– रमेश चंद शर्मा*
कार्यकर्ता को महत्व देना उस समय के नेतृत्व को आता था
दिल्ली नजफगढ़ के वैद्य श्री किशनलाल, गाँधी निधि से जुड़े श्री जगतराम साहनी, गाँधी संस्थाओं, अणुव्रत की ओर से अनेक पदयात्राओं का आयोजन समय समय पर हुआ। इन पदयात्राओं में कभी पूरे समय तो कभी टुकड़ों में शामिल होने का अवसर मिला। इन यात्राओं के माध्यम से गाँधी विचार, शांति, सद्भावना, नशामुक्ति, गाँधी जयंती, गाँधी पुण्य तिथि आदि मुद्दों पर प्रचार प्रसार होता। बाद में राजघाट अहिंसा विद्यालय की ओर से गाँव चलो, युवाओं को जोड़ने, छात्र छात्राओं को गावं ले जाने, सप्ताहांत शिविरों के आयोजन द्वारा अपन ने भी कई वर्ष तक लगातार इस कम को संभाला।
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सप्ताहांत शिविर शनिवार की शाम से रविवार की शाम तक चलते थे। इनमें सर्व धर्म प्रार्थना, बातचीत, चर्चा, सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रभात फेरी, योग, श्रम संस्कार, भाषण, फिल्म, खेल, खाना बनाना आदि शामिल रहते। इनका व्यापक प्रभाव नजर आया।
फ़्रांस ने जब परमाणु प्रशिक्षण किया तो इसके विरोध में राजघाट अहिंसा विद्यालय की ओर से हम बहुत ही कम गिने चुने लोग गाँधी स्मारक निधि के मंत्री श्री देवेन्द्र भाई के नेतृत्व में फ़्रांस दूतावास पर विरोध करने पहुंचे। कम संख्या होते हुए भी मुद्दे को महत्वपूर्ण मानते हुए अंग्रेजी अख़बार टाइम्स आफ इंडिया ने इसका समाचार फोटो सहित छापाI समाचार पत्र उस समय समाचार के महत्व को समझते, संज्ञान लेते थे। आज की स्थिति देखकर दुःख होना स्वाभाविक है। ऐसे अनेक मौके हुए जब संख्या में कम होते हुए भी हमने अपनी बात कहने में झिझक नहीं की।
शिक्षा में क्रांति के मुद्दे पर राजघाट अहिंसा विद्यालय ने राजघाट से बोट क्लब तक मार्च का आयोजन किया। राजघाट पर सर्वोदय नेता श्री जयप्रकाश नारायण का आशीर्वाद मिला। राजघाट के बाहर हम मुश्किल से एक दर्जन लोग थे। हमने पहले से ही बोट क्लब के समय का भी अनुरोध किया हुआ था। श्री जयप्रकाश जी ने कहा कि आप लोग पदयात्रा करके पहुँचो। मैं बोट क्लब दोपहर में समय पर पहुँच जाऊंगा। ठीक लंच के समय जेपी पहुँच गए। हमने कुछ नारे लगाए, गीत गाने शुरू किए देखते देखते अच्छी संख्या में लोग एकत्र हो गए। जयप्रकाशजी ने एक घंटे का जोरदार भाषण दिया।
राजघाट पर कम संख्या को देखकर हमें लग रहा था जयप्रकाशजी आएंगें या नहीं। मगर ठीक समय पर पहुंचकर जो उत्साह बढाया उसे कैसे भुलाया जा सकता है। कार्यकर्ता को महत्व देना उस समय के नेतृत्व को आता था। इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए जयप्रकाश जी ने आभार भी व्यक्त किया। उस समय संख्या बल नहीं बल्कि काम, मुद्दा, विचार को भी मान्यता दी जाती थी। यह भी एक समय था जब बुलाने पर भी लोग शामिल नहीं हो पाए। मगर इसके कुछ समय बाद ही बिहार आन्दोलन शुरू होने, संपूर्ण क्रांति के समय के दृश्य याद आते है।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।