संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
बिना हथियारों के सुरक्षित व संरक्षित राष्ट्र का नाम कोस्टारिका
कोस्टारिका मध्य अमेरिका में स्थित कैरिबियाई क्षेत्र में स्थित है। 20 शताब्दी के मध्य काल में एक 44 दिन के भयंकर गृह युद्ध के बाद सन् 1949 में इस देश ने अपनी सेना समाप्त कर दी और यह विश्व के उन बहुत कम देशों में से एक हो गया है, जिसकी कोई सेना नहीं है। इसका कुल क्षेत्रफल 51100 वर्ग किलोमीटर है। इस देश की जलवायु उष्णकटिबंधीय देश है, जो दो महासागरों के बीच और एक जटिल भूगोल के साथ स्थित है।
यह छोटा देश होने के बावजूद भी जलवायु कार्रवाई के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। देश में बिजली उत्पादन का 95 फीसदी से ज्यादा हिस्सा कार्बन उत्सर्जन से मुक्त है और 52 प्रतिशत इलाका वनों से ढका हुआ है।
कोस्टारिका एक प्राकृतिक समृद्ध राष्ट्र है, जो अहिंसामय जीवन पद्धति में विश्वास करके आगे बढ़ रहा है। यह समृद्ध राष्ट्र दुनिया के विस्थापन और पुनर्वास में योगदान नहीं दे रहा है। फिर भी इसको जानना जरूरी है क्योंकि यह राष्ट्र दुनिया में अन्य राष्ट्रों से अलग है। यहाँ के लोगों ने शांति से जीना सीख लिया है। मेरे मित्र अलोनोर ने भारत को सूफी परम्परा को उसी क्रम में जानने की मुझसे कोशिश की। अलोनोर तो भारत की सूफी परम्परा को सिद्धांत व व्यवहार में जी रहा है और इस देश में शांति और अहिंसा के वातावरण को बढ़ावा दे रहा है।
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72 साल की यात्रा में यह राष्ट्र अपनी समृद्धि प्राप्त कर रहा है। यहाँ की सेना पर जो खर्चा होता था, अब वह स्वास्थ-शिक्षा में काम आ रहा है। इसलिए यहाँ का खर्च घटा है और आय बढ़ी है। इस देश से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। दुनिया के बड़े-छोटे सभी प्रकार के देश इससे सीखकर आगे बढ़े है। यहाँ के युवाओं में अस्त्रो की होड़ नहीं है, शास्त्रों की होड़ है। अस्त्र असुरक्षा पैदा करते है और शास्त्र सुरक्षा पैदा करते है। इसलिए बिना हथियारों के सुरक्षित व संरक्षित राष्ट्र का नाम कोस्टारिका है। मेरी कोस्टारिका यात्रा को सफल बनाने का काम अलोनोर ने किया।
कोस्टारिका के मेरे मित्र अलोनोर लोड़ा सूफी परम्परा का युवा है। अब यह ग्लोबल साऊथ में एक आंदोलन चालू किया है, जो समुदायों को जोड़कर काम कर रहा है। यह कहता है कि 70 प्रतिशत ग्लोबल साऊथ अराजकता बढ़ रही है।
अलोनोर कहता है कि, इस समय दुनिया में खास कर साउथ में तीन बडे़ संकट बन खड़े हुए हैं। पहला, कोई किसी को कुछ नहीं मानता, दूसरा अन्धविश्वास, तीसरा नशा है। इन्होंने हमें भटका दिया है। पुनः अपने मूल रास्ते पर आने के लिए पहले हमें इसे स्वीकार करना होगा। स्वीकार करके अनुशासित बनना अपने लिए जरूरी है। करके सीखना और उसी में विश्वास करके आगे सभी को साथ लेना है। नशा और उन्माद मुक्त दुनिया बनाकर खुद करके खाना है। यही हमारी जीवन पद्धति है, जो हमारे लिए आगे बढ़ाने के रास्ते खोलेगी।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।