दुनिया की नदियां – 9
– डॉ. राजेंद्र सिंह
न्यूज़ीलैण्ड प्रशांत महासागर में आस्ट्रेलिया के पास स्थित देश है। यह कई द्वीपों से बना एक खूबसूरत देश है। इसका कुल क्षेत्रफल 268,021 वर्ग किलोमीटर है। इस देश की यह वांगानुई नदी भी दुनिया की नदियों में सबसे ज्यादा स्वस्थ्य है। यह सदानीरा बनकर बहती रहे।
न्यूज़ीलैण्ड उच्चतम न्यायालय में पिछले 170 वर्षों से अपनी नदी वांगानुई को इन्सानी दर्जा दिलाने हेतु माओरी आदिवासी कानूनी लड़ाई लड़े और जीत गए। दुनिया का यह एक मात्र देश है, जहाँ नदी अधिकार के लिए इतनी लम्बी लड़ाई चली। 2017 में यहाँ की नदी को इन्सानी दर्जा मिल गया है। यहाँ हम अपनी तथा कथित माँ गंगा जी को दर्जा नहीं दिला सके। तरुण भारत संघ के उपाध्यक्ष स्व. जी.डी. जी ने गंगा माँ ‘‘माई है, कमाई नहीं’’ कहकर इसे बचाने हेतु 111 दिन आमरण अनशन करके अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। सरकार ने उन्हें नहीं सुना। यह नदी जीत की पूरी दुनिया में पहली घटना है।
मैं माओेरी आदिवासियों के हजारों लोगों से मिला। इनका नाच, गान, गीत सभी कुछ सुना। इनके घर में रहा भोजन भी इनका खाया। इनकी जीवन पद्धति प्राकृतिक है। अपनी वृत्ति और प्रकृति को बचाने के लिए सतत् संघर्षशील प्रकृति को अधिकार दिलाने के लिए लड़ने वाला माओरी आज पूरी दुनिया में अपनी नदी का इंसानी दर्जा दिलाने में सफल होने वाली जनजाति है। नदी का केवल सम्मान ही नहीं, सद्व्यवहार भी करते है। नदी में अपना मलमूत्र और गंदगी नहीं जाने देते। सरकार ने इनके व्यवहार और दर्शन का सम्मान नहीं किया तो उसके विरुद्ध सत्याग्रह किया। यह सत्याग्रह क्रियान्वित कराने तक चलता रहा।
भारतीयों में भी स्वामी सानंद , स्वामी निगमानंद, साध्वी पद्मावती और ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद जैसे कुछ नाम लिए जा सकते है, जो गंगा जी को इंसानी देवी माँ की तरह मानते हैं। स्वामी शिवानंद माँ गंगा को अपनी और राष्ट्र की मानते है, वे सत्याग्रहरत् हैं।
वांगानुई नदी न्यूज़ीलैण्ड के उत्तरी द्वीप में एक प्रमुख नदी है। यह देश की तीसरी सबसे लंबी नदी है, और इस क्षेत्र के माओरी लोगों के लिए इसके महत्त्व के कारण विशेष दर्जा प्राप्त है। मार्च 2017 में यह दुनिया का दूसरा (ते उरेवेरा के बाद) प्राकृतिक संसाधन बन गया, जिसे कानूनी व्यक्ति के अधिकारों, कर्तव्यों और देनदारियों के साथ अपनी कानूनी पहचान दी गई। वांगानुई संधि समझौते ने न्यूजीलैंड के इतिहास में सबसे लंबे समय तक चलने वाले मुकदमे का अंत कर दिया।
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290 किलोमीटर (180 मील) की लंबाई के साथ, वांगानुई देश की तीसरी सबसे लंबी नदी है। नदी के ऊपरी भाग के दोनों ओर की अधिकांश भूमि वांगानुई राष्ट्रीय उद्यान का हिस्सा है, हालांकि नदी स्वयं पार्क का हिस्सा नहीं है।
यह नदी रोटोएरा झील के करीब, केंद्रीय पठार के तीन सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक, माउंट टोंगारिरो के उत्तरी ढलान पर उगती है। यह तौमारुनुई में दक्षिण-पश्चिम की ओर मुड़ने से पहले उत्तर-पश्चिम की ओर बहती है। यहाँ से यह दक्षिण-पूर्व की ओर मुड़ने से पहले किंग कंट्री के उबड़-खाबड़, झाड़ीदार पहाड़ी देश से होकर गुजरती है और वांगानुई के तट पर पहुंचने से पहले पिपिरीकी और यरुशलम की छोटी बस्तियों से होकर बहती है। यह देश की सबसे लंबी नौगम्य नदियों में से एक है।
1843 के भूकंप में वांगानुई नदी घाटी बदल गई। 1970 के दशक में माउंट रुआपेहु से एक मामूली विस्फोट ने रुआपेहू क्रेटर झील (तांगीवाई आपदा का एक ही मूल कारण) से कुछ सामग्री को गिरा दिया। यह जहरीला पानी वांगानुई नदी में प्रवेश कर गया और इसका प्रभाव नीचे की ओर की अधिकांश मछलियों को मारने का था। विषाक्तता के बाद, 8.2 किलोग्राम (18 पाउंड) जितना बड़ा और 2.3 किलोग्राम (5.1 पाउंड) जितना बड़ा ट्राउट नदी के किनारे मृत हो गया। सहायक नदी वाकापापा नदी में मछली का नुकसान हुआ था।
मेरी न्यूज़ीलैण्ड की एक साथी लिन मर्फी है जो एक प्राकृतिक और आध्यात्मिक महिला होकर मानवता और प्राकृतिक-प्रेम-सम्मान करने में अपनी त्वरा और तीव्रता से लगी है। वह कहती है कि बहता वांगानुई नदी का जल अपना पथ स्वयं देखता है। हरी-भरी धरती जंगली जीवों से भरी धरती हो। मैं, नया जीव-जगत बनता देखना चाहती हूँ। अन्तर संबंध जीव-जगत् के साथ है। अन्तर संबंध ऐसा हो, जिसमें जाति, धर्म बचता है। हमारी नदी का प्रवाह ही हमारे जीवन को प्रवाहमान बनाता है। नदी हमारी सभी कुछ है। वह शारीरिक और आत्मिक पोषण करती है।
विशेषज्ञ पेयर एक्सन, ने कहा दुनिया को दिखाने हेतु न्यूज़ीलैण्ड की न्यायपालिका और सरकार ने बहुत अच्छे काम किये है। कम से कम दो नदियों को इंसानी दर्जा मिल गया है। अन्य सरकारें तो केवल भौतिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी, अभियांत्रिकी के सामने आध्यात्मिक प्राकृतिक विज्ञान को कुछ मानते ही नहीं है। इसीलिए दुनिया की नदी मैला ढ़ोने वाली माँ बनकर बीमार होकर मर जाती है। हमारी न्यायपालिका ने वांगानुई नदी को बचाने हेतु कानून व्यवस्था दे दी है।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। यहां प्रकाशित आलेख उनके निजी विचार हैं।