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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस पर विशेष
– भरत पंड्या*
बात १९८१-८२ की है जब नरेंद्रभाई मोदी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कर्णावती (अहमदाबाद) जिला प्रचारक हुआ करते थे। अपने इस कार्यभार में वे अक्सर धंधुका आते और मेरे घर पर रात्रि निवास करते। उन्होंने एक बार हनुमानजी पर एक लंबी कविता लिखी और मुझे सुवाच्य अक्षर में लिखने के लिए दी । तब से ही मेरे मन में उनकी कवि के रूप में छवि बनी थी।
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३६-३७ वर्षों के संपर्क-सबंध में उनके साथ अनेक यादें जुडी हुई हैं। प्रेम की वर्षा के साथ निरंतर मार्गदर्शन के बीच कभी कभी मैं उनके रोष का भी हक़दार था। दिनांक १-१–१९८८ को वे मुझे भारतीय जनता पार्टी में काम करने के लिए धंधुका से कर्णावती ले गए और दस वर्ष के बाद वे १९९८ में विधान सभी चुनाव में तत्कालीन मुड़खयमंत्री श्री दिलीप परीख के विरुद्ध चुनाव लड़ने के लिए धंधुका आये और चुनाव सभा में आँख में अश्रु के साथ भावपूर्ण हो कर बोले, “दस वर्ष पूर्व मैं जिस को ले गया था ऐसे ‘भरत’ को फिर से आप के बीच लाया हूँ। उनको आप जिताकर गांधीनगर भेजना।” उस समय मैं समग्र देश में पदस्थ मुख्यमंत्री को हराकर सब से युवा विधायक बना था।
नरेंद्र भाई मोदी के जीवन में पांच ‘व’ का महत्त्व है। जैसे उनकी जन्मभूमि गुजरात का वडनगर है। वाराणसी उनकी कर्मभूमि है ।विकास के माध्यम से विजय प्राप्त कर के वे वडा प्रधान (यानी प्रधानमंत्री ) बने हैं।
गुजरात संगठन में अपने कार्यकाल के दौरान वर्ष १९८७-८८ में वंचितों पर होते अन्याय के विरुद्ध ‘न्याययात्रा’ से लेकर ‘कश्मीर हमारा है’ सूत्र के साथ देशभक्ति जगाती कन्याकुमारी से कश्मीर तक की ‘एकता यात्रा’ के संयोजक के रूप में नरेंद्र भाई ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। गुजरात में कन्या केलवणी (शिक्षण) यात्रा, कृषि यात्रा, वंचितों की विकास यात्रा, स्वामी विवेकानंद विकास यात्रा, वीरांजलि यात्रा, गुजरात गौरव यात्रा, विकास गौरव यात्रा समेत अनेक यात्रा के वे जनक – आयोजक – संयोजक रहे। देश के इतिहास में संभवत: सब से अधिक प्रवास करनेवाले एक राजकीय महापुरुष ‘महायात्रिक’ बनने का सौभाग्य नरेंद्र भाई को मिला है। जन जागृति द्वारा जनशक्ति को देशभक्ति बनाने का सर्वाधिक सबल माध्यम वे ‘यात्रा’ को मानते हैं। जनमत को समझने के लिए, उनके पश्नों को जान्ने के लिए, निरंतर लोगों के साथ संपर्क – संवाद – समन्वय करना चाहिए और इस लिए विश्व इतिहास में जनता के साथ सर्वाधिक संपर्क – संवाद करने का श्रेय नरेंद्र भाई को मिलता है।
मैंने टीवी और इंटरनेट इ पर अनेक देश के प्रमुखों को कोई टापु पर, बोट में, जंगल में, रिसोर्ट में वेकेशन का आनदं लेते हुए देखा है, पढ़ा है, किन्तु जब से नरेंद्र भाई के संपर्क में आया तब से सर्वाधिक ईश्वरीय आश्चर्य यह है कि उन्होंने कभी भी एक दिन की छुट्टी या वेकेशन नहीं लिया। गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उनको स्वाइन फ्लू हुआ था। तब भी सीएम हाउस में हॉस्पिटल जैसी व्यवस्था खड़ी कर के उन्होंने कामकाज चालु रखा। दाढ़ का ऑपरेशन हुआ तब भी वे देर रात तक बैठक कर के गुजरात की चिंता करते रहे जिस का मैं साक्षी हूँ। वे अक्सर कहते हैं , “काम ना करने की थकान लगती है, काम करने का तो संतोष मिलता है।
नरेंद्र भाई की स्मरणशक्ति अद्भुत है। वे यदि किसी को पहली बार मिलेंगे तो भी तब से उनका नाम उनको याद रह जाता है। वे गाँव या शहर, जहां भी जाते हैं, अनेक लोगों को नाम से बुलाते हैं और जन सभा में वे याद कर कर के वर्षों पूर्व के अपने स्मरणों को अवश्य कहते हैं। इस तरह से वे कार्यकर्ताओं और सामान्य व्यक्ति के ह्रदय को छू लेते हैं और आत्मीय सम्बन्ध बना लेते हैं। पूर्व आयोजन और पूर्ण आयोजन — इन दोनों परिभाषा को उन्होंने मूर्तिमंत की है। किसी भी संगठन कार्य अथवा कार्यक्रम की पूर्व तैयारी के लिए वे परिश्रम करते हैं और कार्यकर्ताओं से भी परिश्रम करवाते हैं। संगठन के पत्रकों और पुस्तकें लिखने के लिए अनेक जिले मि उस समय के बड़े बड़े पदाधिकारियों को भी रात के दो-तीन बजे तक उन्होंने बिठा कर कार्य संपन्न करवा कर के ही दम लिया था। उनकी कार्यशैली ऐसी है कि प्रात: जल्दी वे काम के सन्दर्भ में फ़ोन करते हैं और देर रात को ‘काम का क्या हुआ?’ ऐसा पूछ कर फ़ॉलोअप भी करते हैं। इसी कारण पार्टी ने नरेंद्र भाई को जो भी काम दिया हो उस में जुड़े हरेक लोगों को सतर्क, सक्रीय, रहना ही पड़ता है इस तरह के वे कर्मठ हैं।
उनको पढ़ना बहुत प्रिय है। विवेकानंदजी के विषय में प्रवचन देना हो तो उनके विषय में अनेक पुस्तक वे पढ़ते थे। मुझे स्मरण पड़ता है कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक ‘एकता यात्रा’ में कश्मीर समेत अनेक विषय पर उन्होंने काम से काम १५० से अधिक पुस्तकें पढ़ी होंगी। कर्णावती स्थित शाला संस्कार धाम में उनकी लाइब्रेरी में तमाम क्षेत्र, तमाम विषय की पुस्तकें उन्होंने संग्रह की है।
नरेंद्रभाई ने दुनिया के साथ ताल-मेल बैठने के लिए आधुनिकता का आग्रह हमेशा रखा उसका एक प्रसंग मुझे याद आता है। वर्ष २०१३ में गुजरात भाजपा की कारोबारी में समापन सत्र में अपने प्रवचन के दौरान उन्होंने विधायकों, सांसदों और कारोबारी टीम के अन्य सदस्यों को प्रश्न पूछा, “आप में से किस के पास अपना ईमेल आई डी है ?” बहुत ज्यादा लोगों ने अपने हाथ खड़े नहीं किये तब उन्होंने कहा, “मैं समस्त प्रवचन बाद में करूंगा, पहले आप सभी बाहर १० कंप्यूटर ऑपरेटर बैठे हैं उनके पास जा कर अपना ईमेल आई डी बनवाएं। उस के बाद ही मैं प्रवचन करूंगा। ” इस प्रकार वे प्रदेश की टीम को अधिनिक रखने के लिए निरंतर आग्रह करते।
वर्ष २०१२ में गुजरात विधानसभा चुनाव में उन्होंने थ्री डी होलोग्राफिक्स के माध्यम से एक स्थान से अनेक स्थानों पर चुनावी सभाएं सम्बोधित की थीं। विश्व के नेताओं ने जो तकनीक का उपयोग नहीं किया उस तकनीक का उपयोग नरेन्द्रभाई ने लोकसभा २०१४ के चुनाव में भाजपा कार्यालय गांधीनगर से एक स्थान से ५०-१०० सभाओं को थ्री डी लाइव सभा कर के सम्बोधित किया था।
गोधरा काण्ड में विरोधियों ने निरंतर दस साल तक झूठे आरोप मढ़े। “मौत का सौदागर ‘ से लेकर ‘हिटलर’ तक की गालियां उनको दीं। पर नरेंद्र भाई ने धैर्य का परिचय देते हुए दस वर्षों तक विरोधियों के आक्रमण के विरुद्ध एक शब्द तक नहीं बोले। सम्पूर्ण मौन रहे। दस वर्ष के बाद उन्होंने इसका जवाब ‘सद्भावना मिशन’ द्वारा ३३ जिलों में रमाम जाति – समाज और वर्ग को जोड़ कर एक एक दिन का उपवास किया। सद्भावना मिशन के संयोजक के रूप में मुझे हरेक जिले जाना होता था। तब मैंने हरेक जिले में आयोजित एक दिन के उपवास समय बालक से लेकर वृद्ध, युवा, महिला, दिव्यांग, सौ वर्ष से उपरान्त के आयु के वृद्धों को नरेन्द्रभाई से हाथ मिलाते, गले लगाते, भावपूर्ण दृश्य देखे।
*लेखक गुजरात भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।
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