गाज़ियाबाद: प्रधान मंत्री के राज्य सभा में आज दिए बयान पर कि दूध का किसान ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर २८ प्रतिशत योगदान दे रहा है, आंदोलनकारी किसानों ने कहा कि देश में दूध का किसान घाटे में हैं। “सरकार की गलत नीतियों के चलते देश में पानी से सस्ता दूध है। किसान को दूध का रेट 25 रूपए से ज्यादा नहीं मिलता। महंगाई के चलते किसान दूध के मामले में भी घाटे में है।इस घाटे के सौदे के चलते देश में पशुओं की संख्या लगातार घट रही है। यही हाल रहा तो टर्की की तरह सारे पशु खत्म हो जाएंगे,” तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलनकारी संयुक्त किसान मोर्चा के घटक भारतीय किसान यूनियन के महासचिव धर्मेंद्र मलिक ने कहा। उन्होंने कहा कि किसान ऐसा नहीं होने देंगे और देश में टर्की के हालात पैदा नहीं होने देंगे। “(प्रधान मंत्री ) छोटे किसानों की बात कर रहे हैं तो पहले उन्ही आय बढ़ाकर छह हजार से 24 हजार कर दें। छोटे किसानों का कर्जा माफ कर दें,” उन्होंने मांग की।
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इस बीच यूपी गेट (गाजीपुर बार्डर) पर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने समस्या और समाधान का विकल्प चुनने के सवाल पर कहा कि “समस्या ही काट दो, बिल बापस ले लो।”
आज सदन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन के बाद गाजीपुर बार्डर पर मीडिया के सवालों के जबाब में टिकैत ने प्रधानमंत्री के इस बयान पर कि कृषि मंत्री लगातार किसान नेताओं से बात कर रहे हैं, कहा: “हां बात कर रहे होंगे। हमारा संयुक्त मोर्चा बात करेगा। हमने बातचीत के दरवाजे बंद नहीं किए हैं।”
मोदी के इस वक्तव्य पर कि एमएसपी है और रहेगा, टिकैत ने कहा: “वे उलझा रहे। हमने कभी नहीं कहा कि एमएसपी खत्म हो रही है। हम तो यह कह रहे हैं कि एमएसपी पर कानून बने, ताकि व्यापारी एमएसपी से कम रेट पर खरीदी न कर सके। एमएसपी पर कानून बनने से पूरे देश के किसान को लाभ होगा।”
टिकैत ने कहा कि देश में भूख पर व्यापार नहीं होगा। भूख से व्यापार करने वालों को बाहर निकाला जाएगा। अपनी बात को टिकैत ने यह कहते हुए समझाने का प्रयास किया कि जैसे निजी एयरलाइंस एक ही दिन में एक ही फ्लाईट के अलग-अलग रेट वसूलती हैं, देश के अनाज पर कारपोरेट का कब्जा होने के बाद इसी तर्ज पर भूख पर व्यापार करने की तैयारी है। नए कृषि कानून इसी व्यापार के लिए लाए गए हैं। “जिसको जितनी ज्यादा भूख होगी, उसे उतना ही ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ेगा, लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे,” उन्होंने कहा ।
आंदोलन के लिए नई बिरादरी आने के सवाल पर चौधरी टिकैत ने कहा कि या नई बिरादरी किसान बिरादरी है और धीरे-धीरे सब लोग किसान बिरादरी के साथ आ गए हैं। बड़े किसानों के आंदोलन के सवाल पर उन्होंने कहा कि वे लोग कभी कुछ कहते हैं, कभी कुछ कहते हैं – “पहले इस आंदोलन को पंजाब का आंदोलन बता रहे थे, फिर जाटों का आंदोलन कहने लगे और छोटे किसान और बड़े किसान की बात कहकर उलझाना चाहते हैं। किसान किसान होता है। न कोई किसान बड़ा है न कोई छोटा। न कोई किसान पंजाब का है न उत्तर प्रदेश का। आंदोलन पूरे देश के किसान का है।”
टिकैत ने कहा कि कर्नाटक और केरल तक के किसान आंदोलन में शामिल हैं और आरोप लगाया कि सरकार नए कृषि कानूनों में काला-सफेद की बात कर रही है। “सरकार 15 संशोधन करने को तैयार है तो सरकार ने इन्हे काला तो मान ही लिया है।” टिकैत ने जवाब माँगा कि कौन सी चीज काली है सरकार ही बताए।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो