गाजियाबाद: अपने आंदोलन के 337वें दिन आज संयुक्त किसान मोर्चा एक बार फिर अपने मांग को दोहराया कि न्याय सुनिश्चित करने के लिए लखीमपुर खीरी किसान हत्याकांड की जांच सीधे सर्वोच्च न्यायालय के मातहत की जानी चाहिए। एक विज्ञप्ति जारी कर मोर्चा ने आरोप लगाया कि एक ओर जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने भी नोट किया है कि लखीमपुर खीरी किसान हत्याकांड की संवेदनशील जांच धीमी गति से चल रही है, वहीं उत्तर प्रदेश सरकार प्रमुख अधिकारियों के तबादले कर रही है।
मोर्चा ने आरोप लगाया कि राजनीतिक कारणों से हो रहे ये तबादले, शांतिपूर्ण ढंग से विरोध कर रहे किसानों के नरसंहार में जांच और न्याय की आवश्यकता को और अधिक प्रभावित कर सकते हैं। “एसकेएम उम्मीद करता है कि सुप्रीम कोर्ट इन तबादलों और उन्हें क्यों किया जा रहा है, पर भी गौर करेगा,” मोर्चा ने कहा।
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मोर्चा ने कहा कि कृषि आत्महत्याओं पर भारत सरकार का एनसीआरबी डेटा पिछले वर्ष की तुलना में वृद्धि दर्शाता है, और अपनी मांग को दोहराया कि सरकार किसानों के संकट को दूर करने के लिए तीनों “कॉर्पोरेट-समर्थक व किसान विरोधी” कानूनों को निरस्त करे और एमएसपी कानून लागू करे। मोर्चा ने यह भी मांग की कि भारत सरकार सभी किसानों और सभी कृषि उत्पादों के लिए एमएसपी गारंटी कानून तत्काल लागू करे। कृषि में लागत कम करने और बाहरी इनपुट निर्भरता से संबंधित कई अन्य लंबे समय से लंबित मुद्दों, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के युग में प्राकृतिक आपदाओं सहित जोखिमों को कम करने और उनसे बचाव करने, कृषि में वास्तविक खेतिहरों का समर्थन करना आदि, को सरकारों द्वारा गंभीरता से संबोधित करने की आवश्यकता है।
भारत सरकार के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने 2020 में कृषि आत्महत्या की संख्या 10,677 आंकी है। 2020 के भारत में दुर्घटना मृत्यु और आत्महत्याओं पर एनसीआरबी की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, इन आत्महत्याओं में से 5579 खेती करने वालों की हैं और 5098 खेतिहर मजदूरों की है। कृषि आत्महत्याओं की सबसे बड़ी संख्या महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से है। कृषि आत्महत्याओं की संख्या 2020 में देश में कुल आत्महत्याओं का 7% है।
हालांकि मोर्चा ने कहा कि जहां वर्ष 2019 की तुलना में 2020 में कृषि आत्महत्याओं की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है, वहीं कृषि आत्महत्याओं के आंकड़ों पर एनसीआरबी की रिपोर्ट की विश्वसनीयता की कई आलोचनाएं भी मौजूद हैं, और इसमें 2016 से कृषि आत्महत्याओं में गिरावट रिपोर्ट करने की प्रवृत्ति रही है।
“इन रिपोर्टों में शून्य कृषि आत्महत्याओं रिपोर्ट करने वाले कई राज्यों की विसंगति सर्वविदित है। जबकि यह सब कृषि आत्महत्याओं के संबंध में वास्तविक तस्वीर को दबाने के संदर्भ में है, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि देश में किसान जिस विकट कृषि संकट से गुजर रहे हैं, लॉकडाउन-प्रेरित कठिनाइयों के साथ ही वह भी बढ़ रहा है,” मोर्चा ने आरोप लगाया।
पिछले 337 दिनों से जारी आंदोलन के चलते दिल्ली से सटे टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर लगे बैरिकेड से लोगों को काफी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। अब पुलिस पुलिस टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर मोर्चों पर कुछ बैरिकेड को हटा रही है, जिसपर मोर्चा ने आरोप लगाया कि दरअसल पुलिस ही सड़कों को अवरुद्ध कर रही थी। “कल से दिल्ली पुलिस प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ सड़कों पर लगाए गए बैरिकेड्स और विभिन्न अन्य बाधाओं को हटाने के लिए विशेष प्रयास कर रही है। ऐसा टिकरी मोर्चा के साथ-साथ गाजीपुर मोर्चा पर भी हो रहा है। यह सर्वविदित है कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के साथ ऐसा व्यवहार किया है जैसे कि वे भारत के दुश्मन हैं और देश की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं; पुलिस ने विशाल सीमेंट बोल्डर, धातु के बैरिकेड्स की 9 परतें, सड़कों पर रेत के ट्रक लगाकर और सड़क पर कीलों की कई परतों को ठोक कर मोर्चा स्थल को किलेबंद किया है। नवीनतम आख्यान में, जाहिर तौर पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय को प्रभावित करने के लिए, इन बैरिकेड्स को आंशिक रूप से हटाने का काम किया जा रहा है। एसकेएम इन घटनाओं पर नज़र रखे हुए है, और भाजपा सरकार के युद्धाभ्यास को देख रहा है,” मोर्चा ने कहा। उसने आगे कहा कि विरोध करने वाले किसान सही साबित हुए हैं – यह पुलिस है जिसने सड़कों को अवरुद्ध किया है और किसानों ने नहीं है । यही किसानों ने पहलें भी समझाने की कोशिश की थी। प्रदर्शनकारियों ने पहले भी यातायात की जगह दी थी और अब भी ऐसा ही किया जा रहा है।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो