उन्नाव: 1 मई 1967 को जनपद उन्नाव के बिरसिंहपुर में जन्मे सन्तोष बाजपेयी नैनी आई टी आई प्रयागराज में सहायक विधि अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं।दो दिन पहले ही पर्यावरण संरक्षण के लिए 3 जून 1990 बिरसिहपुर उन्नाव से शुरू हुए उनके अभियान ने इकतीस वर्ष पूरे किये ।
सन्तोष अपने आफिस के बाद पूरा समय संगम तट पर अखिल भारतीय पर्यावरण संवेदना जागरूकता अभियान के तहत जीवन बचाओ संकल्प पत्र भरवाते है। जीवन बचाओ आंदोलन 5ज जल, जमीन, जंगल, जलवायु, जनसंख्या के साथ देश के प्रत्येक ग्राम पंचायत में संस्कार स्मृति वाटिका के लिए प्रयासरत हैं। अपनी शादी 30 जून 2001 से परिणय पौध की शुरुआत की आज इस परिणय पौध आम के पौध को वर कन्या अपनी शादी में लगाना चाहते है। उनका कहना है कि पौधे तो जन्म दिन शादी के अवसर पर शुभ दिनों पर अवश्य लगाना चाहिए।
सन्तोष के पिता हीरालाल बाजपेयी प्रकृति प्रेमी थे । पिता 1984 के निधन के बाद माँ चन्द्रवती बाजपेयी के दिखाये रास्ते पर चल कर पिता के सपनों को साकार करने पर्यावरण के अक्षुण्य लगाव के कारण स्वास्थ्य एवं स्वच्छ पर्यावरण के निर्माण के लिए बाजपेयी ने जीवन बचाओ आंदोलन का सूत्रपात किया। जिससे भारत की आने वाली पीढ़ी पुनः वनों एवं जंगलों से आच्छादित हरी भरी प्राचीन भारत भूमि का विहंगम दृश्य देख सके। अपनी कर्मठता , सजगता अथक परिश्रम तथा जुझारू व्यक्तित्व के कारण राष्ट्रीय स्तर पर वृक्ष मित्र के नाम से ख्याति प्राप्त किया।
सन्तोष ने बताया कि 25 जून 2021 को पर्यावरण प्रेरणा स्थल का शुभारम्भ बिरसिंहपुर उन्नाव में आयोजित कार्यक्रम को वैश्विक महामारी कोविड 19 को देखते हुए इस आयोजन को आगे करने का निर्णय लिया गया है। “इकतीस वर्ष पर्यावरण साधना में अनेकों कार्यक्रम देश विदेशों में आयोजित किया जिसमें कुछ यादगार पलों में 3 दिसम्बर 2000 को पर्यावरणविद सुन्दर लाल बहुगुणा पर्यावरण महोत्सव का राजकीय इन्टर कालेज उन्नाव में हीरा लाल बाजपेयी पर्यावरण पुरस्कार सम्मान समारोह आयोजन में माँ चन्द्रवती बाजपेयी की प्रेरणा हमें निरन्तर आगे बढ़ाने का सम्बल प्रदान करती है। पर्यावरण चिन्तन परिवार उनके निधन पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है ” उन्होंने कहा। 3 फरवरी 2003 को उन्नाव से दिल्ली पर्यावरण चेतना यात्रा के बाद दूसरी 111 दिवसीय पर्यावरण संवेदना यात्रा 5 सितम्बर 2018 गोंडा से शुरू होकर कई प्रदेशों से होते हुए 25 दिसम्बर 2018 को दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में सम्पन्न हुई।
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सन्तोष भारत से पॉलिथीन मुक्त संगम तट प्रयागराज में वृहद जन-जागरण अभियान जीवनदायिनी मॉं गंगा की अविरलता एवं निर्मलता, स्वच्छता ,जल संचय वृक्षारोपण, जैविक खेती एवं जन कल्याणकारी योजनाओं के प्रति जन जागरण भी चला रहे है। उनका कहना है कि हम प्रकृति की चिन्ता नहीं करते यही कारण है कि प्रकृति ने भी हमारी चिंता छोड़ दी। हमने बिना सोचे अपने संसाधनों का दोहन किया आज उसी का प्रतिफल है कि हमारा पर्यावरण ही अस्वस्थ हो गया है जब पर्यावरण ही स्वस्थ नहीं होगा तो मानव कैसे स्वस्थ रह सकता है मानव ही नहीं धरती पर रहने वाले हर प्रजाति को भुगतना पड़ेगा अगर हम नहीं चेते धरती पर मानव का अस्तित्व कोई नहीं बचा जा सकता आज हमें ऐसे पर्यावरण संरक्षण को लेकर आन्दोलन चलाना होगा जीवन बचाओ आंदोलन इसका सशक्त माध्यम है। आप अगर फिर से पक्षियों का कलरव सुनना है तो पिंजरा खरीदकर मत लाइए, एक पौधा लगाकर उसे पेड़ बनाये। अधिक तापमान लू से बचना है तो ग्रीन नेट न लायें, अपने आसपास की ग्रीनरी बचायें।गर्मी में पानी चाहिए तो नगरपालिका के सामने मटके न फोड़े, बरसात में घर की छत के पानी को धरती से जोड़ें। आँधी-तूफान से बचना है तो घर की दीवारें मोटी न बनायें, अपने गाँव के आसपास की पहाड़ी बचायें। प्रतिदिन घर में ज्यादा पानी आवें उसके लिए मोटा पाईप मत बिछाइये, अपने-अपने गाँव की नदी बचाइए क्योंकि छोटी बडी नदियां अपना अस्तित्व खो रहीं हैं। शुद्ध अन्न के लिए केवल धन नहीं चाहिए, गौधन बचाइए एक गाय सभी को पालनी चाहिए। कुओं का अस्तित्व भी खतरे में है हर गाँव में कम से कम दो कुएं बचाने के लिए सरकार समाज को आगे आने की जरूरत है।
सन्तोष ने छोटी नदियों के खोते अस्तित्व पर चिंता जाहिर करते हुए युवाओं को आगे आने का आवाहन किया उन्होंने कहा कि युवाओं को जोड़ने के लिए प्रकृति सेवा प्रहरी का गठन किया गया है इनका दायित्व नदियों कुओं का अस्तित्व बचाने पर्यावरण की संवेदनाओं को बचाना है ।
सन्तोष द्वारा पर्यावरण के लिए कार्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहें हैं। जल संरक्षण के लिए जल प्रहरी सम्मान पर्यावरण एवं वन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा 2002 का इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। विदेश सिंगापुर मलेशिया में पर्यावरण द्वारा के लिए सम्मानित किया गया है
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो