“भारत में सरसों का 6000 साल के इतिहास का सफाया हो जाएगा, और हम इसकी अनुमति नहीं दे सकते – हम और लोगों को एकजुट करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि भारत सरकार की इस गैर-जिम्मेदाराना हरकत से कोई अपरिवर्तनीय क्षति न हो”
नई दिल्ली/चंडीगढ़: जीएम सरसों के ‘पर्यावरण रिलीज’ के लिए ‘जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति’ (जी.ई.ए.सी.) द्वारा जारी अनुमोदन पत्र के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, ‘सरसों सत्याग्रह’ नागरिक प्रतिरोध मंच ने देश भर में अपने प्रतिरोध को फ़ैलाने का आह्वान किया है।
एक संवाददाता सम्मेलन में आज सरसों सत्याग्रह ने कहा, वह हर उपलब्ध लोकतान्त्रिक और अहिंसक उपायों को सक्रीय कर यह सुनिश्चित करेगा कि जीएम सरसों की रोपाई पर तुरंत रोक लगे और इससे भारत में कोई अपरिवर्तनीय और गैर-जिम्मेदार दुर्गति न हो। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को मामले पर यथास्थिति बनाए रखने और 10 नवंबर को इस मामले की सुनवाई होने तक किसी भी जीएम-सरसों के रोपण की अनुमति नहीं देने का आदेश दिया है।
“जीएम-सरसों की मंजूरी के मामले में बीटी-बैगन से भी बुरी तरह से नियामक प्रक्रियाओं का पालन किया गया है – जिस तरह से जी.ई.ए.सी. ने जल्दबाजी में हरी झंडी दिखाई है, वह बेहद शर्मनाक है। बीटी-बैंगन का बाद में जो हश्र हुआ सभी जानते हैं। कैसे उसके इस्तेमाल को अनिश्चितकालीन स्थगित किया गया और आज तक भारत में उसे सुरक्षित साबित करते हुए एक भी अध्ययन सामने नहीं आया है। हम भारत में बीटी-कपास की विफलता की भी जमीनी सच्चाई जानते हैं, बावजूद इसके कि उद्योगों और जीन प्रौद्योगिकी समर्थकों ने उसके झूठे प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी। यही वह ‘सत्य’ है, जो जीएम-सरसों का रास्ता रोकेगा,” मंच ने कहा ।
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मंच ने सरकार पर आरोप लगाया किनियामक सम्बन्धी निर्णय लेने में वैज्ञानिक दृहता को ताक पर रखा गया और ऐसा प्रतीत होता है कि पर्यावरण मंत्रालय ने इस खतरनाक शाकनाशी-सहिष्णु जीएम-खाद्य फसल के मामले में एक जिम्मेदारी पूर्ण नीति-निर्माण का रास्ता नहीं अपनाया। “अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम देश के नागरिकों को वैज्ञानिक साक्ष्य प्रस्तुत करें – उन्हें अवगत कराएं कि निराधार दावों के आधार पर जीएम-सरसों के द्वारा हमारे साथ कितना अपरिवर्तनीय खतरनाक प्रयोग किया गया है,” ‘सरसों सत्याग्रह’ की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पैनलिस्टों ने कहा।
वक्ताओं में कपिल शाह (जैविक खेती के प्रवर्तक, आशा-किसान स्वराज); डॉ. धीरज सिंह [आई.सी.ए.आर. के रेपसीड-सरसों अनुसंधान निदेशालय (डी.आर.एम.आर.) के पूर्व निदेशक]; डॉ. सतविंदर कौर मान (सेवानिवृत्त, पादप रोगविज्ञानी); सुभाष कंबोज (मधुमक्खी पालन संघ); देविंदर शर्मा (प्रसिद्ध कृषि और खाद्य नीति विश्लेषक); मंजू देवी बादलबीघा (सरसों की किसान); युद्धवीर सिंह (किसान आंदोलनों की भारतीय समन्वय समिति); कविता कुरुगंटी (जीएम-मुक्त भारत के लिए गठबंधन) और उमेंद्र दत्त (खेती विरासत मिशन);अमित धानुका शहद एक्सपोर्टर एसोसिएशन शामिल थे।
वक्ताओं ने कहा कि जहाँ आई.सी.ए.आर. और जीएम-समर्थक लॉबी जीएम-सरसों के बारे में झूठ फैला रहे हैं, वहीं वास्तविकता बहुत अलग है।उन्होंने निम्नलिखित आरोप लगाए:
(1) जीएम-सरसों में कोई उत्पादन लाभ साबित नहीं हुआ है जिससे कि इसके “पर्यावरण रिलीज” की अनुमति दी जाए। जीएम-सरसों की व्यावसायिक खेती वास्तव में भारत की उत्पादकता को कम कर सकती है, अगर इसे बहुत बड़े क्षेत्र में बोया जायेगा। डीएमएच -11 जीएम-सरसों भारत में उपजाई जाने वाली अन्य लोकप्रिय किस्मों और संकर सरसों की तुलना में कम उपज देने वाली है। फिर भी इसके बीज उत्पादन को नियामकों द्वारा अनुमति दी गई है। नर-बन्ध्यता लक्षण (मेल स्टेरिलिटी ट्रेट) के फैलने की भी संभावना है, और इससे वास्तव में किसानों को नुकसान होगा। यह सरासर किसान विरोधी है।
(2) जीएम-सरसों ने खुद को एक प्रभावी संकरण (हाइब्रिडाइजेशन) तकनीक साबित नहीं किया है।
(3) जीएम-सरसों परीक्षण ने भारत में नए किस्म/संकर अनुसंधान के लिए बनाई गई आई.सी.ए.आर. के दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया है। ट्रांसजेनिक स्तर पर लागु नियामक आवश्यकताओं से भी इसने समझौता किया है। इसके अलावा, इसने कीटनाशकों से संबंधित नियमों का भी उल्लंघन किया है।
(4) जीएम-सरसों का परीक्षण शाकनाशी-सहनशील फसल के रूप में नहीं किया गया है। जीएम-सरसों की सुरक्षा और प्रभावकारिता के संबंध में सीमित परीक्षण किया गया है। किए गए सीमित सुरक्षा परीक्षण पहले से ही पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए जीएम-सरसों की सुरक्षा की कमी को प्रदर्शित कर रहे हैं।
(5) सरकार या जी.ई.ए.सी. के लिए यह कहना निरर्थक है कि ग्लूफ़ोसिनेट का उपयोग केवल जीएम-सरसों के बीज उत्पादन में किया जाएगा और यह कि “किसी भी स्थिति में किसान के खेत में खेती के लिए शाकनाशी के किसी भी सूत्र के उपयोग की अनुमति नहीं है”। सभी जानते हैं कि जी.ई.ए.सी. के साथ-साथ सरकारें भारत में अवैध शाकनाशी-सहिष्णु-कपास (हर्बीसाइड टोलेरंट कॉटन) के प्रसार और कपास की फसल पर शाकनाशी की अवैध बिक्री और उपयोग को रोकने में बुरी तरह विफल रही हैं। जी.ई.ए.सी. द्वारा कागज पर एक पंक्ति जोड़ने का कोई अर्थ नहीं है जब विफलता की वास्तविकता हमारे सामने इतनी स्पष्ट रूप से खड़ी है। साथ ही, गैर-जिम्मेदार तरीके से नियामक निर्णय लेने के बाद यह किसानों को अपराधी बनाने का प्रयास है!
(6) जनक वंशक्रमों (पैरेंटल लाइन्स) का परीक्षण बिल्कुल नहीं किया गया है, जबकि जनक वंशक्रम जो कि शाकनाशी-सहिष्णु-जीएम पौधे भी हैं, को पर्यावरणीय रिलीज के लिए भी अनुमति दे दी गई है!
(7) भारत के किसानों के पास पहले से ही सरसों की संकर किस्मों का विकल्प है जो सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र दोनों से प्राप्त किया जा सकता है। पहले से ही भारत की सरसों की 45% से अधिक भूमि पर संकर बीज लगाए जा रहे हैं। यह उल्लेखनीय है कि भारतीय सरसों एक एम्फी-डिप्लोइड (एम्फी-डिप्लोइड) प्रजाति है, जहाँ प्राकृतिक रूप से पूर्वज बी-रैपा और बी-निग्रा के मेल से ब्रैसिका जंकिया पैदा होता है। इसका मतलब है कि भारतीय सरसों पहले से ही प्रकिर्तिक रूप से संभवतः एक संकर है। बेहतर प्रदर्शन करने वाली स्थानीय किस्मों का उत्पादन संकर के बराबर ही होता है – विभिन्न राज्यों के साक्ष्य स्पष्ट रूप से इसे दर्शाते हैं। जैसा कि पहले भी जिक्र किया गया है, किसानों के लिए सरसों के हाइब्रिड विकल्प पहले से ही मौजूद हैं। यह जीएम-सरसों मुख्य रूप से बीज उत्पादन संस्थाओं और ग्लूफोसिनेट जैसे घातक रसायनों के बाजार को आसान बनाने के लिए बनाई गई है।
(8) ग्लूफ़ोसिनेट के दुष्परिणामों के बारे में भरपूर वैज्ञानिक सामग्रियां प्रकाशित हो चुकी हैं और मौजूदा सामग्रियां इसे पर्याप्त रूप से एक घातक रसायन स्थापित करती हैं।
(9) जीएम-सरसों के बारे में स्वदेशी कुछ भी नहीं है – मूल तकनीक का पेटेंट बहुराष्ट्रीय कंपनी ‘बायर’ के पास है, और हाल ही तक, यह भारत में भी ग्लूफ़ोसिनेट पर एक पेटेंट रखता था। भारत ने स्वदेशी बीकानेरी बीटी-कपास के नाम पर पहले से ही घोटाला देखा है. इस तथाकथित स्वदेशी बीटी-कपास को खुद भारत सरकार ने बाजार से वापस ले लिया, बावजूद इसके कि मोनसेंटो ने भारत में उसका पेटेंट नहीं कराया था।
(10) सुप्रीम कोर्ट और सी.आई.सी. के आदेशों के बावजूद भी जीएम-सरसों के जैव-सुरक्षा डोजियर को स्वतंत्र जांच से अभी तक छुपा कर रखा गया है। नागरिकों द्वारा एकत्र की गई जानकारी के अलावा और क्या-क्या अभी भी जैव-सुरक्षा डोजियर छिपा है किसी को नहीं पता। जैव-सुरक्षा डोजियर क्यों छुपाया जा रहा है, इसकी मात्र कल्पना ही की जा सकती है।
(11) जब सरसों के तेल की बात आती है, तो भारत कमोबेश आत्मनिर्भर है (2.6 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन और लगभग 2.8 मिलियन मीट्रिक टन मांग) । सिर्फ इसलिए कि अधिक सरसों के तेल का उत्पादन हो सकता है, इसका मतलब यह नहीं है कि देश के गैर-सरसों का उपभोग करने वाले क्षेत्रों के नागरिक इसे स्वीकार करेंगे, यह देखते हुए कि भारत में खाद्य तेल प्राथमिकताएं बहुत सामाजिक-सांस्कृतिक/क्षेत्रीय विशिष्ट हैं।
(12) भारत में तिलहन उत्पादन और सरसों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए कई वैकल्पिक तकनीकी और नीतिगत विकल्प उपलब्ध हैं। इन्हें अंजाम देना केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति पे निर्भर है।
(13) जैसा कि पहले ही कई लोगों ने बताया, कई अन्य मोर्चों पर परीक्षण की कमी के अलावा, जीएम-सरसों का मधुमक्खियों और अन्य परागणों पर होने वाले इसके प्रभाव के लिए भी ठीक से परीक्षण नहीं किया गया है। किसानों के अलावा मधुमक्खी पालकों की आजीविका पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने वालाहै। भारत के शहद निर्यात की संभावनाएं भी प्रभावित होंगी।
गौरतलब है कि भारत में कई स्वतंत्र और विश्वसनीय समितियों ने एक के बाद एक एचटी-फसलों पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया है। वक्ताओं ने कहा इसमें सुप्रीम कोर्ट की तकनीकी विशेषज्ञ समिति भी शामिल है, जिसके सभी स्वतंत्र विशेषज्ञ सदस्यों ने (जिसमें भारत सरकार के नामांकित विशेषज्ञ शामिल थे) सर्वसम्मति से एचटी-फसलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
सरसों सत्याग्रह ने सरकार को चेतावनी दिया कि जिस सरसों को हम लगभग 6,000 वर्षों से जानते, उगाते और उपयोग करते आये हैं , उसे नष्ट न करे और सरसों के इस विविधता के केंद्र को खतरे में न डाले।
सरसों सत्याग्रह ने यह भी चिन्हित किया कि जी.ई.ए.सी. जीएम-सरसों के पर्यावरणीय रिलीज को अधिकृत नहीं कर सकता है। वर्ष 2010 में, इसका नाम जेनेटिक इंजीनियरिंग “अनुमोदन” समिति से बदलकर जेनेटिक इंजीनियरिंग “मूल्यांकन” समिति कर दिया गया था। जी.ई.ए.सी. ने खुद वर्ष 2017 में जीएम-एचटी-सरसों के पर्यावरणीय रिलीज की सिफारिश करते समय यह दर्ज किया था कि इसका अनुमोदन एक “सक्षम प्राधिकारी/ नियोग” द्वारा दिया जाएगा। यह “सक्षम प्राधिकारी” कौन है ? और अगर है तो फिर कैसे जी.ई.ए.सी. ने 25 अक्टूबर 2022 को डॉ पेंटल को एक अनुमोदन पत्र जारी किया?उसने मांग की कि “सक्षम प्राधिकारी” की आधिकारिक मंजूरी को फाइल नोटिंग सहित तुरंत सार्वजनिक किया जाए।
“हम यह भी नोट करते हैं कि जीएम सरसों के दुष्परिणाम सामने आने की स्तिथि में बाद इसे वापस लेने और दायित्व तय करने की कोई प्रक्रिया स्थापित नहीं की गई है। यहाँ कौन उत्तरदायी होगा – फसल विकासकर्ता, आई.सी.ए.आर, जी.ई.ए.सी.? शाकनाशी-सहनशील लक्षण के फैलाव, खरपतवार नाशक बहाव (वीडकिलर ड्रिफ्ट) से होने वाले नुकसान, बन्ध्यता (स्टेरिलिटी) का प्रकोप और दूषितकरण (कंटैमिनेशन) और जैविक प्रमाणीकरण (आर्गेनिक सर्टिफिकेशन) के नुकसान के लिए किसे उत्तरदायी ठहराया जाएगा? किसानों को ग्लूफ़ोसिनेट नामक शाकनाशी का उपयोग करने से रोकने के लिए नियामक कौन सी योजना बना रहे हैं?”
इस पृष्ठभूमि में, सरसों सत्याग्रह जीएम सरसों को दिए गए इस अनुमोदन के खिलाफ जन-प्रतिरोध को और तेज करने, और जीएम-सरसों के दुष्प्रभाव से खुद को और अपने पर्यावरण को बचाने के लिए सभी लोकतांत्रिक और अहिंसक तरीकों को अपनाने की घोषणा की।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो