– रमेश चंद शर्मा*
27 मई 1964 पंजाब प्रदेश जो अब हरियाणा कहलाता है, का महेंद्रगढ़ जिले का मंढाना गाँव। गर्मी की दोपहर में परिवार सहित श्रम कार्य चल रहा था। गवाडा जिसे नौहरा भी कहते है में परिवार सुबह से ही सफाई, बाड़े को ठीक करने में लगे हुए थे। तभी देखा की बाजार से जो लोग रात को लौटते थे, वे दिन में ही चले आ रहे हैं। पास आते ही दुखद समाचार मिला कि प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु का देहांत हो गया है। बाजार बंद हो गए हैं। सभी के मुख से एक ही बात आ रही थी, अब देश का क्या होगा?
देश ने अपना पहला प्रधानमंत्री, जनप्रिय नेता, बच्चों के चाचा नेहरु, भारत की खोज ग्रंथ के लेखक, दुनिया में शांति दूत कहलाने वाले एक आजादी के योद्धा को खो दिया। चीन के धोखे, युद्ध के बाद नेहरूजी कभी इस सदमे से बाहर नहीं आ पाए। पंचशील की बात थम गई। दिल्ली रहता था, अब दो माह की छुट्टियों के कारण गाँव आया था। नेहरूजी से मिलने का अपन को कई बार मौका मिला। उनके निवास तीनमूर्ति भवन जाकर खेलने का भी अवसर मिला था। वे दृश्य आँखों के सामने चित्रपट की तरह उभरने लगे। जिन्होंने नेहरूजी से मिलाया था, उनकी याद, वे पल बाल मन पर ऐसे उभर पड़े कि उससे बाहर निकलना मुश्किल हो गया।
यह भी पढ़ें: शहरी जीवन: जो जितना खा सके
रामलीला में स्वयं सेवक के नाते अपन ने गाँधी मैदान में जब पंडित जवाहरलाल नेहरु को रोकने का प्रयास किया था। वह प्रसंग उनकी महानता, विशाल हृदय, कोमलता, सरलता, सहजता का स्पष्ट उदाहरण पेश करता है। इतने बड़े नेता होकर भी बच्चों से कितना लगाव, प्यार, मतलब, सम्पर्क, संवाद, संबंध रखते थे।
रामलीला में व्यवस्था सँभालने के लिए, जल व्यवस्था, लोगों के पास जाँच करने, उनको रास्ता बताने, प्राथमिक चिकित्सा आदि के लिए स्वयं सेवकों को जिम्मेदारी दी जाति थी। इसमें अनेक संगठन, संस्था, स्काउट एवं गाईड, रेड क्रास, सेंट जोन एम्बुलेंस, गली मोहल्ले में बनी संस्था, विद्यालय आदि की भागीदारी होती थी। अपन भी स्वयं सेवक बनकर खड़े थे। मंच की ओर जाने वाले रास्ते पर तैनात थे।तभी नेहरूजी के साथ बड़ा सा समूह आया और हम छोटे छोटे स्वयं सेवकों की बात ना सुनते हुए तेजी से निकला। अपन ने जोर से कह दिया जब नेता ही अनुशासन का पालन नहीं करते तो हम क्या करें। यह सुनकर नेहरूजी एकदम वापिस लौटे। यह किसने कहा है, सवाल सामने था।
अपन सामने आ गए। हम सब घबरा गए। हमारे इंचार्ज सहित, अनेक लोग जो उस समूह में शामिल थे, गुस्सा होने लगे। नेहरूजी ने उनको चुप कराया और अपन से पूछताछ हुई। अपन ने बताया की आपको इधर से जाना था, आप बाहर जाने के रास्ते से गए। नेहरूजी गलती महसूस की, वापिस इस तरफ से अंदर प्रवेश किया। हम सबको आशीर्वाद दिया, हिम्मत से अपनी बात कहने के लिए धन्यवाद दिया। सजगता से काम करने की सलाह दी। साथ ही हमें समझाया, व्यवस्था इस प्रकार करो जो दूर से साफ समझ आए। वहां हमने मध्य में दो स्वयं सेवक खड़े करके ही बंटवारा किया हुआ था।
अब तो सभी खुश होकर हमें देखने लगे जो गुस्सा हो रहे थे। नेहरूजी ने वापसी पर सबसे हाथ मिलाया और ख़ुशी जाहिर की। इसकी चर्चा बाद में विद्यालय तथा अन्य जगह भी बहुत हुई। रामलीला आयोजकों ने पुरस्कार दिए। नेहरुजी को रोकने वाली टीम को खूब सम्मान मिला। ऐसे प्यारे, न्यारे, लोगों के दिलों पर राज करने वाले थे बच्चों के चाचा नेहरू पंडित श्री जवाहर लाल नेहरू।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।
Glad to be one of the visitants on this awing web site : D. Madelene Orville Kurt
As the admin of this web page is working, no question very soon it will be famous, due to its feature contents.
Some really nice and useful information on this internet site, as well I conceive the design has got fantastic features. Aurelio Lisenby
I was looking through some of your articles on this site and I believe this website is real instructive! Retain posting. Arlie Spurgin
I am in fact thankful to the holder of this site who has shared this wonderful write-up.
I visited various web pages at this site. It is truly wonderful.
Some really prime blog posts on this website, bookmarked .