
74वां गणतंत्र दिवस: सिर्फ अधिकार नहीं अपने कर्त्तव्य को भी जानें
कर्त्तव्य पालन के प्रति सतत जागरुकता से ही हम अपने अधिकारों का निरापद रखने वाले गणतंत्र का पर्व सार्थक रूप से मना सकेंगे। तभी लोकतंत्र और संविधान को बचाए रखने का हमारा संकल्प साकार होगा।
आज देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती है पर्यावरण। बढ़ते प्रदूषण और वैश्विक तापमान, जलवायु परिर्वतन आदि के कारण पृथ्वी पर संकट मंडराने लगा है। पर्यावरण संरक्षण आज सबसे ज्यादा आवश्यक हो गया है। अकेले सरकार और नौकरशाहों का ही काम नहीं है बल्कि देश की प्रत्येक जनता को इसमें सहयोग देना होगा। आम लोग पर्यावरण के नुकसान से तो परिचित हैं लेकिन उन तौर तरीकों को रोकने के लिए सजग नहीं जो पर्यावरण को प्रदुषित कर रहे हैं। पर्यावरण अनमोल धरोहर है, इसकी सुरक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है। युवाओं को तो इनके बारे में पता तक नहीं है। उन्हें जागरुक करने की जरूरत है। संविधान में अनुच्छेद 51 A (g) में भी उल्लेख किया गया है कि प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी एवं वन्य जीव आदि भी हैं रक्षा करें, उनका संवर्धन करें तथा प्राणिमात्र के प्रति दया भाव रखें।
प्रायः कुछ से सुना जाता है कि स्वतंत्रता के इतने वर्षो के बाद भी हमें देश से कुछ नहीं मिला लेकिन क्या कुछ लोग यह सोचते हैं कि उन्होंने देश को क्या दिया ? यदि सभी लोग याचना छोड़कर देश के प्रति अपने कर्त्तव्य निभाएं तो देश को उन्नति को कोई नहीं रोक सकता। स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है लेकिन यह अधिकार तब तक अधूरा है जब तक देश के सामने मौजूद चुनौतियां को ख़त्म नहीं कर देते हैं।
26 जनवरी हमारे देश के लिए गौरवशाली ऐतिहासिक दिवस है जब भारत ने आज़ादी के 2 साल 11 महीने 18 दिनों के बाद इसी दिन हमारी संसद में भारतीय संविधान को पास किया था। खुद को संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करने के साथ ही भारत के लोगों द्वारा 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
लेकिन आज भी हमारा गणतंत्र कितनी कंटीली झाड़ियों में फंसा प्रतीत होता है। अनायास ही हमारा ध्यान गणतंत्र की स्थापना से लेकर ” क्या पाया “, ” क्या खोया” के लेखा जोखा की तरफ खींचने लगता है।
आमतौर हम देश से अपेक्षाएं रखते हैं लेकिन खुद से कोई अपेक्षा नहीं रखते हैं ये जानते हुए भी हमसे ही बनता है देश। हम देश के लिए कुछ नही करते उसकी आर्थिक, सांस्कृतिक, समृद्धि में योगदान नहीं करते और देश से अपेक्षा करते हैं कि वह हमारे लिए करे। हमसे ही देश बनता है। हमारे कार्यों से देश प्रगति के रास्ते पर जाएगा।
गणतंत्र दिवस के समय जरूर हमलोगों में देश के प्रति देश भक्ति उजागर होने लगती है। रेडियो, टेलीविजन में देशभक्ति के गाने हमें कुछ समय के लिए अपने कर्तव्यों के लिए प्रोत्साहित करते हैं। परन्तु कुछ समय के बाद हमारा मन भी और चीज़ों में उलझ जाता है। दरअसल व्यक्ति पांच स्तरों पर जीता है। आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा अद्ध्यात्मिक स्तरों पर। हर स्तर में देश की एक प्रमुख भूमिका होती है। हम सब पर देश का उधार है। देश ने हमारी झोली में इतना कुछ दिया है फिर भी हम देश के सामने अपनी मांग ही रखते हैं।
गणतंत्र की सार्थकता तभी होगी जब हरेक व्यक्ति को काम, भोजन एवं स्वच्छ पर्यावरण मिले। संविधान में जो हमारे कर्त्तव्य तय किए गए हैं उसका हम सही ढंग से पालन करें तभी हमारा देश भी महान बनेगा। सबसे बड़ी बात अपने अपने मौलिक अधिकारों को पहचाने ही साथ ही अपने मौलिक कर्तव्यों को भी निर्वहन करें। देशभक्ति का भाव किसी अवसर का मोहताज नहीं होता। यह हमारे भीतर का स्थाई भाव होना चाहिए। देशभक्ति का मतलब देश से अपेक्षा नहीं बल्कि देश के लिए देश के लिए कुछ करने की प्रवृति पैदा होना है।