मेरी आस्थाओं का तुम एहतेराम करो मैं तुम्हारे ईमान को नमन करता हूँ तुम मेरे मन मंदिर की घंटियों को सुनो मैं तुम्हारी धड़कनों में अज़ान को सुनता हूँ
दीवारें ही तो हैं, खड़ा रहने दो उन्हें जहां भी वो खड़ी हैं क्यों गिराने पे तुले हो उन्हें, अपने उसूलों की तरह बन सको तो बनो सहारा किसी गरीब को कोई तमगा नहीं हैं, जो बन रहे हो बर्बादियों की वजह
मंत्रमुग्ध होने दो मुझे भी बंसी की धुनों पे तुम भी भीगे रहो सूफियाना कलामों में हाथ जोड़ता हूँ मैं भी नमस्कार कहते हुए तुम भी तो दिल को झुकाते हो सलामों में
2 गुझिया और लड्डुओं पे तो मैं भी लट्टू होता हूँ जैसे तुम सेवइया और शेयर खुरमे में आँखें सपने खुशियों के ही देखती हैं चाहे डूबी हों काजल या फिर सुरमे में
सिर्फ प्रेम छुपा है ग्रंथों और किताबों में ये सियासत है जो सिर्फ नफरत बेचती है चुनरी का हो या हो फिर वो दुपट्टे का माँ की ममता तो बस आँचल देखती है