राज्यों से : उत्तर प्रदेश
– डा .रक्षपाल सिंह*
उत्तर प्रदेश नये उच्च शिक्षण संस्थान खोला जाना आश्चर्यजनक है
उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री व शिक्षामंत्री प्रोफेसर दिनेश शर्मा द्वारा 10 नये निजी विश्वविद्यालयों तथा 51 नये महाविद्यालयों की स्थापना किये जाने की घोषणा पर आश्चर्य होता है। उप मुख्यमन्त्री ने यदि सूबे के मौज़ूदा 45 विश्वविद्यालयों, 169 राजकीय कालेजों, 331 ऐडेड कालेजों एवं 6531 निजी कालेजों की जमीनी हकीकत की पूरी जानकारी की होती और राज्य के खज़ाने से उक्त शिक्षण संस्थानों पर खर्च होने वाली अरबों रुपयों की धनराशि के सदुपयोग होने के बारे में सोचा होता तो नये विश्वविद्यालय तथा सरकारी कालेजों को खुलवाने की अनौचित्यपूर्ण घोषणा कभी न करते।
उत्तर प्रदेश में इस समय भी बहुत से उच्च शिक्षण संस्थान हैं, लेकिन अफसोस का विषय यह है कि उनमें से 75%से अधिक में मानकों के अनुरूप शिक्षकों की व्यवस्थायें ही नहीं हैं, शिक्षण संस्थान खुलते नहीं हैं अर्थात थ्यौरी व प्रेक्टिकल कक्षाएं होती ही नहीं हैं। ऐसे संस्थानों में तथाकथित विद्यार्थियों के प्रवेश व उनकी परीक्षाएं ही होती हैं और वे येन केन प्रकारेण अच्छे अंकों की अंकतालिकायें प्राप्त कर महामहिम राज्यपाल से डिग्री प्राप्त करने का कारनामा बखूबी कर लेते हैं।
विद्यार्थियों, शिक्षा व्यवस्था एवं सूबे के खज़ाने के व्यापक हित में राज्य सरकार के लिए यह उपयुक्त होता कि प्रदेश में नये उच्च शिक्षण संस्थान खोलने के बजाय मौज़ूदा शिक्षण संस्थानों में मानकों के अनुरूप योग्यताधारी शिक्षकों व कर्मचारियों की नियुक्तियां कराने और उन्हें पूरा वेतन दिये जाने, कालेजों में पठन पाठन का वातावरण सृजित कराने तथा नकलविहीन व साफ सुथरी परीक्षाएं कराने के लिये भगीरथ प्रयास कर विद्यार्थियों को गुणवत्तापरक शिक्षा दिलवाने में अपनी अहम भूमिका का निर्वहन करे । अन्यथा मौजूदा स्थिति में सरकार की सारी कवायद ढाक के तीन पात ही सिद्ध होगी ।
गौरतलब है कि आज से 50 वर्ष पूर्व प्रदेश में 8 राज्य विश्वविद्यालय और लगभग 500 महाविद्यालय थे जो आज बढ़कर क्रमशः 45 एवं 7031 हो चुके हैं ,परंतु कई गुणे उच्च शिक्षण संस्थान खुल जाने के बावजूद भी शिक्षा की गुणवत्ता निरन्तर गिरते जाना शिक्षामंत्री के लिये न हो, लेकिन शिक्षाविदों व बुद्धिजीवियों के लिये अत्यधिक चिन्ता का विषय है।
*(लेखक प्रख्यात शिक्षाविद, धर्म समाज कालेज के पूर्व विभागाध्यक्ष हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं। )