दो टूक
-ज्ञानेन्द्र रावत*
अंततोगत्वा जैसी कि संभावना थी और चुनावी विश्लेषकों, जानकारों के चुनावी आंकलनों, कुछ केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के करीबी समझे जाने वाले तथाकथित विशेषज्ञों-पत्रकारों-चैनलों की धारणाओं को दरकिनार कर पश्चिम बंगाल के चुनावी महाभारत में ममता बनर्जी ने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सामने से हरा और पहले से भी ज्यादा सीटें जीत कर यह साबित कर दिया है कि न सिर्फ बंगाल में उनका जादू अभी भी बरकरार है, बल्कि अब देश की राजनीति में विपक्ष को सम्बल प्रदान करने में उनकी एक सशक्त भूमिका भी होगी।
यह ममता का ही करिश्मा है कि देश के ताकतवर प्रधानमंत्री, उनके गृह मंत्री और विश्व की सबसे बड़ी राजनैतिक दल, भारतीय जनता पार्टी, के बंगाल जीतने के मंसूबों पर उन्होंने सिर्फ अपने बल पर ही पानी फेर दिया। अनेकानेक आरोपों-प्रलापों के बावजूद ममता बंगाल में विजय पताका फहराने में कामयाब हुईं। इस विजय से ममता ने यह साबित कर दिया कि देश में वह एक ऐसी नेता हैं जो अपने दम पर मोदी सरीखे नेता को रोकने की क्षमता रखती हैं। अपने कुशल नेतृत्व और रणनीतिक क्षमता से उन्होंने यह साबित कर दिखाया है। इस समय जब भारतीय जनता पार्टी पूरे दम ख़म के साथ देश की राजनीति को नियंत्रित कर रही है, देश के विपक्षी दलों के लिए यह चुनौती का समय है। ऐसे में ममता की बंगाल में भारी जीत, एम के स्टालिन की तमिलनाडु में जीत और पिनाराई विजयन की केरला में जीत ना सिर्फ विपक्ष ही को बल्कि यह देश के बहुपक्षीय लोकतंत्र को भी मजबूती प्रदान करेगा।
वह बात दीगर है कि आसाम और पुडुचेरी में भाजपा सरकार बनाने के करीब है और वहां सरकार बना भी लेगी जिसमें कोई संदेह भी नहीं है लेकिन पश्चिम बंगाल के साथ भाजपा तमिलनाडु और केरल में भी सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त थी। केरल में तो 89 वर्षीय ‘मेट्रोमैन’ ई श्रीधरन को मुख्यमंत्री उम्मीदवार भी बना दिया था लेकिन वह खुद चुनाव हार गये और पार्टी भी डूब गयी।
गौरतलब यह है कि पश्चिम बंगाल में तैंतीस दिन में आठ चरण में संपन्न हुए चुनाव में राज्य में प्रधानमंत्री मोदी बाईस केन्द्रीय मंत्रियों, छह मुख्यमंत्रियों, दर्जनों उड़न खटोलों व लाखों कार्यकर्ताओं के साथ इस प्रतिष्ठा के चुनाव में एक हवाई चप्पल पहने महिला से पटखनी खा गये। इसे क्या कहा जायेगा?
यह समय भाजपा के लिए भी आत्ममंथन का है। बंगाल में ममता के लिए मोदी ने जिस भाषा का प्रयोग किया था वह वहाँ की महिलाओं को को गवारा नहीं था और महिलाओं ने बढ़ चढ़ कर इसका मीडिया में विरोध किया था। तमिलनाडु में जयललिता की पार्टी में भीतर करा पलानीसामी को मुख्यमंत्री बना उनसे गठजोड़ कर चुनाव लडी़ भाजपा वहां द्रुमक नेता स्वर्गीय एम करुणानिधि के बेटे एम के स्टालिन से बुरी तरह हार गयी।
इन चुनावों के परिणाम ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि देश की जनता को कम आंकना बहुत बड़ी भूल है। चुनावी रैलियों में इकट्ठी भीड़ चुनावी नतीजों का पैमाना नहीं हो सकतीं और सिर्फ भाषण बाजी से अब चुनाव नहीं जीते जा सकते। आज कोरोना के माहौल में सारी स्थिति अभी मोदी के विपरीत जाती दिख रही है। विदेशी पत्र पत्रिकाओं में तो सरकार की काफी भर्त्सना की जा रही है। इन चुनावी पराजयों के बाद प्रधान मंत्री मोदी को अवश्य ईमानदारी से एक समीक्षा करनी चाहिए और देखना चाहिए कि कहाँ उनकी कथनी और करनी में अंतर रह गया था जो आज जनता ने इन चुनावों में उन्हें नकार दिया। यह कहना कि बंगाल में आज वे तीन से अस्सी हो गए कोई बहाना नहीं हो सकता। यह बात दीगर है कि भाजपा बंगाल में सरकार बनाने के लिए ही चुनाव में उतरी थी जो बात मोदी और उनकी पार्टी के सभी नेता बार बार कह रहे थे।
*वरिष्ठ पत्रकार