रविवारीय: आज मौसम बड़ा सुहाना है क्या?
– मनीश वर्मा’मनु’
हम अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं – आज मौसम बड़ा सुहाना है! बड़ा ही प्यारा मौसम है आज ! मौसम बड़ा ही खुशगवार है! फलाँ फलाँ फलाँ…पर, भला यह कैसे हो सकता है? यह एक व्यक्तिनिष्ठ चीज है। आप इसे वस्तुनिष्ठ कैसे बना सकते हैं। हम यह जरूर कहते हैं कि सूर्य अस्त हो चुका है या फिर सूर्य उदय हो चुका है।
पर, वास्तविकता क्या है? सूर्य न तो अस्त होता है, ना ही उदय होता है। दुनिया के एक भाग में अगर सूर्य अस्त होता है, तो कहीं दूसरे भाग में उदय होता है। यह तो एक भौगोलिक प्रक्रिया है। उसी प्रकार अगर मौसम सुहाना है, अच्छा है या फिर खुशगवार है, तो इसका मतलब यही नहीं कि यह सार्वभौम है। यह तो आपके और हमारे, हमारी मनोदशा के अनुरूप सोचने का नजरिया है। हम किस प्रकार सोचते हैं, हमारी सोच कितने आयामों से गुजरती है! यह हमारी और आपकी मनोदशा ही तो है!
उस किसान से जाकर पूछें, जिसने अभी-अभी फसल काटकर, काटी हुई फसलों को खलिहान में खुले में रख दिया है, या फिर खेतों में फसल पककर तैयार खड़ी हो और इस सुहाने मौसम की बेमौसम बरसात ने उसके सपनों को चूर चूर कर दिया, जो उसने देख रखे थे! अब वो सर पर हाथ रख कर गंभीर चिंता में डुबा हुआ है। अब कहां से वो महाजन का कर्ज चुका पाएगा। कहां से वो इस बार की लग्न में अपनी बिटिया की शादी कर पाएगा। कहां से आपने टूटे हुए छत की मरम्मत और रंग रोगन करवा पाएगा। इस बार फसल अच्छी हुई थी। अपनी पत्नी से उसने वादा किया था – बहुत दिनों से तुम्हारी चाहत थी एक कंगन लेने की। इस बार जरूर लें दूंगा। बेमौसम की बारिश ने तो खलिहान में पड़े अनाज और खेतों में पकी हुई फसल को तो बर्बाद किया ही साथ ही साथ उसके सपने को भी तोड़कर रख दिया।
भाई किसानों की सोच का दायरा ही फसल और खेतों के बीच घूमता रहता है! उसकी आशा और निराशा सबके मूल में खेत, खेती और फसल ही तो है। उसके सपनों की बुनियाद भी खेत, खेती और फसलों पर ही रखी होती है।
ज़रा उस मेहनतकश मजदूर से पूछें, जो अमूमन आपको गाँवों के बाजार में या फिर शहरों के मुख्य चौराहों पर एक भीड़ के रूप में सुबह सुबह मिल जाते हैं! जिन्हें आज कोई काम नही मिल पाया। क्या खाएँगें उनके बच्चे आज! कभी सोचा है? उनकी मनोदशा को समझने की कोशिश जरूर करें। उस व्यक्ति से पूछें, जिसका कोई अपना अस्पताल में जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहा है! उस व्यक्ति से पूछें, जिसके घर आज किसी की मौत हो गई हो।
वाकई मौसम सुहाना है! अच्छा है! खुशगवार है! पर निर्भर करता है परिप्रेक्ष्य पर!
अगर अकाउंट्स की बात करें, तो क्या डेबिट का मतलब सिर्फ और सिर्फ जाने से है? या फिर क्रेडिट का मतलब सिर्फ और सिर्फ आने से है? नहीं। बिल्कुल नहीं। किसी के लिए डेबिट है, तो किसी और के लिए क्रेडिट हैं।
कहने का मतलब हर चीज के दो पहलू होते हैं। आपको इन्हें समग्र रूप में देखना होगा। चीजें वस्तुनिष्ठ नहीं हो सकती हैं। हम इंसान हैं, पशुओं की तरह व्यवहार नहीं कर सकते। हमारे सोचने का दायरा विस्तृत है। व्यापक है, सब्जेक्टिव है! विभिन्न आयामों से गुजरती है हमारी सोच। आपका वक्तव्य यह बताता हैं कि आपकी मनोदशा क्या है। व्यक्ति मनोदशा से इतर नहीं सोच सकता है।
किसी ने मनोदशा के संदर्भ में क्या खूब कहा है –
“सौ में एक बात खूबसूरत
हज़ार रात में एक रात खूबसूरत है। खूबसूरत है आदमी से आदमी का दिल! मौसम में बरसात खूबसूरत है।
चाँदनी रात में बरसात बुरी लगती है।
घर में अर्थी हो तो बारात बुरी लगती है!
ऐ दोस्त मत छेड़ मेरे वीणा के तारों को, जब दिल में दर्द हो तो हर बात बुरी लगती है!!”
Amazing