किन्नौर में भूस्खलन
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राज्यों से: हिमाचल प्रदेश
-लता
शिमला: हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में बुधवार को भूस्खलन की दो अलग घटनाएं हुईं। पहली घटना में काजा-ताबो मार्ग पर मालिंग नाला में भारी चट्टान गिरने से राष्ट्रीय राजमार्ग -5 पूरी तरह से बंद हो गया और यातायात पूरी तरह से बंद हो गया। राजमार्ग के दोनों ओर गाड़ियों की लंबी लाइनें लग गई। दूसरी घटना में बारिश के बाद आई बाढ़ के कारण सुबह किन्नाैर के अक्पा रोड पर एक पुल बह गया। इसी के साथ ही स्कीबा गांव को जोड़ने वाली सड़क का एक हिस्सा भी बुधवार को भारी बारिश के कारण क्षतिग्रस्त हो गया। अक्पा रोड के पूल के बह जाने से आने जाने वालों के लिए हिमाचल पुलिस ने रास्ते बंद कर दिए। घटना की सूचना मिलते ही एडीएम पूह अश्वनी कुमार और विधायक जगत सिंह नेगी ने मौके पर पहुंचकर नुकसान का जायजा लिया और बाढ़ प्रभावित लोगों से मिले। रिस्पा पंचायत प्रधान विनोद कुमारी नेगी, उपप्रधान विजय कुमार नेगी ने सरकार और जिला प्रशासन से जल्द पंचायत को सड़क सुविधा से जोड़ने तथा सिंचाई, पेयजल लाइनों और स्कीबा-आकपा सतलुज नदी पर पुल का जल्द निर्माण करने की मांग की । उन्होंने कहा कि इस मार्ग से सेना की रसद भी सीमावर्ती इलाकों की चेकपोस्ट तक भेजी जाती है। पूह अश्वनी कुमार ने कहा कि बाढ़ से करीब दो करोड़ के नुकसान का अनुमान है।
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बुधवार को ही सतलुज नदी में आई बाढ़ से शिमला के 1500 मेगा वाट क्षमता वाले पावर स्टेशन को भी बंद करना पड़ा था ।
गौर तलब है कि हिमाचल में बारिश हर साल भरी तबाही मचाती है। गत वर्ष हिमाचल में मूसलधार बारिश के बीच छोटी-बड़ी 184 सड़कें बंद हो गई थी। प्रदेश के कई इलाके जलमग्न हो गए थे जबकि चार दर्जन से ज्यादा सड़कें बंद होने से लोगों की दिक्कतें बढ़ गई थी।पठानकोट-मंडी नेशनल हाईवे पर त्रिलोकपुर के पास मलबा गिर गया था जिसकी वजह से यातायात को दोपहर बाद बहाल किया गया था। देहरादून-पांवटा एनएच-07 भी पेड़ गिरने से कुछ देर के लिए बाधित रहा था। जांघी पंचायत में बारिश के बाद नाला एक फिर उफान पर आ गया था। इससे गांव के कई घरों में मलबा घुस गया था। इसके बाद कांगड़ा जिले में हुए भूस्खलन में आठ महीने के बच्ची की मौत हो गई थी। जबकि पांच अन्य घायल हो गए थे। सोलन जिले के कुमारहट्टी में हुए दर्दनाक हादसे में 13 जवानों समेत 14 लोगों की मौत हो गई थी। भारी बारिश के कारण वहां एक चार मंजिला इमारत ढह गई थी और पास में ढाबे के पास खाना खा रहे जवान इसकी चपेट में आ गए थे। उस वक्त मौके पर 42 लोग मौजूद थे, जिनमें 30 सैनिक भी थे।
पिछले साल ही शिमला स्थित आरटीओ कार्यालय के पास हुए भूस्खलन में भी तीन लोगों की मौत हो गई थी। साथ ही पिछले साल भारी बारिश ने धर्मशाला के नूरपुर की पंचायत थोहडा उपरली खनी व झिकली खनी में जमकर तबाही मचाई थी। जिसमें किसानों की भूमि, फसल और रास्तों को भारी नुकसान हुआ था। सुबह के समय करीब तीन बजे खरोड़ गांव में अचानक बादल फटने से खन्नी उपरली और खन्नी झिक्ली पंचातों में पानी का भारी सैलाब आ गया था। जिसने संपर्क मार्गों के साथ साथ फसलों को भी भारी नुकसान किया था। गलोड़ खरोड़ गांव को आने वाला नागाबाड़ी-बदूही वाया रते घर खरोड़ मार्ग करीब चार जगहों से भूमि कटाव के चलते बुरी तरह बंद करा दिया गया था वहीं गांव में बिजली और पीने के पानी की व्यवस्था भी पूरी तरह ठप्प हो गई थी। इसी तरह से धर्मपुर-मढ़ी-संधोल मार्ग पर मयोह चकयाना के पास भारी बारिश और धुंध के कारण एक कार अनियंत्रित होकर गहरी खाई में गिर गई थी। हादसे में ध्वाली पंचायत के उपप्रधान समेत दो लोगों की मौत हो गई थी। एक अन्य घटना में भारी बारिश के कारण एक दीवार गिरने से एक मजदूर की मौत हो गई और इसी हादसे में अन्य छह लोग घायल भी हुए थे। इसी के तरह के कई मामले पिछले साल की घटनाओं में शामिल है।
जंगल के कटने, अवैध खनन और कंस्ट्रक्शन की वजह से भी भूस्खलन और आकस्मिक बाढ़ की घटनाएं बढ़ती ही जा रहीं हैं । किन्नौर में तो बाढ़ का तांडव हर वर्ष देखने को मिलता है। परन्तु ज़रूरी है कि शासक वर्ग इस गंभीर समस्या के प्रति संवेदनशील बनें। स्थिति तो यह है कि एक आम नागरिक अब यही सोचता है कि ऐसी प्राकृतिक आपदा को रोकने के लिए हम पहले से कुछ प्रयास नहीं कर सकते हैं।
ज्ञात हो कि पिछले साल मानसून में बारिश के कारण हिमाचल के धर्मशाला क्षेत्र में भी कई घटनाएं हुई जिनकी वजह से वहां रहने वाले आम लोगो को परेशानियों का सामना करना पड़ा था। पर वहां के एक निवासी ने नाम ना बताने का आग्रह कर कहा : ” हर साल बारिश के कारण पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन और पहाड़ के टूटने का खतरा बना रहता है । किस जगह ऐसी आपदा होने वाली है इसका पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है पर सरकार ज्यादा खतरे वाली जगह को मानसून से पहली ही खाली करा देती है । ताकि वहां रहने वाले लोगों की जान को कोई खतरा ना हो। हिमाचल सरकार ऐसी प्राकृतिक आपदा में घायल हुए लोगो को मुआवजा प्रदान करती है।”
इस बार किन्नौर में पुल के बहने पर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व विधायक राज्य के पूर्व मंत्री रविन्द्र सिंह रवि ने भी ग्लोबलबिहारी.कॉम से गुरुवार को फ़ोन पर साक्षात्कार के दौरान कहा: “किन्नौर में जो पूल बहा वह किसी ने जान बूझ के नहीं किया बल्कि वह एक प्राकृतिक आपदा है। मानसून आने से पहले जिले के सभी डी सी को अलर्ट किया जाता है, बरसात के पानी के लिए बड़े डेम का निर्माण सरकार द्वारा इसके लिए कई योजनाओं और प्रोजेक्ट्स पर काम किया जाता है। हिमाचल में रहने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए उन्हें जून के आखिर से ही चेतावनी व अलर्ट देना शुरु कर दिया जाता है । जिसमें भारी बारिश में कोई बाहर ना निकले इसकी चेतावनी दी जाती है।”
उन्होंने कहा, “हिमाचल एक पहाड़ी क्षेत्र है यहां पर किन्नौर, लाहाैल स्पीति, भरमौर, और आदि। यह सब क्षेत्र जनजातीय है ऐसी जगहों पर भारी बारिश के कारण अक्सर ऐसी घटनाएं होती है सरकार अपनी जिम्मेदारी के साथ कंस्ट्रक्शन करती है लेकिन भारी बरसात के कारण वहां लैंडस्लाइडिंग होती रहती है जिसके कारण हम रास्ते बंद कर देते है। भारी बारिश के कारण ये परम्परा कई वर्षो से चली आ रही है जिसमें हमे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है।”
परन्तु सिर्फ प्रकृति को ही दोष देना कितना जायज हैं ? क्या यही काफी है? गौर तलब है कि हिमाचल में बारिश हर साल भारी तबाही मचाती है। ज़रुरत हैं इसकी वजह के तह में जाने की और प्रकृति के विनाश को रोकने के लिए एक राजनैतिक दृढ़ संकल्प की । जंगल के कटने, अवैध खनन और बेतरतीब निर्माण की वजह से भी भूस्खलन और आकस्मिक बाढ़ की घटनाएं बढ़ती ही जा रहीं हैं । ज़रुरत हैं इन पर रोक लगे। किन्नौर में तो बाढ़ का तांडव हर वर्ष देखने को मिलता है।
सही है कि प्रत्येक मानसून में लोगों की परेशानी बढ़ जाती हैं। अब इस साल फिर मौसम विभाग द्वारा भारी बारिश की संभावना जताई गई है। हिमाचल प्रदेश में 18 अगस्त से सितंबर तक बारिश का दौर जारी रहने का पूर्व अनुमान लगाया गया है।आपदा प्रबंधन निदेशक डॉ. डीसी राणा ने लोगों को नदी-नालों के नजदीक न जाने की सलाह दी है। अभी के हालात में तो बस सभी एक और प्राकृतिक आपदा से बचने के लिए सिर्फ प्रार्थना ही कर सकते हैं।
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