– रमेश चंद शर्मा*
भाईजी को सादर जय जगत। ऐसे व्यक्ति मरते नहीं – शब्द, बोल, विचार, सर्व धर्म प्रार्थना, गीत संगीत, अच्छे कर्म, साधना, मौन, श्रम कभी मरते नहीं हैं। कभी विविध कारण से धूंधले या मंद पड़ सकते है मगर जिंदा रहते है। समय के साथ वे फलते फूलते रहते है। लोगों की वाणी में, कंठो में, विचारों में, यादों में, इतिहास में, दिलों में, दिमाग में आते रहते है, गूंजते हैं, उभरते हैं, फलते फूलते, फूटते हैं झरने की तरह।
व्यक्ति नहीं समूह/संगठन – डॉ. एस. एन. सुब्बाराव अपने आप में किसी समूह, संगठन से ज्यादा प्रभावी, व्यापक रहे। उन्होंने राष्ट्रीय युवा योजना नामक संगठन बनाया। भाईजी के स्वभाव के कारण यह संगठन कम परिवार के रूप में ज्यादा विकसित हुआ। इसकी यह बड़ी विशेषता है। ना सदस्यता रजिस्टर, ना सदस्यता शुल्क, ना विशेष बंधन, शर्तें एक व्यापक सोच समझ विचार लिए परिवार की तरह सबके लिए खुले दरवाजे। सबका स्वागत, सब अपने कोई पराया नहीं।
हर परिवार अपना परिवार – जवानी में आह्वान पर अपना बंगलौर का घर छोड़कर दिल्ली आए मगर देश दुनिया में इतने घर बन गए कि आज सब की गिनती करना कठिन है।
लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया – छात्र जीवन में शामिल, कांग्रेस सेवा दल में शामिल (राष्ट्रीय मुख्य संगठक), गांधी शांति प्रतिष्ठान के आजीवन सदस्य, गांधी शताब्दी में बड़ी लाईन, छोटी लाइन में चली गांधी दर्शन रेलगाड़ी में शामिल, शिविर में शामिल, चंबल शांति कार्य में शामिल, राष्ट्रीय युवा योजना में शामिल, भारत जोडो में शामिल, सदभावना रेल में शामिल, भाईजी के संपर्क, संवाद में शामिल, विभिन्न गतिविधियों में शामिल, कार्यक्रमों में शामिल साथी जुड़ते गए और कारवां बनता गया। भाईजी जहां पहुंचे वहीं उनसे परिवार जुड़ते जाते।
सहज सरल सुलभ सादा साझा जीवन – भाईजी के पास यह सब बहुत सहजता, सरलता, स्पष्टता के साथ उनका अंग बन गया। सोते-जागते, आते-जाते, उठते-बैठते, चलते-फिरते, खाते-पीते, सोचते-विचारते, कथनी-करनी में यह साफ झलकता रहता, स्वच्छ हवा, पानी की तरह सबको सहज उपलब्ध। एक चुंबकीय क्षेत्र बनाता था जिसका आकर्षण अपनी ओर खींचता है। जिन खोजा तिन पाईंया।
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सबै भूमि गोपाल की – उनका जीवन एक नदी की तरह रहा जो सदैव सक्रिय रहती है। चाहे पहाड़ हो या धरातल, ऊंचाई हो या ढलान, गांव हो या शहर, बस्ती हो या जंगल, देश हो या विदेश, बंगलौर, दिल्ली हो या चंबल, सुनसान हो या बीहड़ वही स्वभाव, निडरता, पहनावा, सक्रियता, शांति, सौह्रार्द साझापन, सदभावना, श्रमदान, सर्व धर्म प्रार्थना, गीत, खेल भारत से लेकर अमेरिका तक।
सबके भाईजी – हर आयु वर्ग, स्थान से भाईजी संपर्क, संवाद साधने की विशेष क्षमता रखते थे, चाहे गांव की सभा हो या संयुक्त राष्ट्र संघ। एक तरफ बच्चों के लिए जेब से गुब्बारा निकलता, किशोर, युवा जवान, अधेड़ आयु के लिए गीत, खेल, श्रम, संदेश। जिसके लिए जो सार्थक, उपयोगी उसकी समझ, क्षमता के अनुसार उसके सामने रखना।
संवाद संपर्क की व्यापकता – संवाद, संपर्क में इतनी व्यापकता की आज भी बड़ी संख्या में लोगों के पास भाईजी का लिखा हुआ निवास, शिविर, सभा, सम्मेलन, प्लेटफार्म, रेल, प्रवास से लिखा हुआ पत्र, अन्तर्देशीय पत्र, पोस्ट कार्ड आसानी से मिल जाएगा। आजकल फोन करके हालचाल पूछते, बात करते।
वकील ही वकील – राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से लेकर भाईजी तक वकीलों की एक बड़ी श्रृंखला, जमात है जिसने आजादी की लड़ाई से लेकर राष्ट्र रचना, निर्माण के लिए अपना सर्वस्व समर्पण, न्यौछावर कर दिया। देश के लिए जीए और देश के लिए मरे। सबके नाम लिखने लगूं तो कितने ही पन्ने, पेज़ भर जाएंगे। इनमें से अधिकांश वे है जिन्होंने न्यायालय की अदालत के बजाय जन जन में न्याय, समता, एकता, शांति, सदभावना, सौह्रार्द, एकजुटता, रचना, निर्माण, जागरूकता करने के लिए अपने को खपाया। बदला नहीं बदलाव चाहिए के लिए काम किया। शांति, अहिंसा, करुणा, प्रेम से बदलाव लाए।
नौजवान आओ रे – नए समाज की रचना में तरुणाई का योगदान। किसी भी समाज, देश में बदलाव की असली ताकत युवा पीढ़ी होती है। भाईजी ने युवाओं को दिशा देने, उनकी दशा सुधारने के लिए सतत प्रयास किए। युवाओं को रचना, निर्माण से जोड़ा।
भाईजी की कामना सदभावना – देश में कहीं भी हिंसा, मारपीट, दंगा फसाद हुआ। भाईजी के आह्वान पर, उनके नेतृत्व में सैकड़ों युवा, साथी शांति, सदभावना के लिए पहुंच जाते। कश्मीर से कन्याकुमारी, अरुणाचल से द्वारका अर्थात पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण। इसमें अण्डमान निकोबार, लक्षद्वीप जैसे स्थान भी शामिल है।
ऐसे व्यक्ति का पंचतत्व का भौतिक शरीर जाता है। उसका विचार, चिंतन, मनन, संस्कार, काम अनेक लोगों में रम, बस जाता है जो आगे चलता रहता है। अब भी भाईजी ऐसे जिंदा है, जिंदा रहेंगे। आओ मिलकर आगे कदम उठाए, बढ़े, बिना रुके, बिना झूके भाई सुब्बाराव अपने साथ है। उनका नेतृत्व अब और ज्यादा व्यापक हो गया है। अब भाईजी से मिलने कहीं नहीं जाना पड़ेगा, जहां है वहीं भाईजी का नेतृत्व उपलब्ध है। समझें सोचें अपनाएं और पहले से अधिक, ज्यादा सक्रियता, सावधानी, सतर्कता, समझदारी, संकल्प, समर्पण, स्पष्टता, उत्साह, हिम्मत से पतवार संभालें।
त्याग और प्रेम के पथ पर चलकर मूल ना कोई हारा, हिम्मत से पतवार संभालो फिर क्या दूर किनारा।
नौजवान आओ रे, नौजवान गाओ रे,
लो कदम मिलाओ रे, लो कदम बढ़ाओ रे।
जय जगत पुकारे जा, सर अमन पर वारे जा,
सबके हित के वास्ते, अपना सुख बिसारे जा।
भाई जी की स्मृति को हार्दिक सादर जय जगत।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं ।