टिपण्णी
– डा०रक्षपाल सिंह*
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पोते तुषार गांधी द्वारा महात्मा गांधी को हिन्दू एवं उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे को हिन्दू वादी बताया है। महात्मा गांधी निश्चित तौर पर अपने को केवल हिन्दू मानते ही नहीं थे बल्कि दूसरे मज़हब/पंथ/मत से विद्वेष न रखते हुए हिन्दू होने के लिए आवश्यक सनातन धर्म की मान्यताओं के प्रति निष्ठा पर भी अमल करने की भावना (जिसे हिंदुत्व कहा जाता है) भी उनमें कूट- कूट कर भरी हुई थी।
हिंदुत्व की भावना पर अमल करने वाला व्यक्ति जिसके लिए राष्ट्र हित प्रथम चॉइस और जो अन्य मज़हबों के प्रति विद्वेष की भावना न रखते हुए हिंदुत्व का प्रचार- प्रसार करने में अपना निरंतर समय देता हो , उसे ही हिंदूवादी/ हिंदुत्ववादी कहा जाता है। समाज के कतिपय लोगों द्वारा जान बूझ कर हिंदूवादी / हिंदुत्व वादी शब्दों को आतंकवादी/तालिबानी/ जिहादी शब्दों का पर्याय समझा जाना उचित नहीं ।
एक ऐसा व्यक्ति जो दूसरे धर्मों का अनुसरण करने वालों के प्रति विद्वेष भावना अथवा उन्हें किसी प्रकार की हानि पहुंचाने की सोच रखता हो , उसे हिंदूवादी / हिंदुत्ववादी बताना हिन्दू पंथ का अपमान है। नाथूराम गोडसे हिंदू था और उसके अंदर राष्ट्र हित की भावना के साथ हिंदुत्व की भावना भी विद्यमान थी। उंसके ज़ेहन में गांधीजी की मुस्लिम तुष्टिकरण की सोच भी घर कर चुकी थी जिसके कारण तथा बंटवारे के समय ही पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर आक्रमण कर उंसके बड़े भू भाग पर अनाधिकृत कब्ज़ा कर लिए जाने के वाबजूद भारत – पाक बंटवारे में हुए समझौते के तहत भारत द्वारा पाक को दिए जाने वाली 55 करोड़ रु की धनराशि को गांधीजी पाक को अविलंब अदा किए जाने के पक्ष में थे।
कश्मीर पर अनाधिकृत कब्जे व राष्ट्र को होने वाले बड़े आर्थिक नुकसान के मद्देनजर गोडसे द्वारा अपनी उग्र भावनाओं पर नियंत्रण न कर पाने के कारण वह हिंदुत्व की मान्यताओं का अतिक्रमण करते हुए महात्मा गांधीजी की हत्या करने का गंभीर अपराध कर बैठा। यद्यपि गोडसे के अंदर भरी हुई राष्ट्रहित प्रथम की भावना ही गांधीजी की हत्या की वज़ह बनी जिससे गोडसे आज तक देश में घृणा/ निंदा का पात्र बना हुआ है और भविष्य में भी उसे राष्ट्र द्वारा माफ किये जाने की कोई उम्मीद नहीं कर सकता।
हिंदुत्व की मान्यताओं/ सिद्धांतों पर पूरी शिद्दत के साथ अमल करने एवं उंसके प्रचार- प्रसार को ही अपने जीवन का लक्ष्य मानकर चलने वाले हिंदुओं को तभी हिंदूवादी कहा जा सकता है जबकि उनके अंदर दूसरे मज़हब के लोगों के विरुद्ध विद्वेष अथवा अकारण किसी भी प्रकार की शत्रुता की भावना न हो।
हिंदुत्व , हिंदुत्ववाद शब्द उसी तरह आतंक ,आतंकवाद के पर्याय नहीं हो सकते जैसे कि कुरान में उल्लिखित सिद्धांतों को कट्टरता (पूरी शिद्दत के साथ) से अपने जीवन का अंग बनाने वाले मुसलमान आतंकवादी /जिहादी नहीं हो सकते। हिन्दू मत को मानने वाला एक व्यक्ति आतंकी/ हत्यारा हो सकता है, लेकिन उसे हिंदुत्ववादी कहना हिन्दू पंथ के साथ घोर अन्याय ही होगा।
अब समय की मांग भी और आवश्यकता भी इस बात की है कि हिंदुत्व, हिंदूवादी, हिंदुत्ववादी शब्दों का निजी स्वार्थ को सर्वोपरि मान जिस प्रकार लोग अपने वक्तव्यों में दुरुपयोग कर उनके अर्थों का अनर्थ कर साम्प्रदायिक सौहार्द- सद्भाव को बिगाड़ रहे हैं, उसे रोकने हेतु सरकार को सार्थक कदम उठाए जाने चाहिए।
*शिक्षाविद एवं डा० बी आर अम्बेडकर विश्विद्यालय शिक्षक संघ आगरा के पूर्व अध्यक्ष। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।