दो टूक
– डॉ. राजेन्द्र सिंह*
बापू ने ‘नमक सत्याग्रह’ साबरमती आश्रम से शुरू किया था; उसे भी आज मिटाया जा रहा है
विरासत की हत्या का षड्यंत्र तेज हुआ है। दुनिया की सबसे बड़ी विरासत, भारतीय विरासत है। ‘गांधी जीवन मूल्य व सिद्धांत सत्य-अहिंसा’ हमारी विरासत ही है। इसे मिटाने हेतु गहरे प्रत्यक्ष प्रयास दिखाई दे रहे है। सत्याग्रह एक उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य है। बापू ने ‘नमक सत्याग्रह’ साबरमती आश्रम से शुरू किया था; उसे भी आज मिटाया जा रहा है। सादगी, समता, शांति, अहिंसामय द्वारा ‘हिंसक सत्ता से सत्य के लिए आग्रह’ करना ही ‘सत्याग्रह’ है। सत्ता को सत्याग्रह स्वीकार नहीं है। इसीलिए सत्याग्रह के प्ररेक स्थलों को मिटाना और भारत के लिए नया इतिहास बनाना ही उनकी मजबूरी बन गयी है।
जब भी सत्ताधीश अपना स्वयं का ही इतिहास अपने अनुकूल बनाना चाहते हैं, तभी वे अपने ही चरित्र और व्यवहार को दुनिया में सबसे अच्छा दिखाने का घमण्ड़ पालते है। तब दूसरे चरित्र जिनका वे अपने जीवन में पालन नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें हटाना-मिटाना ही उनका लक्ष्य और मजबूरी बनता है।
यह मजबूरी विचार से बनती है। बापू जिस विचार से बने थे, उसी का सत्यनिष्ठ होकर पालन करते थे। उनका जीवन ही उनका संदेश बन गया था। उनके बनाये रास्ते पर चलना तो दुधारी तलवार पर चलने जैसा दुरूह है। उस पर झूठा-दिखावा करने वाले इंसान नहीं चल सकते। जिस किसी के मन में गांधी से भी बड़ा बनकर, दिखने की महत्त्वाकांक्षा होगी, तो वह उनके सभी जीवन मूल्यों के प्रेरक स्थानों को मिटाने-हटाने का प्रयास करेगा ही। जिनके सामने वह खड़ा होने का हकदार नहीं है, उन्हें हटाना ही वह अपना अंतिम उद्देश्य बनाता है।
हकदारी तो नैतिकता और सत्य की जिम्मेदारी निभाने पर ही प्राप्त होती है। जब कोई उन जिम्मेदारियों को निभाने योग्य नहीं होते तो उनसे बचने के उपाय खोजता है। तब वह साबरमती आश्रम की प्रेरक विरासत को मिटाने हेतु स्वयं के बाजार, मोल व दुकानों से दूसरों को ढकने को ही उपाय बनाता है। इसीलिए वे साबरमती आश्रम को विश्व पर्यटन बनाने के नाम पर चारों तरफ मोल और बाजार की अट्टालिकायें खड़ी कर देंगे।
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बापू की शारीरिक हत्या से ज्यादा भयानक उनके प्रतीकों की हत्या है। जैसे- न्यायलय भी प्रतीक व प्रमाणों को नष्ट करना ज्यादा भयानक मानकर अपराधी को दंडित करता है। आज की न्यायपालिका बापू विरासत के प्रमाणों को नष्ट करने वालों को कितना दंडित करेगी? कब करेगी? मालूम नहीं है। दंडित होंगे या नहीं होगें यह भी पता नहीं है? बापू विरासत हत्या के प्रमाण वाराणसी गांधी चोरे को बुलडोजर से ध्वस्त करने जैसे सैंकडों उदाहरण है। विरासत इतिहास का नाम बदलना वर्तमान सत्ता की मजबूरी है।
भारत के एक तिहाई लोग बिना खाये-पिये सोते हैं। उन्हें खाना-पानी आवास देकर इतिहास बदला जा सकता है। ‘‘भारत के हर इंसान को रोजी-रोटी, स्वास्थ्य, हवा, पानी, मकान मिला’’ यह वाक्य भी इतिहास बदलने वाला बन सकता है। इनसे विरासत की हत्या नहीं होती है, यह अहिंसक काम हो सकता है। हत्या करना सदैव आसान होता है, इसलिए सत्ताधीश हत्या, हिंसा को अपनाते है। हिंसा-अहिंसा का विचार करने वाला कौन है? गांधी की हत्या को भी हिंसा ना मानने वाला, उसकी विरासत की हत्या करने से कैसे रुकेगा? हाँ रुकेगा। अहिंसा हिंसा से अधिक सबल-शक्तिशाली व सदैव ऊर्जा देने वाली होती है। सत्य का आग्रह व अहिंसामय जीवन जीने वाले लोग संगठित होकर सत्याग्रह करें, तो अहिंसा की हमारी विरासत को कोई नहीं मिटा सकता। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी हमारी अहिंसा को स्वीकार करके ही गांधी जन्मदिवस 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस घोषित किया है, फिर भारत सरकार या गुजरात सरकार क्यों नहीं सुनेगी।
विरासत स्वराज यात्रा से देशभर में गांधीजन जुड़े हैं। यह यात्रा 22 सितम्बर 2021 को मदुरई से आरंभ होकर 2 अक्टूबर 2022 तक चलेगी। अभी तक तमिलनाडु, राजस्थान, महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात, केरल, कर्नाटक, उ.प्र., म.प्र. के कुछ ही शहरों-गावों में पहुँची है। यह बिना दिखावा किये, सादगी, सहजता से चल रही है। इसमें प्रकृति और मानव को बराबरी से देखने वाले आज के गांधी जन जुड़े हैं। प्रकृति सभी की जरूरत तो पूरी करती है, लेकिन लालच किसी एक का भी पूरा नहीं कर सकती। इस सिद्धांत में पूर्ण विश्वास रखने वाले ही इस ‘विरासत स्वराज यात्रा’ में शामिल है। यह देश-दुनिया को एक मानने वाली यात्रा, गांधी मूल्यों-सिद्धांतों की ज्योति पूरी दुनिया में जलायेंगे। यह यात्रा 29 नवंबर 2021 से अफ्रीका के केन्या, इथोपिया, सोमालिया तीन देशों के लिए रवाना हुई। वहाँ भी गांधी संदेश से ही जल संकट समाधान बताने व करके दिखाने का कार्य करेगी।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।