नयी दिल्ली: भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक ने आज सरकार से आग्रह किया है कि एक भी तथ्यात्मक अध्ययन नहीं होने के कारण वह जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) सरसों को स्वीकृति न दे। जैव परिवर्धित सरसों हेतु जैव प्रोद्योगिकी नियामक ने अनुवांशिक रूप से संशोधित सरसों को पर्यावरणीय परीक्षण हेतु सिफारिश की थी। केन्द्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र सिंह यादव को आज लिखे एक पत्र में यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेन्द्र मलिक ने दावा किया कि जीएम सरसों से किसानों का नहीं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का लाभ होगा और यह बीटी कॉटन में भी साबित हो चुका है।
जी एम सरसों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का भ्रमजाल बताते हुए यूनियन ने कहा कि जीएम सरसों के बारे में उत्पादन और कीट न लगने का जो दावा किया गया है वह बीटी कॉटन में पूरी तरह से झूठ साबित हुआ हैं। साथ ही उसने सरकार को यह भी ध्यान दिलाया कि देश में सबसे अधिक किसानों की आत्महत्याएं बीटी कॉटन के क्षेत्र में हुई हैं।
यूनियन ने कहा कि देश में निजी कम्पनियाँ बीज के क्षेत्र में एकाधिकार स्थापित करना चाहती हैं और कृषि के क्षेत्र में निजी कम्पनियों के अध्ययन एवं दावों पर भरोसा करना उचित नहीं है। देश में अगर यही काम भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा किया जाता तो किसान इसको लेकर विश्वास कर सकता था। यूनियन के मुताबिक जहां एक ओर निजी कम्पनियों की प्रजातियों से धीरे-धीरे किसानों के हाथ से बीज निकल रहा है और निजी कम्पनियाँ बीज बेचकर मालामाल हो रही हैं, वहीँ दूसरी ओर जीएम सरसों के बारे में देश का किसान कोई जानकारी नहीं रखता है।
जी एम सरसों से होने वाले प्रभाव के बारे में कोई विस्तृत शोध के अभाव में इसका मानव स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होगा इसका भी कोई तथ्यात्मक अध्ययन नहीं किया गया है। यूनियन ने कहा देश में डीएमएच 11-1,2,3 सहित अधिक पैदावार वाली प्रजाति पहले से ही उपलब्ध हैं। केवल उत्पादन के दावे के आधार पर जी एम सरसों की अनुमति उचित नहीं हैं। देश में पहले ही फसलों में प्रयोग कीटनाशक के जरिये कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां बढ़ रही हैं। जीएम सरसों से बने खाद्य तेलों या सरसों के साग के साथ कीटनाशक के रूप में देश के नागरिक जहर खाने को मजबूर होंगे। 1986 में शुरू हुए खाद्य तेल तकनीकी मिशन से 1993-94 तक देश में जरूरत का 97 फीसदी तिलहन उत्पादित होने लगा था। “सरकारों की गलत आयात नीतियों के कारण अब हम 60 फीसदी से अधिक तेल का आयात करने लगे हैं। इससे स्पष्ट है कि किसानों के लिए तिलहन उत्पादन फायदेमंद नहीं रहा। यह केवल बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को मायाजाल हैं,” यूनियन ने कहा और मंत्री को आग्रह किया कि वे इसमें अविलम्ब हस्तक्षेप कर जीएम सरसों के बीज को व्यावसायिक अनुमति दिए जाने से रोकें।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो
बहुत सुन्दर लिखा है । सटीक विश्लेषण और जानकारी दी है ।