की महिलाओं को पेयजल के लिए कई कई किलोमीटर तक सिर पर घड़ा रखकर जाना पड़ता था। लेकिन जल सहेलियों ने इस स्थिति को बदल दिया।
जालौन के जिलाधिकारी राजेश कुमार पांडेय ने बताया कि जिले में कई प्रभावी कार्य किए गए हैं। कुल 385 चैकडेमों का निर्माण किया गया है, जिसमें 56 चैकडेमों में डिसिल्टिंग का कार्य और 26 चैकडेमों में मरम्मत कार्य की प्रक्रिया चल रही है। इसके अलावा, 410 अमृत सरोवरों का निर्माण किया गया, जबकि 165 और अमृत सरोवरों का निर्माण कार्य प्रगति पर है। जल संरक्षण के लिए अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में जनपद के 135 राजकीय भवनों जैसे विद्यालयों, पंचायत भवनों, तहसील, कलेक्ट्रेट और विकास भवनों पर रूफटॉप रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का निर्माण किया गया। इसके अलावा, 3886 हैंडपंपों पर सॉकपिट का निर्माण किया गया है। जनपद में जल संरक्षण और नदी के तटीय क्षेत्रों में भी काम किया गया है। यमुना नदी के दाएं तट पर वेदव्यास मंदिर और कालपी घाट में 1.150 किलोमीटर रिवेटमेंट का निर्माण किया गया है, जिससे एक हजार से अधिक भूमि कटान रहित उपजाऊ भूमि में परिवर्तित हो गई। उन्होंने कहा कि जल पुनर्भरण के लिए 7 ग्रे वॉटर मैनेजमेंट इकाइयां बनाई गई हैं, और कुओं का पुनरुद्धार भी किया गया है।
जल जन जोड़ों अभियान के राष्ट्रीय संयोजक एवं परमार्थ स्वयंसेवी संस्था के संस्थापक डॉ. संजय सिंह ने कहा कि आज से जल संरक्षण और संचयन आंदोलन बन गया है। इसे जन आंदोलन बनाना होगा।
चाहे केंद्र सरकार हो या प्रदेश सरकार या फिर ज़िला प्रशासन और समाज का जागरूक वर्ग, सभी का जोर यह है की जल का संरक्षण कैसे हो और जल जो इतनी तकलीफों के बाद यहां लोगों को मिलता है, उसकी बर्बादी ना हो।
*वरिष्ठ पत्रकार