संस्मरण
– प्रशांत सिन्हा
कुछ तारीख अपने साथ इतिहास लेकर आती है। 13 दिसंबर 2001 की तारीख भी अपने साथ एक काला अध्याय इतिहास में दर्ज कराने आई थी। जब देश के लोकतन्त्र पर सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ था। महज 45 मिनट में पांच आतंकियों ने देश के संसद को घायल कर दिया था।
आज की तारीख 13 दिसंबर को ही ठीक 19 साल पहले लोकतन्त्र के मंदिर कही जाने वाली भारतीय संसद पर आतंकी हमला हुआ था। 13 दिसंबर 2001 को जब संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था विपक्ष खूब हंगामा कर रहा था जिसकी वज़ह से दोनों सदनों की कार्यवाही स्थगित कर दी गई थी। ये सामान्य बात है। लेकिन वहां मौजूद लोगों को क्या पता था कि आज के दिन को संसद पर आतंकी हमले के लिए याद किया जाएगा।
उस दिन आतंकियों ने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए संसद भवन के परिसर में दाखिल हुए थे। एक खूनी तांडव की गवाह पूरी दुनिया बनी। लोकतन्त्र पर सबसे बड़े हमले पर यकीन करना बेहद मुश्किल था क्योंकि आतंकियों ने ताबड़तोड़ गोलीबारी करने पूरे देश को दहलाने की नापाक कोशिश भी थी। आतंकियों ने अपने साथ काफ़ी मात्रा में विस्फोटक पदार्थ भी लेकर आए थे। लेकिन सुरक्षाकर्मियों के बहादुरी के कारण वे कामयाब नहीं हो पाए। अगर आतंकी इसे विस्फोट करने में कामयाब हो जाते तो संसद भवन की तस्वीर क्या होती इसे सोच कर भी सभी सहम जाते हैं।
ये पांच आतंकी ग्रह मंत्रालय का लेवल लगी गाड़ी में बैठकर संसद भवन के परिसर में घुस गए थे। जब हमला हुआ था उसके ठीक 40 मिनट पहले ही संसद की कार्रवाई को स्थगित किया गया था। लेकिन फ़िर भी लाल कृष्ण आडवाणी समेत 100 से भी ज्यादा सांसद, कर्मचारी और सुरक्षाकर्मी संसद भवन में मौजूद थे। गोलियों की गूंज के बाद पहला धमाका करने के लिए काफ़ी था कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर यानि भारतीय संसद पर हमला हो चुका है सारे सुरक्षा कर्मी संसद परिसर में मौजूद नेताओं की सुरक्षा के लिए भवन के अंदर की ओर दौड़ लगाते हुए चिल्लाना शुरू कर देते हैं। सारे दरवाजों को बंद कर दिया जाता है। उस दिन पूरा देश थर्रा उठा था क्योंकि ये हमला देश की राजधानी और लोकतन्त्र की सबसे बड़ी मंदिर संसद भवन पर हुआ था। हमले में शामिल पांच आतंकियों को मार गिराया गया था।
हमले के बाद 15 दिसंबर 2001 में दिल्ली पुलिस ने आतंकी संगठन जाए- से – मुहम्मद के सदस्य अफजल गुरू को कश्मीर से पकड़ा। दिल्ली विश्व विद्यालय के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज के एस आर गिलानी के अलावा दो अन्य अफसान गुरु, शौकत हसन को दिल्ली से पकड़ा। अदालत ने गिलानी और शौकत हसन को मौत की सज़ा सुनाया और अफसान गुरु को बरी कर दिया ।
बाद में 29 अक्टूबर 2003 में गिलानी दिल्ली उच्च न्यायालय से बरी हो गया। फिर मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा और 4 अगस्त 2005 में शौकत हसन की सजाए मौत में बदलाव कर 10 साल सश्रम कारावास कर दिया गया। अफजल गुरु को मिली सजाए मौत मुकर्रर रही और फिर वह दिन आया जब अफजल गुरु को फांसी मिली। अफजल गुरु को लगने लगा था कि कश्मीरी होने के कारण वह बरी हो जाएगा। संसद हमले के 12 साल बाद 9 फरवरी 2013 को दोषी अफजल गुरु को फांसी दी गई। ये हमारे देश में ही संभव है कि अफजल गुरु को 12 साल जिंदा रखा गया और बेगुनाही साबित करने का मौका दिया गया। दुनिया के तमाम देश आतंकियों को पकड़ते ही मौत की सज़ा देते हैं।
इस हमले के तार पाकिस्तानी खुफिया एजेन्सी आई एस आई से भी जुड़े पाए गए थे। इसके बाद भारत और पाकिस्तान में तनाव बढ़ गया था और सीमा पर बड़े पैमाने पर सेना की तैनाती कर दी गईं थीं।
इस आतंकी हमले मे संसद भवन के सुरक्षाकर्मी, माली और दिल्ली पुलिस के जवान समेत कुल 9 लोग शहीद हुए थे। जो लोग मानवाधिकार की बात करते हैं क्या उनके लिए आतंक पीड़ितों को मानवाधिकार की कोई कीमत नहीं है। क्योंकि कुछ संगठनों ने अफजल गुरु की फांसी पर सवाल उठाए थे। 19 साल पहले हुए इस हमले की याद आज भी ताज़ा है। आखिर संसद पर हमला करके भारत की संप्रभुता को चुनौती दी गई थी।