विश्व जल दिवस 2022
– ज्ञानेन्द्र रावत*
आज जल संकट समूचे विश्व की गंभीर समस्या है। हालात इतने खराब हैं कि दुनिया के 37 देश पानी की भारी किल्लत का सामना कर रहे हैं। इनमें सिंगापुर, पश्चिमी सहारा, कतर, बहरीन, जमायका, सऊदी अरब और कुवैत समेत 19 देश ऐसे हैं जहां पानी की आपूर्ति मांग से बेहद कम है। दुख की बात यह है कि हमारा देश इन देशों से सिर्फ एक पायदान पीछे है। असलियत यह है कि दुनिया में पांच में से एक व्यक्ति की साफ पानी तक पहुंच ही नहीं है। यह सब सेवा एवं उद्योग क्षेत्र से योगदान बढ़ने के कारण घरेलू और औद्यौगिक क्षेत्र में पानी की मांग में उल्लेखनीय बढो़तरी का नतीजा है।
कितनी दुखदायी स्थिति है कि दुनिया में नदियों के मामले में सबसे अधिक सम्पन्न हमारे देश की तकरीब साठ करोड़ से ज्यादा आबादी पानी की समस्या से जूझ रही है। और देश के तीन चौथाई घरों में पीने का साफ पानी तक मयस्सर नहीं है। देश की यह स्थिति तब है जबकि यहां मानसून बेहतर रहता है। और यदि जल गुणवत्ता की बात की जाये तो इस मामले में हमारा देश 122 देशों में 120 वें पायदान पर है। यह हमारी पानी के मामले में बदहाली का सबूत है। इसका सबसे बडा़ कारण कारगर नीति के अभाव में जल संचय, संरक्षण व प्रबंधन में नाकामी है। इसी का खामियाजा समूचा देश भुगत रहा है।
यह सच है कि भूजल पानी का महत्वपूर्ण स्रोत है। पृथ्वी पर होने वाली जलापूर्ति अधिकतर भूजल पर ही निर्भर है। लेकिन वह चाहे सरकारी मशीनरी हो, उद्योग हो, कृषि क्षेत्र हो या आम जन, सभी ने इसका इतना दोहन किया है जिसका नतीजा भूजल के लगातार गिरते स्तर के चलते जल संकट की भीषण समस्या के रूप में हमारे सामने है। इससे पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलन की स्थिति पैदा हो गयी है। यह इस बात का संकेत है कि आने वाले दिनों में स्थिति कितनी विकराल हो सकती है। इसे उसी स्थिति में रोका जा सकता है जबकि पानी समुचित मात्रा में रिचार्ज हो, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में पानी का दोहन नियंत्रित हो, संरक्षण हो, भंडारण हो ताकि वह जमीन के अंदर प्रवेश कर सके।
सवाल यह अहम है कि जिस देश में भूतल व सतही विभिन्न माध्यमों से पानी की उपलब्धता 2300 अरब घनमीटर है और जहां नदियों का जाल बिछा हो, जहां सालाना औसत बारिश 100 सेमी से भी अधिक होती है, जिससे 4000 अरब घनमीटर पानी मिलता हो, वहां पानी का अकाल क्यों है? असलियत में बारिश से मिलने वाले पानी में से 47 फीसदी यानी 1869 अरब घनमीटर पानी नदियों में चला जाता है। इसमें से 1132 अरब घनमीटर पानी उपयोग में लाया जा सकता है। इसमें से 37 फीसदी उचित भंडारण-संरक्षण के अभाव में समुद्र में बेकार चला जाता है। जाहिर सी बात है कि यदि इसी को रिचार्ज के लिए एक सोची समझी नीति के तहत उसका आकलन कर भविष्य में उपयोग की दृष्टि से संरक्षण किया जाये तो देश में पानी का कोई संकट नहीं होगा। सच तो यह है कि इसे बचाकर काफी हदतक पानी की समस्या का हल निकाला जा सकता है। जबकि सदियों से हमारे देश में मनुष्य और प्रकृति के द्वारा जल का संचय होता आया है। इसमें सरकारी तंत्र पर समाज के आश्रित हो जाने ने अहम भूमिका निबाही। इसका परिणाम जल प्रबंधन में सामुदायिक हिस्सेदारी के पतन के रूप में सामने आया। नतीजतन तभी से प्रकृति भी विवश हो गयी।
असलियत में यह सब जल संचय के हमारे परंपरागत तरीकों की अनदेखी, झीलों-तालाबों और कुओं पर अतिक्रमण, नदी और भूजल स्रोतों का प्रदूषण, अत्याधिक पानी वाली फसलों के उत्पादन की बढ़ती चाहत, पानी की बरबादी, बारिश के जल का उचित संरक्षण न होना, भूजल के अत्याधिक दोहन के चलते भूजल स्तर में भयावह स्तर तक गिरावट, जल प्रबंधन का अभाव, जल संचय व संरक्षण में समाज की भागीदारी का पूर्णतः अभाव, छोटे शहरों में अधिकांशतः जमीनी सतह का पक्का कर दिया जाना, अनियंत्रित, अनियोजित औद्यौगिक विकास और विकास के वर्तमान ढांचे की अंधी दौड़ ने हमारी धरती को बंजर बनाने और पाताल के पानी के अत्याधिक दोहन में अहम भूमिका अदा की है।
फिर पानी के मामले में मांग की बढो़तरी और जल उपलब्धता में आयेदिन हो रही बेतहाशा कमी के साथ हमारी जीवनशैली में हुआ बदलाव सबसे बडा़ अहम कारक है। ऐसी स्थिति में वर्षाजल संरक्षण और उसका प्रबंधन ही एकमात्र रास्ता है। पानी देश और समाज की सबसे बडी़ जरूरत है। आइये हय भूजल रिचार्ज प्रणाली पर विशेष ध्यान दें और बारिश के जल का संचय कर देश और समाज के हितार्थ अपनी भूमिका का सही मायने में निर्वाह करें। जल संचय के पारंपरिट तौर तरीकों के इस्तेमाल की भूमिका अहम होगी जिसे हम बिसार चुके हैं। उसी दशा में इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।