संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
मैं इस राष्ट्र को जल समृद्ध राष्ट्र कह सकता हूँ
हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित इस द्वीप को श्रीलंका समाजवादी गणतंत्र राष्ट्र के रूप में जाना जाता है। यह केन्द्रीय पहाड़ों तथा तटीय मैदानों से मिलकर बना है। यहाँ की वार्षिक वर्षा 2500 मिली मीटर से 5000 मिली मीटर तक है। तापमान 27 डिग्री से 15 डिग्री तक रहता है। चारों तरफ समुद्र से घिरा होने के कारण अर्द्धउष्ण कटिबंध जलवायु क्षेत्र है। यहाँ की औसत अर्द्धता 70 मिली मीटर, रात को 90 मिली मीटर तक होती है।
अब यह सोने की लंका नहीं बल्कि जंगलों की लंका है। इस देश में सवा लाख साल पूर्व की मानव बस्तियों का प्रमाण तथा 5 हजार वर्ष का लिखित इतिहास है। 16 शताब्दी के समय इस देश में चाय, रबर, चीनी तथा जिस शब्द के नाम से इस देश का नामकरण हुआ ‘‘दालचीनी’’, जिसे सिंगला भाषा में श्रीलंका बोलते है, यह होती है। कोलम्बो जो यहाँ की राजधानी है। 15वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने यहाँ अपना महल बनाया था और फिर आस-पास के इलाके में उन्होंने ही अपना राज्य कायम कर लिया।
1630 में श्रीलंका के निवासियों ने डच की मदद मांगी और उनका राज्य कायम कराया। डचों ने इन पर कर बढ़ा दिया, उससे इनकी हालत और खराब हो गई। 18 वीं शताब्दी आते-आते अंग्रेजों का राज्य कायम हो गया। 1858 में अंतिम राज्य, केंडी के राजा ने भी आत्म समर्पण कर दिया तो सम्पूर्ण श्रीलंका पर अंग्रेजों का अधिकार कायम हो गया। दूसरे विश्व युद्ध के बाद 4 फरवरी 1948 में इस देश को आजादी मिली और श्रीलंका में समाजवादी राष्ट्रीय सरकार की स्थापना हो गई।
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22 मई 1972 में यह गणराज्य बना। यहाँ का क्षेत्रफल 65610 वर्ग किलोमीटर है। अब यह देश श्रीलंका समाजवादी जनतंत्र व गणतंत्र के नाम से जाना जाता है।
श्रीलंका में रामराज्य काल में एक रावण नाम का बहुत बड़ा भौतिक सुख-सुविधाओं को पाने वाले वैज्ञानिक का राज्य था। जिसका नाम रावण था। वह रावण आज के आधुनिक विकास की तर्ज पर जल्दी से जल्दी प्रकृति का शोषण करके, उसके ऊपर अतिक्रमण करने की योजना बना रहा था। इस योजना की शुरूआत उसने अपना सोने का महल बनाने से की थी। उसके जीवन का लक्ष्य प्रकृति पर हर प्रकार से नियंत्रण करना ही था।
मुझे यह लगता है कि, रामायण जिस काल में लिखी गई। उससे पूर्व यहाँ पर यूरोपियन डच व पुर्तगालियों का राज्य था। तब उन्होंने यहाँ की दालचीनी, रबर, चाय आदि के व्यापार में अपना प्रभुत्व जमा लिया था और उसी की कमाई से कोलम्बो में अपना बड़ा दुर्ग निर्माण किया था। यह दुर्ग रावण का चित्र और उसकी कल्पना प्रस्तुत करता है। श्रीलंका की यात्रा से तो समझा में आता है कि यह एक बहुत गहरा, हरा-भरा, जल-जंगल व जंगली जानवरों से भरा पूरा प्रदेश था। यहाँ की वर्षा नदियों को शुद्ध सदा नीरा रखती थी और यह प्राकृतिक रूप से समृ़द्ध का सुन्दर राष्ट्र रहा होगा, क्योंकि अभी भी यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य यह कहानी अपने आप सुना देता है। इस प्राकृतिक रम्य क्षेत्र में जिसने भौतिक विकास, लालची निर्माण शुरू किया था, उसे रामायण में रावण कहा था।
श्रीलंका के अतिवृष्टि और मिश्रित खेती तथा कम वर्षा वाले भी क्षेत्र हैं। उनमें भी हमारे राजस्थान से 10 गुना अधिक वर्षा होती है। इसलिए यह एक पानीदार राष्ट्र है। लेकिन यहाँ की व्यापारिक खेती में, यहाँ के शुष्क जल क्षेत्रों में भी वर्षा जल का सामुदायिक संरक्षण सुन्दर ढंग से किया है। इसलिए अभी यहाँ जल प्रदूषण का संकट तो है, पर जल उपलब्धता की कमी नहीं है। यहाँ बाढ़-सुखाड़ दोनों है लेकिन दुनिया की तरह उतनी भयाभय नहीं है। इसलिए श्रीलंका को जल संकट राष्ट्र कहना मेरे लिए असंभव है। मैं इस राष्ट्र को जल समृद्ध राष्ट्र कह सकता हूँ। यहाँ का जल अन्य राष्ट्रों की अपेक्षा आपदा नहीं है।
श्रीलंका की नदियाँ पर बहुत सारे बाँध बनने के बाद भी प्रदूषित सदानीरा है। यहाँ की नदियों में दूषित जल है। खेती उद्योग के लिए अब नए प्रबंधन भी आरंभ हुए है। भारतीय पौराणिक काव्यों में लंका का वर्णन रामायण में ईसा पूर्व से है। ईसा पूर्व दूसरी सदी से चौथी सदी के बीच का है। जिसमें यहाँ राक्षस राज्य रावण के रूप में प्रस्तुत है। बोधग्रंथ, दीप वंश और महावंश में इसे भारतीयों के आगमन से पूर्व यक्ष और नागों का वास माना जाता था। संभवत: रावण को प्रकृति विनाशक के रूप में देखा। इसलिए जो प्रकृति का शोषण, अतिक्रमण करता है, उसे बुरा माना जाता है और जो प्रकृति से लेने-देने का अनुशासन रखते है, उन्हें देवता माना जाता है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।