संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
भूटान ही हमें राह दिखा सकता है
प्रकृति ने जो दिया, जितना दिया है, उसी को अपनी कुशलता-दक्षता से सर्वोत्तम उपयोग करने का संस्कार भूटान देश में गहरा है। संरक्षण और अनुशासन ही यहाँ के विकास परिभाषा को गढ़ता और बनाता है। संरक्षण, उपयोग दक्षता और मानवीय अनुशासन ही भूटान की पुनर्जनन प्रक्रिया को तेज रखता है। प्राकृतिक और मानवता पुनर्जनन प्रक्रिया ही इस देश को दुनिया का सर्वाधिक आनंददायी बनाने का काम कर सका है।
इस देश में प्रकृति का विस्थापन नहीं है, क्योंकि इन्होंने सभी को समान रोजगार सृजित करने हेतु छोटे-छोटे घरेलू कार्यों को ही अपनाया है। बड़े उद्योगों के प्रदूषण, शोषण और अतिक्रमण से यह राष्ट्र बना है। यह मानव और प्राकृतिक उत्पादन शक्ति को बराबर बनाये रखने का बहुत गहराई से ख्याल रखा है।
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इन्होंने अपने विकास मान बिन्दुओं को स्वयं तय किया है। अब तो संयुक्त राष्ट्रसंघ भी इन मानवीय आनंद बिन्दुओं को विकास में स्थान दे रहा है। भारत, नेपाल, श्रीलंका ने इन बिन्दुओं को अपने विकास में अनदेखी करके सकल उत्पाद दर में केवल भौतिक उत्पादन से बाजारू आपने को शामिल किया था। इसलिए हम जलवायु परिवर्तन संकट के शिकार भी बने और आय भी घटी।
मानव निर्मित विस्थापन विकृति, विनाश मुक्त राष्ट्र का नाम भूटान है। इसने पंचमहाभूतों से निर्मित मानवता और प्रकृति को बराबर सम्मान दिया है। इसीलिए यहाँ प्रकृति क्रोध से विनाश नहीं होता है अर्थात् यहाँ प्रकृति क्रोधित नहीं होती है। इसीलिए प्राकृतिक प्रसन्नता से ही यहाँ मानव भी प्रसन्नचित्त रहता है।
भूटान में अफरा-तफरी दिखाई नहीं देती है। सहजता, सरलता का समग्र दर्शन होता है। समृद्धि यहाँ प्राकृतिक उत्पादन से सनातन बनकर, आनंदित मानव निर्मित करता है। लोगों का लालच दुनिया जैसी नहीं है। महत्वाकांक्षा भी प्राकृतिक ही है, प्राकृतिक गति है। इनकी गति धीरज धारण किये हुए है।
यह दुनिया का अकेला देश है, जहाँ आनंद और अध्यात्म को विकास का आधार माना जाता है। इस देश ने विकास की परिभाषा को सनातन और समग्र बनाने का काम किया है। पूरी दुनिया की विकास परिभाषा में आनंद-आध्यात्म-प्रसन्नता को छुआ ही नही है। यही देश है, जिसने दुनिया से अलग विकास किया है। मानवीय प्रसन्नता के मान बिन्दुओं में पहले स्थान पर भूटान छोटा है। यहाँ लाचारी, बेकारी, बीमारी दुनिया जैसी नहीं है। यहाँ के लोगों को कोविड-19 सता नहीं पाया है।
मैं यहाँ का सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबंधन देखकर बहुत प्रभावित और आनंदित हुआ। यहाँ का राजा और प्रजा संबंध बहुत सरल-सहज है। इनका रहन-सहन, आहार-विहार में बहुत अंतर नहीं है। इसीलिए जल और प्राकृतिक प्रबंधन में सभी की भागीदारी है। वर्षा बहुत कम होने पर भी जल की कमी के कारण आज तक आत्महत्याएँ यहाँ नहीं हुई है।
भूटान भारत का छोटा भाई है। सांस्कृतिक अध्यात्मिक रूप में अब गुरू और बड़ा भाई बन गया है, लेकिन वह रास्ता भारत पकड़ना नहीं चाहता है, इसीलिए पिछड़ रहा है, जो भारत दुनिया का गुरू बनाने वाले आधार बिन्दु अभी भूटान में मौजूद है। उन्हें हमें अपनाना चाहिए। हम गुरू थे, विश्व गुरू बन जायेंगे। बस लालची विकास की परिभाषा बदलनी पड़ेगी। हमें भी मानवीय एवं प्राकृतिक पुनर्जनन प्रक्रिया चलाने हेतु श्रमनिष्ठ बनकर सत्य-अहिंसा का रास्ता पकड़ना होगा।
भूटान हिमालय पर बसा दक्षिण एशिया का एक छोटा और महत्वपूर्ण देश है। यह चीन तिब्बत और भारत के बीच स्थित आबद्ध देश है। इस देश का स्थानीय नाम ड्रुग युल है, जिसका अर्थ होता है ‘अझदहा’ का देश। यहाँ के लोगों का मुख्य आधार कृषि है। यह मुख्यतः पहाड़ी है और केवल दक्षिणी भाग में थोड़ी सी समतल भूमि है। यह सांस्कृतिक और धार्मिक तौर से तिब्बत से जुड़ा है, लेकिन भौगोलिक और राजनीतिक परिस्थितियाँ भारत जैसी ही है। यह देश बहुत ऊबड़-खाबड़ धरातलों वाला देश है। यहाँ 100 किमी की दूरी के बीच में 150 से 7000 मी की ऊँचाई पायी जाती है। देश का दक्षिणी हिस्सा अपेक्षाकृत कम ऊँचा है और यहाँ कई उपजाऊ और सघन घाटियाँ है, जो ब्रह्मपुत्र की घाटी से मिलती है। देश का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा वनों से आच्छादित है।
इस देश की जलवायु में स्थान-स्थान पर अंतर देखनें को मिलता है। दक्षिण के निचले पर्वतीय पादप्रदेश में औसत वार्षिक वर्षा 500 से 635 सेंमी होती है। देश के मध्यवर्ती भाग में वर्षा साधारण है जबकि उत्तर के अधिक ऊँचे भागों में अति ठंडी एवं सूखी जलवायु मिलती है। यहाँ की जलवायु मुख्य रूप से ऊष्णकटिबंधीय है। समतल भूमि के अभाव में कृषि सीढ़ीनुमा खेत बनाकर की जाती है। नदियों की उपजाऊ घाटियों में यह उद्यम अधिक महत्वपूर्ण है। यहाँ सिंचाई के कृत्रिम साधनों का समुचित प्रबंध है। मुख्यतः धान, मक्का, गेहूँ, जौ, शाक, इलायची, अखरोट एवं संतरे मुख्य उपजें है।
भूटान देश नेपाल एवं तिब्बत के नजदीक होने के कारण वहाँ पर शरणार्थियों की समस्या ने एक विकराल रूप धारण कर लिया है। जिस कारण से भूटान राज्य की संस्कृति एवं सभ्यता, एव धर्म एवं अध्यात्म बाह्य एव आन्तरिक सुरक्षा सभी प्रभावित हो रही है।
भूटान के पास कोई विशाल औद्योगिक प्रतिष्ठान नहीं है। लघु प्रतिष्ठान वहाँ के लोगों के जीविकोपार्जन के साधन है। परन्तु शरणार्थियों एवं घुसपैठी अपनी कई समस्या लेकर यहाँ आये है। जिन्होंने भूटान के अर्थजगत के साथ-साथ वहाँ के ग्रामीण एवं लोक जीवन को भी प्रभावित किया।
यहाँ निष्कासित नेपालियों की संख्या लगभग एक लाख से भी ज्यादा है। वे नेपाल के पूर्वी भाग में शरण लिए हुए है और 1991 से बराबर मांग कर रहे है कि उन्हें भूटान में पुनः प्रवेश दिया जाए। नेपालियों की समस्या आज भी जीवित है। यह समस्या बनी हुई है। इस संबंध में दोनों सरकारों ने कई बार बात भी कर चुकी है लेकिन समाधान अभी भी पहेली बना हुआ है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।