– प्रशांत सिन्हा
केंद्र सरकार द्वारा संसद में कहा गया है कि देश के अधिकांश क्षेत्रों में भूजल जहरीला हो चुका है। सरकार द्वारा राज्य सभा को बताया गया है कि देश के लगभग सभी राज्यों के अधिकांश जिलों के भूजल में जहरीली धातु पाई गई है जिसकी मात्रा तय मानक से बहुत ज्यादा है।
पानी शरीर के लिए बहुत आवश्यक तत्व है और यह शरीर के कुल भार का लगभग 60 फीसदी होता है। एक इंसान के दिमाग में 75 फीसदी, हड्डियों में 25 फीसदी और खून में 82 फीसदी पानी होता है। शरीर के प्रत्येक तंत्र की कार्य प्रणाली पानी पर निर्भर रहती है। पानी शरीर से हानिकारक तत्वों को बाहर निकालकर पोषक तत्व व ऑक्सिजन प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
परन्तु देश के 209 जिलों के भूजल में आर्सेनिक और 491 जिलों में आयरन की ज्यादा मात्रा पाई गई है। इसके अलावा शीशा, क्रोमियम, यूरेनियम और कैडमियम की भी ज्यादा मात्रा भूजल में पाई गई है। देश के 25 राज्यों के 209 जिलों के कुछ हिस्सों में आर्सेनिक की मात्रा 0.01 मि ग्रा/ लीटर से ज्यादा पाई गई है वहीं 29 राज्यों के 491 जिलों में सीसा की 0.01 मि ग्रा/ लीटर, 11 राज्यों के 29 ज़िलों में कैडमियम की 0.003 मि ग्रा/ लीटर, 16 राज्यों के 62 ज़िलों में क्रोमियम की 0.03 मि ग्रा/ लीटर और 18 राज्यों के 152 जिले में यूरेनियम की 6.03 मि ग्रा/ लीटर पाई गई है।
जलशक्ति मंत्रालय के मुताबिक देश के 80 फीसदी गांव की आबादी भूजल पर निर्भर है। शहरों से ज्यादा समस्या गावों में है। गांव मे पीने के पानी के मुख्य स्रोत हैंड पंप, कुएं, नदियां या तालाब है। गांव में ज्यादातर पानी सीधे ज़मीन से आता है। यहां पानी को साफ करने का कोई तरीका नहीं है। इसलिए गांव में रहने वाले जहरीले पानी पीने को मजबूर है।
सरकार ने रिहायशी इलाकों पर जवाब में यह कबूला है कि रिहायशी इलाकों के भी पीने के पानी के स्रोत काफी प्रदूषित हो चुके हैं। संसद में बताया गया है कि देश भर के 671 इलाके के पानी में फ्लोराइड है। मंत्रालय के अनुसार 671 रिहायशी इलाकों में फ्लोराइड, 814 इलाकों में आर्सेनिक, 14079 में आयरन, 9930 में खारापन, 517 नाइट्रेट और 111 इलाकों में भारी धातु पाए गए हैं।
इन धातुओं से हमारे शरीर पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इस प्रदूषित पानी पीने से भयंकर बीमारी होने की संभावना होती है। आर्सेनिक के कारण त्वचा से जुड़ी बीमारियां, और कैंसर का खतरा होता है वहीं आयरन के वजह से अल्झाइमर और पार्किनसन, सीसा के कारण नर्वस सिस्टम, कैडमियम के कारण किडनी की बीमारियां, क्रोमियम के कारण ट्यूमर और यूरेनियम के कारण कैंसर जैसी बीमारी का खतरा होता है।
मंत्रालय के अनुसार 671 रिहायशी इलाकों में फ्लोराइड, 814 इलाकों में आर्सेनिक, 14079 में आयरन, 9930 में खारापन, 517 नाइट्रेट और 111 इलाकों में भारी धातु पाए गए हैं।
दशकों से भारत का जल प्रबंधन और गैर टिकाऊ रास्ते पर है। देश का कोई भी एक क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां सीधे सार्वजनिक आपूर्ति वाले पानी का इस्तेमाल किया जा सके। आज़ादी के समय भारत की 36.1 करोड़ आबादी आज 1.40 करोड़ हो चुकी है। 2050 तक इसके 164 करोड़ हो जाने की अनुमान है। लगातार भूजल की गुणवत्ता में में कमी आने से आने वाली पीढ़ी के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती होगी।
हालाँकि सरकार जल जीवन मिशन के अंतर्गत अब तक 19 करोड़ से ज्यादा गरीब परिवारों में से लगभग 10 करोड़ परिवारों में नल का पानी पहुंचाने में सफल रही है और 2024 तक सरकार का लक्ष्य इन सभी परिवारों तक नल का पानी पहुंचाने का है। अक्टूबर 2021 में केंद्र सरकार के तरफ़ से अमृत 2.0 योजना भी शुरू की गई है जिसमें आने वाले पांच सालों में सभी घरों तक पीने का पानी पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन यहां देखना जरुरी होगा कि यह सिर्फ कागजों तक ही सीमित नहीं हो। नेशनल वाटर मिशन को समग्र रूप से वर्षा जल प्रबंधन पर ध्यान देना होगा। सिर्फ बारिश के पानी के संग्रह से काम नही चलेगा। वर्षा जल प्रबंधन के तहत बूंदों को जहरीले होने से रोकने के लिए नए तकनीक या कई उपाय ढूंढने होंगे।
1987 में जल संसाधन मंत्रालय ने पहली राष्ट्रीय जल नीति बनाई। उसके बाद के वर्षों में भी नीतियां बनीं। लेकिन इन 35 साल में इन नीतियों का देश के जल प्रबंधन पर बहुत असर नहीं दिखा। भुजल स्तर बढ़ाने के लिए प्रयास तो किए जा रहे हैं लेकिन खेती, औद्योगिकरण और शहरीकरण के कारण जहरीले होते भुजल को लेकर कोई चिंता नहीं की जा रही है। जबकि भुजल का जहरीला होना मानव जाति के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा सकता है।