तू ही चल सकता है
तू चल
तू ही चल सकता है।
तू चल
तेरे पास पांव है
हल है, कुदाल है
दरांती की धार है
खुरपी की खुदाई है
मिट्टी की खुशबू है
पेड़ की छांव है
आश है, ऊर्जा है
चाह है, राह है
बीज है, जीव है
सपना है।
तू चल
तू मजदूर है
किसान है
तू अन्नदाता है
सबको खिलाता है
तू शान है
तू मान है
तू ही तो सम्मान है।
तू चल
तू चल सकने की क्षमता है
मां की ममता है
साया है
आंचल की छाया है।
तू कमेरा है
सहारा है
माथे का पसीना है
हाथ का छाला है
फूलों की माला है
धरती का लाल है।
तू चल
तेरे में दम है
खम है
तू ही चल सकता है।
Image by Mohan Nannapaneni from Pixabay
किसानों के लिए मन में बेहतरीन भाव के साथ लिखी गई सार्थक पंक्तियां हैं। आदरणीय रमेश जी शर्मा भाईसाहब को मेरा प्रणाम।
सुन्दर शब्द हैं, सुंदर भाव हैं कविता में। बधाई रमेशजी। एक सुझाव था, तू के स्थान पर आप लिखते तो सम्मानजनक होता किसान जी के लिए।।
पुनः बधाई। सादर।