राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सरदार पटेल को श्रद्धांजलि देते हुए
सरदार पटेल जयंती पर विशेष
– प्रशांत सिन्हा
भारत के प्रथम उप-प्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्म दिवस 31 अक्टूबर को ” राष्ट्रीय एकता दिवस ” के रूप में मनाया जा रहा है। वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने इसकी घोषणा की थी। इसी दिन राष्ट्रीय स्तर पर ” रन फॉर यूनिटी ” का आयोजन किया जाता है। विश्व की सबसे ऊंची सरदार पटेल की प्रतिमा ” स्टैचू ऑफ यूनिटी के” रूप में गुजरात के केवाड़िया में स्थापित किया गया।
31 अक्टूबर 1875 को जन्मे सरदार पटेल को नए भारत का शिल्पकार कहा जाता है। आज़ादी के बाद टुकड़ों में बटी 565 रियासतों का विलय करके सरदार पटेल ने अखंड भारत का निर्माण किया था।
आज़ाद भारत के शासन तंत्र को वैधता प्रदान करने में गांधी, नेहरू, और पटेल की त्रिमूर्ति की बहुत भूमिका रही थी। लेकिन शासन तंत्र भारतीय इतिहास में गांधी और नेहरू के योगदान को तो स्वीकार करता है लेकिन पटेल की चर्चा कम की गई। पटेल यथार्थवादी थे तभी वे सभी काम बेहतर ढंग से कर सके।
वल्लभ भाई पटेल को ” सरदार ” उपनाम गुजरात के बारडोली की महिलाओं ने दिया था। पटेल ने गुजरात के किसानों को साथ लेकर ब्रिटिश सरकार द्वारा 22 प्रतिशत का लगान लगाने के विरोध में आंदोलन कर सरकार को झुकाया था जिससे लगान दर घटा कर 6.03 प्रतिशत कर दिया गया था।
भारतीय संघ में रियासतों का विलय करवाने में पटेल ने कभी कभी सख्ती से काम लिया जिसके उदाहरण हैदराबाद और जूनागढ़ का भारत संघ में विलय है। पाकिस्तान की धमकी एवं तब के भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष जेनरल रॉबर्ट बुचर के नहीं राजी होने के बावजूद उन्होंने सख्त फैसला लेते हुए सैन्य हस्तक्षेप कर हैदराबाद को भारत में विलय करा दिया था। जूनागढ़ के नवाब तो उनके डर से भागकर पाकिस्तान चला गया।
देसी रियासतों को स्वतंत्र भारत की विलय पहली उपलब्धि थी और इसका पूरा योगदान सरदार पटेल का था। इसी नीतिगत दृढ़ता के लिए गांधी जी ने उन्हें ” लौह पुरुष ” की उपाधि दी थी।
एक रूसी प्रधान मंत्री ने कहा था कि राजाओं को समाप्त किए बिना राजवाड़ों को समाप्त कर देना पटेल ही जानते है। उनके निर्णय लेने की क्षमता पर पूर्व उप सेनाध्यक्ष, नेपाल में रहे राजदूत, जम्मु- काश्मीर के राज्यपाल जेनरल एस के सिन्हा के अनुसार एक बार हैदराबाद के विषय पर विचार विमर्श के लिए पटेल ने जेनरल करियप्पा को बुलाया। करियप्पा के पहुंचने पर उन्होंने उनसे पूछा कि क्या हम हैदराबाद पर सैनिक करवाई के लिए तैयार है ? करियप्पा के हां कहते ही मीटिंग समाप्त हो गई और करियप्पा पांच मिनट बाद ही कमरे से बाहर आ गए।
15 दिसंबर 1950 में सरदार पटेल की एक लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उनकी मृत्यु पर कहा था ” सरदार पटेल के शरीर को अग्नि जला तो रही है लेकिन उनकी प्रसिद्धि को दुनिया की कोई अग्नि नहीं जला सकती।
राजमोहन गांधी ने अपनी किताब पटेल ने लिखा है ” 1947 में अगर पटेल 10 या 20 साल उम्र में छोटे हुए होते तो शायद बहुत बेहतर प्रधान मंत्री साबित हुए होते।” गौरव मतलब है कि देश आज़ाद होने के बाद प्रधान मंत्री के लिए नेहरू के अलावा पटेल का भी नाम लिया गया था लेकिन गांधी जी के कहने पर पटेल पीछे हट गए थे।