अभिमत
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
बर्फीली ठंड में ठिठुरता भारत का किसान, भारतीय लोकतंत्र को गरमाहट दे रहा है। सरकार द्वारा किसानों पर थोपे गए तीनों कानून, भारत के किसान-मजदूर व पूरे समाज के लिए उद्योगपतियों की लूट हेतु भारत के लोकतंत्र की फाँसी है। वर्तमान सरकार अपनी हठधर्मिता के कारण दिल्ली के चारों तरफ बैठे किसानों की आवाज की अनसुनी कर रही है। 38 दिनों से यह किसान आंदोलन चल रहा है। सरकार से छह दौर में हुई बातचीत से भी समाधान नहीं खोज पायी।
कल सरकार की आंदोलनकारी किसानों के साथ सातवें दौर की बातचीत होने वाली है। किसान की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर हमारी सरकार की इस प्रकार की हठधर्मिता, राष्ट्रहित में नहीं है। राष्ट्रहित चाहने वाली सरकार, मजदूर, किसान को प्राथमिकता देकर बहुत ही सरलता से समाधान ढूंढ सकती है। हमारे देश की अच्छी बात यह है कि, इस आंदोलन ने हमारे लोकतंत्र को मजबूत बनाने की एक पहल की है। जबकि सरकार ने जाति, धर्म आदि में विभाजित करने के प्रयास किए। लेकिन मजदूर-किसान बँटा नहीं है।
किसानों की और ज्यादा परीक्षा लेना, अब अच्छा नहीं होगा। अब सरकार को जल्दी से जल्दी एक बार किसानों की बात मानकर, आज की चर्चा करके, जो किसान चाहते है, उसकी पूर्ति करने वाला कानून बना देना चाहिए।
हमारी सरकार ने उद्योगपतियों को बहुत मदद की है। वैसी ही मदद मजदूर-किसान के लिए हो जाती तो, वर्तमान सरकार 2014 जैसी स्थिति बना लेती। मैं केवल अपने भारतीय मजदूर-किसान को सुरक्षित-संरक्षित रखने का सुझाव दे रहा हूँ। सरकार समाज को भूलेगी और केवल अपने तंत्र को चलाएगी, तो लोकतंत्र नष्ट होगा एवं भारत का संकट बढ़ेगा।
अच्छी लोकतंत्र सरकारें वे मानी जाती है, जो अपने लोक के अधीन रहकर तंत्र को चलाती है। तंत्र हमेशा लोक के नीचे रहता है, तभी लोकतंत्र बना रहता है। भारतीय लोकतंत्र को बनाए रखने हेतु मजदूर किसान-जवान को तीनों कानूनों द्वारा दी जाने वाली फांसी हटाना चाहिए। सरकार को इनसे मिलकर ,उनकी राय से नया कानून बना लेना अच्छा होगा।
इसी सरकार ने पहले भी 2016 में भू-अधिग्रहण अधिनियम रद्द किया था। अब कृषक उपज, कृषि करार और आवश्यक वस्तु अधिनियम, इन तीनों कानूनों को रद्द करके , भारतीय लोकतंत्र मूल्यों को स्थापित करें। भारतीय लोकतंत्र की आजादी कायम रहे ऐसी व्यवस्था बनायें।
*लेखक जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।