बेनापुर के सुल्तानगाजे क्षेत्र में बहने वाली पुनर्जीवित अग्रणी नदी, आइन वाड़ी गांव से शुरू होती है। यहां से यह नदी केआर 36 व केआर 39 के तट पर बहती हुई नीचे कर्नाटक के पुलकवली गांव में प्रवेश करती हुई, कृष्णा नदी में मिल जाती है।
यह नदी, वर्ष 2013 से पहले मर गई थी, पूरा क्षेत्र बहुत गंभीर जल संकट से ग्रस्त रहता था।
वर्ष 2013 में इस नदी पुनर्जीवित करने का काम बलोडी गांव से शुरू हुआ। यहां एक जल संरचना का निर्माण करके काम शुरू किया गया था। इसके बाद जलबिरादरी और सरकार ने भी मदद करी। यह राज, समाज का साझा नदी पुनर्जनन का प्रयोग धरती पर अब दिखने लगा है।
महाराष्ट्र जल बिरादरी के अध्यक्ष नरेन्द्र चुघ ने बताया कि यह अग्रणी नदी 2003 के फरवरी महीने में बिल्कुल सूखी हुई थी, इस तट पर बैठकर बैठक की थी। जहां अब हम बहता हुआ पानी देख रहे हैं। आज यह नदी यहां अविरल – निर्मल बह रही है और कुओं में लबालब पानी भरा हुआ है। इससे यहां अंगूर और अनार की खेती से एक – एक गांव में 5-5 करोड़ रुपए का व्यापार हो रहा है और समाज बहुत खुश है।
अग्रणी नदी के बेसिन में अंगूर की खेती बहुत होती है। वर्ष 2003 में बलोडी गांव में किसानों ने बताया था कि हमारे अंगूर के 250-275 बाग थे, लेकिन पानी के कमी कारण लगभग 100 से ज्यादा बागों को बंद करना पड़ा था। यहां स्थित सौलज के गांव में भी 2002-03 में इतना भयानक सुखाड़ आया था कि लोगों को पीने के पानी तक का संकट आ जाता है। यहां के लोग दूषित शोधित पानी को भी 500 रुपए प्रति टैंकर लेने को तैयार थे। अब 2013 के बाद अग्रणी पुनर्जीवित होने से जल संकट दूर हो गया और अभी पर्याप्त पानी है। 2018 के भयानक सूखे में भी लोगों को पानी मिलता रहा था।
कोकले गांव में महाकाली नदी के पुनर्जनन का कार्य भी देखने लायक है। यहां महाकाली नदी का पूरे बांध पर पानी बह रहा है। दिसंबर माह में इतना पानी बहना यह इस बात का प्रतीक है कि इसमें अब पूरे साल पानी रहेगा। अंतरराष्ट्रीय जल संस्थान, जोधपुर के निदेशक आशुतोष तिवारी ने कहा कि यह बहुत बड़ा काम है और इस काम से ही हम दुनिया में बाढ़ – सुखाड़ की मुक्ति की युक्ति सीखा सकते हैं। क्योंकि भारत व मराठवाड़ा का सबसे सूखाग्रस्त क्षेत्र कोटेमहाकाल और जत्त जहां पशुपालन की छावनियां लगती थीं, वहां आज नदी बह रही है। यह सुनकर आश्चर्य होता है लेकिन अब हमारी आंखों के सामने यह प्रत्यक्ष देख रहा हूँ। यह शिक्षण और शोध के लिए बड़ा काम है। इसलिए पीएचडी विद्यार्थियों को अपने विश्व जल संस्थान की तरफ से लगाऊंगा।
अग्रणी नदी पुनर्जीवन जल प्रबंधन से होने वाले आर्थिक, सामाजिक और वैज्ञानिक बदलाव से दुनिया भर को सीख लेना चाहिए। इस क्षेत्र ने अब जल का संकट नहीं है, लोगों के पास पर्याप्त जल है। यहां पानी आ जाने से लोग अपनी खेती करके खूब कमाई कर रहे हैं और बहुत खुश हैं।
*जल पुरुष के नाम से विख्यात जल विशेषज्ञ