धीरे धीरे आया चुनाव
पहले चलता था मनाव
धीरे धीरे आया चुनाव
इसमें आने लगा घुमाव
लगे तरह-तरह के दाव
लोकतंत्र में लगे जो घाव
खरीद-फरोख्त के भाव
हिंसा, झूठ जुमले दबाव
मतदान का बना स्वभाव
धन-दौलत और सबाब
नशा शराब और कबाब
हार कर हुए बदनाम
जीते का अंधा सम्मान
सत्ता की संभाली कमान
बने कोठी बंगले मकान
भ्रष्टाचार की खुली दुकान
घूमा खूब दुनिया-जहान
किसी का उठा ले सामान
मान न मान मैं तेरा मेहमान
कैसा यह लोकतंत्र का नाम
बची ना जहां जन की शान
जनता गुणों की बने खान
मतदाता की हो पहचान
जागेगा जब सबका स्वाभिमान
निर्भय निष्पक्ष निर्वैर हो मतदान
बचेगा तब चुनाव का सम्मान
देश का होगा सही कल्याण।।