विवेचना
– डा.रक्षपाल सिंह
उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा की कक्षा एक से ही संस्कृत की पढ़ाई को अनिवार्य किये जाने का सरकार का फैसला वर्तमान में बदहाल प्राथमिक शिक्षा की बर्बादी में आखिरी कील है।
कांग्रेस सरकार के शासन में प्राथमिक कक्षा स्तर से मातृ भाषा हिन्दी व गणित के साथ ही अंग्रेजी की पढ़ाई शुरू करा देने से प्रदेश के 15% अंग्रेजी मीडियम स्कूलों को छोड़कर शेष 85 % परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता में भारी गिरावट आ चुकी है और अब भाजपा सरकार के कक्षा एक से ही संस्कृत विषय को पढ़ाये जाने के फैसले से गिरावट की रही सही कसर भविष्य के कुछ वर्षों में और पूरी हो जाएगी। प्रदेश की परिषदीय शिक्षा व्यवस्था को दृष्टिगत रखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस सरकार ने परिषदीय शिक्षा का किया नाश, और अब भाजपा कर रही है उसका सत्यानाश।
21वीं सदी की सभी सरकारों ने कभी ये हकीकत जानने की कोशिश ही नहीं की कि प्रदेश में सीबीएसई से सम्बद्ध लगभग 15% अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों में अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूकता एवं उनकी मजबूत आर्थिक सामाजिक शैक्षिक स्थितियाँ एवं रहन- सहन, उनका पहनावा, भोजन- स्वास्थ्य , ट्यूटर आदि की बेहतरीन सुविधाएं प्रदेश के 85% परिषदीय स्कूलों के बच्चों को प्राप्त नहीं हैं, जिनकी वज़ह से ही प्राथमिक शिक्षा स्तर के पाठ्यक्रमों का गुणवत्तापूर्ण ज्ञान हासिल करने में उन्हें बहुत सारी दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं।
इनका आभास परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को तो है ही, लेकिन अफसोस है कि स्कूलों के पाठ्यक्रमों को बनाने वाले शिक्षाविद/ विद्वान तो ये समझ लेते हैं कि जो सारी सुविधाएं अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को उनके अभिभावकों से प्राप्त होती हैं , वे सभी परिषदीय स्कूलों के बच्चों को भी प्राप्त हो रही होंगी और इसी सोच के तहत ही वे पाठ्यक्रमों का निर्धारण कर देते हैं जिसका खामियाजा प्रदेश के परिषदीय स्कूलों के विद्यार्थी भुगत रहे हैं।
जहाँ तक अंग्रेजी, संस्कृत एवं अन्य विषयों के समावेश का प्रश्न है तो उनका समावेश प्राथमिक शिक्षा स्तर पर हिन्दी व गणित का सम्यक ज्ञान हो जाने पर ही उच्च प्राथमिक स्तर की कक्षा 6 से शुरू होना चाहिये और ऐसा होने के उपरांत जो भी विषय पाठ्यक्रम में शामिल होंगे उनको पढ़ने लिखने और समझने में बच्चों को कोई दिक्कत नहीं आयेगी क्योंकि मातृ भाषा हिन्दी एवं गणित विषयों का सम्यक ज्ञान अन्य प्रत्येक विषय की समझ को बहुत आसान बना देता है।
*लेखक प्रख्यात शिक्षाविद और धर्म समाज कालेज अलीगढ़ के पूर्व विभागाध्यक्ष हैं।